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Hindi News भारत राष्ट्रीय विदेश में मेडिकल की पढ़ाई कर रहे छात्रों को तय समय सीमा में हासिल करनी होती है डिग्री

विदेश में मेडिकल की पढ़ाई कर रहे छात्रों को तय समय सीमा में हासिल करनी होती है डिग्री

यूक्रेन में एमबीबीएस की डिग्री लेने में औसत 6 साल लगते हैं और इंटर्नशिप के लिए दो वर्ष अतिरिक्त रखते हुए किसी उम्मीदवार को लाइसेंस के आवेदन के लिए 10 साल की अवधि में केवल दो साल बचते हैं। हालांकि मौजूदा संकट में यह कहना कठिन है कि प्रभावित विद्यार्थियों को पढ़ाई पूरी करने के लिए यूक्रेन लौटने की कब अनुमति मिलेगी।

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नई दिल्ली: यूक्रेन से हजारों भारतीय विद्यार्थी मेडिकल का कोर्स बीच में छोड़ मजबूरी में स्वदेश लौट आए हैं। फिलहाल उनका भविष्य अधर में लटकता दिखता है। ऐसा इसलिए क्योंकि राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (NMC) ने विदेश में चिकित्सा स्नातक (एफएमजी) करने वालों के लिए 2021 में जो नियम जारी किए, उनके अनुसार एमबीबीएस प्रोग्राम के बीच में किसी विदेशी विश्वविद्यालय से भारतीय विश्वविद्यालय में स्थानांतरण का प्रवाधान नहीं है। विदेश में चिकित्सा स्नातक के विद्यार्थियों के लिए एनएमसी के नियमानुसार भारत में लाइसेंस प्राप्त करने के लिए 10 वर्षों की समय सीमा में डिग्री लेने, उसके बाद इंटर्नशिप (यूक्रेन और भारत में क्रमश एक वर्ष) और फिर विदेश में चिकित्सा स्नातकों के लिए आयोजित परीक्षा हेतु आवेदन करना होता है।

यूक्रेन में एमबीबीएस की डिग्री लेने में औसत 6 साल लगते हैं और इंटर्नशिप के लिए दो वर्ष अतिरिक्त रखते हुए किसी उम्मीदवार को लाइसेंस के आवेदन के लिए 10 साल की अवधि में केवल दो साल बचते हैं। हालांकि मौजूदा संकट में यह कहना कठिन है कि प्रभावित विद्यार्थियों को पढ़ाई पूरी करने के लिए यूक्रेन लौटने की कब अनुमति मिलेगी। ऐसे में 10 साल की यह अवधि छात्रों के लिए चिंता की बात है क्योंकि इस समय सीमा में कोर्स पूरा नहीं कर पाए तो भारत में बतौर चिकित्सक काम करने के लिए आवश्यक लाइसेंस का आवेदन नहीं कर पाएंगे।

इस संबंध में मेडिकल टेक्नोलॉजी ऑफ इंडिया के अध्यक्ष पवन चौधरी ने कहा, "रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते भारतीय विद्यार्थी किसी अन्य देश में एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी करने के विकल्प ढूंढ़ेंगे क्योंकि इन दोनों देशों के मेडिकल कोर्स के लिए बड़ी संख्या में भारतीय विद्यार्थी आते हैं। इस स्थिति में बांग्लादेश, नेपाल, स्पेन, जर्मनी, किर्गिस्तान और यूके जैसे देश जहां कोर्स का खर्च कम है, विद्यार्थियों को आकर्षित कर सकते हैं।"

इस बीच यह आशा जगी है कि कुछ राज्य यूक्रेन से लौटे विद्यार्थियों की मदद के लिए आगे आ रहे हैं। मिसाल के तौर पर कर्नाटक के मान्य विश्वविद्यालयों के संघ ने यूक्रेन से लौटे एक हजार मेडिकल के विद्यार्थियों को दाखिला देने की पेशकश की है। इसके अलावा प्रधानमंत्री ने निजी क्षेत्र के संगठनों से चिकित्सा शिक्षा में विस्तार करने की अपील की है। हालांकि, इसके लिए बकायादा परीक्षा लेने और नीति में गंभीर सुधार करने की जरूरत है।

मेडिकल टेक्नोलॉजी एसोसिएशन ऑफ इंडिया के निदेशक संजय भूटानी ने कहा, "यूक्रेन में युद्ध से उत्पन्न अनिश्चितता के चलते स्वदेश लौटे चिकित्सा विज्ञान के विद्यार्थी भविष्य को लेकर परेशान हैं। लेकिन राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) ने भारतीय मेडिकल कॉलेजों में विदेश से आए चिकित्सा विज्ञान के स्नातक विद्यार्थियों के लिए 7.5 प्रतिशत सीट बढ़ा कर 12 महीने के आवश्यक इंटर्नशिप करना आसान बना दिया है।"

भूटानी का कहना है कि वे छात्र अपनी शेष इंटर्नशिप भारत में पूरी कर पाएंगे। आशा है इससे लगभग 18,000 विद्यार्थियों का भविष्य सुनिश्चित होगा। भविष्य में स्वास्थ्य सेवा देने वाले ये विद्यार्थी पहले से मौजूद महामारी और अब राजनीतिक संकट के दौर में भी बिना विलंब स्वास्थ्य सेवा दे पाएंगे।

आईएमए-जेडीएन (इंडियन मेडिकल एसोसिएशन-जूनियर डॉक्टर्स नेटवर्क) के पोस्ट ग्रेजुएट स्टडीज कमेटी के प्रमुख डॉ. रिमी डे ने बताया, "यूक्रेन के मौजूदा हालात में वहां मेडिकल की पढ़ाई छोड़ स्वदेश लौटे हजारों भारतीय विद्यार्थियों का भविष्य अनिश्चित दिखता है। यह एक अभूतपूर्व स्थिति है इसलिए विशेष समाधान करना समय की मांग है। मेडिकल के इन विद्यार्थियों को पुन पढ़ाई जारी करने का अवसर देना सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए। वर्तमान भारतीय चिकित्सा शिक्षा प्रणाली में सब का समावेश संभव नहीं है लेकिन कुछ प्रभावी समाधान दिया जा सकता है जैसे कि मेडिकल के विद्यार्थियों के लिए एक्सचेंज प्रोग्राम ऑफ-कैंपस या ऑनलाइन पढ़ाई की व्यवस्था।"

(इनपुट- एजेंसी)

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