"सोनिया गांधी को मुझ पर भरोसा नहीं था", अपनी किताब में नजमा हेपतुल्ला ने कई घटनाओं का किया जिक्र
नजमा हेपतुल्ला 2014 से 2016 तक पहली नरेंद्र मोदी सरकार में केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों की मंत्री थीं। वह 1980 से 2016 तक राज्यसभा सदस्य रहीं।
पूर्व केंद्रीय मंत्री नजमा हेपतुल्ला ने अपनी आत्मकथा 'इन परस्यूट ऑफ डेमोक्रेसी: बियॉन्ड पार्टी लाइंस' (In Pursuit of Democracy: Beyond Party Lines) में कांग्रेस पार्टी में सोनिया गांधी के नेतृत्व में हुई कुछ घटनाओं का जिक्र किया है। उन्होंने 1998 में सोनिया गांधी के पार्टी अध्यक्ष बनने के बाद पार्टी की कार्यशैली पर सवाल उठाए और कहा कि उस वक्त पार्टी के कार्यकर्ताओं और नेतृत्व के बीच सीधा संवाद टूट गया था। 10 जनपथ से सीधे संवाद कट गया था, क्योंकि वहां काम कर रहे जूनियर अधिकारी सिर्फ क्लर्क और अन्य स्टाफ थे, जो असल पार्टी कार्यकर्ता नहीं थे।
नजमा हेपतुल्ला बीजेपी में शामिल होने से पहले 2004 तक कांग्रेस पार्टी के साथ थीं। हेपतुल्ला 1980 में राज्यसभा सदस्य बनीं और 17 साल तक उच्च सदन की उपसभापति रहीं, ने अपनी आत्मकथा में कई घटनाओं का खुलासा किया है, जो उनके और तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के बीच बढ़ते अविश्वास को दर्शाती हैं। उन्होंने अपनी आत्मकथा में यह भी बताया है कि 2004 में बीजेपी में शामिल होने से पहले कांग्रेस पार्टी में उनके लिए वातावरण बदल चुका था।
पूर्व केंद्रीय मंत्री ने लिखा, "हमारे बीच संवाद की गुणवत्ता में कमी थी और यह भी नहीं पता था कि हमारे नेता के इन-ग्रुप या आउट-ग्रुप में कौन लोग हैं, या हम उनके दृष्टिकोण का समर्थन कैसे कर सकते हैं। इससे पार्टी में गिरावट शुरू हुई।" नजमा हेपतुल्ला ने 1999 की एक घटना का जिक्र किया जब वह बर्लिन से सोनिया गांधी को फोन कर इंटर-पार्लियामेंट्री यूनियन (IPU) की अध्यक्ष बनने की खबर देना चाहती थीं, लेकिन गांधी के एक स्टाफ ने पहले कहा, 'मैम बिजी हैं' और फिर 'कृपया लाइन पर बने रहें'। उन्होंने बताया कि उन्हें एक घंटे तक इंतजार कराया गया, लेकिन सोनिया गांधी कभी भी फोन पर उनसे बात करने नहीं आईं। पूर्व राज्यसभा सांसद ने अपनी किताब में लिखा, "हर देश, संस्कृति और परिवार के पास ऐसे खास क्षण होते हैं, जो सामान्य जीवन की धारा से ऊपर होते हैं। यह मेरे लिए एक ऐसा क्षण था, जिसने मुझे हमेशा के लिए अस्वीकृति का अहसास दिलाया। हालांकि, यह अस्वीकृति बाद में सही साबित हुई।"
जब सोनिया गांधी चाहती थीं कि वो कांग्रेस छोड़ दें
मणिपुर की पूर्व राज्यपाल नजमा हेपतुल्ला ने अपनी आत्मकथा 'इन परस्यूट ऑफ डेमोक्रेसी: बियॉन्ड पार्टी लाइंस' में 1999 की एक और घटना का भी जिक्र किया है, जब कांग्रेस के कई दिग्गज नेता पार्टी में हाशिए पर महसूस कर रहे थे। शरद पवार, पीए संगमा और तारिक अनवर ने सोनिया गांधी के विदेशी मूल के मुद्दे पर पार्टी छोड़ दी और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) का गठन किया। राजेश पायलट और जितेंद्र प्रसाद भी गांधी परिवार के खिलाफ खड़े हुए। नजमा हेपतुल्ला पार्टी में बनी रहीं, लेकिन सोनिया ने सुझाव देना शुरू कर दिया कि वे अंततः पार्टी छोड़ देंगी और शरद पवार के साथ मिल जाएंगी। हेपतुल्ला ने इसे अजीब बताते हुए कहा, "यह सोनिया का विचार अजीब था। वह बहुत कम लोगों पर भरोसा करती थीं और मुझे लगता था कि वह मुझ पर भरोसा नहीं करती थीं।"
इंदिरा गांधी के दौर से सोनिया की कांग्रेस की तुलना
हेपतुल्ला ने सोनिया गांधी की कांग्रेस की तुलना उनकी सास इंदिरा गांधी के दौर से की। हेपतुल्ला ने सोनिया पर जमकर निशाना साधा और कहा, "हम गहरे अविश्वास से कहीं बढ़कर काम कर रहे थे। हम सोनिया गांधी से कटे हुए थे और उनसे संवाद नहीं कर सकते थे। यह पहले की कांग्रेस संस्कृति से एक तीखा और गंभीर बदलाव था। इंदिरा गांधी हमेशा खुले दिल से काम करती थीं। वे आम सदस्यों के लिए सुलभ थीं। वे हर सुबह देश भर से आने वाले हर आगंतुक का गर्मजोशी से स्वागत करती थीं।" पूर्व कांग्रेस नेता ने कहा, "मैं इंदिरा गांधी से कभी भी संपर्क कर सकता थी और अपने तरीके से उन्हें जमीनी स्तर पर चीजों के बारे में जानकारी दे सकती थी। मैंने कभी उनकी कड़ी आलोचना नहीं की, बल्कि केवल उन चीजों की ओर इशारा किया जो मैंने जमीनी स्तर पर अनुभव किया।"
दुनिया में किसी भी संसद की सबसे लंबे समय तक सेवा करने वाली पीठासीन अधिकारी हेपतुल्ला ने सोनिया गांधी की कार्यशैली की आलोचना की, क्योंकि संगठन के भीतर संचार लाइनें टूट गई थीं। उन्होंने अपनी आत्मकथा में कहा, "कांग्रेस के अनुयायियों के रूप में हमारे पास अब अपने नेता को फीडबैक देने में सक्रिय भूमिका नहीं थी, जो पार्टी के अच्छे प्रदर्शन के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।"
सीताराम केसरी के साथ सोनिया गांधी का व्यवहार
नजमा हेपतुल्ला ने अपनी आत्मकथा में सीनियर कांग्रेस नेताओंसीताराम केसरी और पीवी नरसिम्हा राव के साथ सोनिया गांधी के व्यवहार पर भी सवाल उठाए। उन्होंने बताया कि 1997 में सीताराम केसरी को कांग्रेस संसदीय पार्टी (CPP) का अध्यक्ष चुने जाने के बाद एक दिन वे 10 जनपथ में सोनिया गांधी का इंतजार कर रहे थे, जब केसरी को भी इंतजार करने के लिए कहा गया। जैसे-जैसे समय बीतता गया वो गुस्से में आ गए और कहा, "मैं पार्टी का कोषाध्यक्ष हूं, कोई साधारण सदस्य नहीं हूं। वह (हेपटुल्ला) राज्यसभा की उपसभापति हैं। हम यहां औपचारिकताओं के लिए नहीं आए हैं, बल्कि गंभीर मुद्दों पर चर्चा करने आए हैं और हमें इस तरह इंतजार करने को कहा जा रहा है?" हेपतुल्ला ने लिखा कि इस अपमान के बाद केसरी वहां से चले गए।
हेपतुल्ला ने कहा, "जब सोनिया गांधी ने सीताराम केसरी से पार्टी का नेतृत्व अपने हाथ में लेने का फैसला किया, तो पार्टी के भीतर उनकी क्षमता और अनुभव को लेकर कई सवाल उठे थे। उनके अनुभव की कमी, उनकी इटालियन पृष्ठभूमि और हिंदी में उनकी सीमित धाराप्रवाहता के कारण इस पद के लिए उनकी तत्परता और उपयुक्तता के बारे में चिंताएं व्यक्त की गईं। गुलाम नबी आजाद और मैंने पार्टी नेतृत्व और कार्यकर्ताओं को यह समझाने के लिए अथक प्रयास किया कि वह वास्तव में एक प्रभावी नेता बनने के लिए तैयार और सक्षम हैं।"
सोनिया गांधी का पीवी नरसिम्हा राव के साथ संबंध
पूर्व केंद्रीय मंत्री ने अपनी आत्मकथा में लिखा कि सोनिया गांधी का पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा के साथ तनावपूर्ण संबंध थे। उन्होंने बताया कि सोनिया गांधी चाहती थीं कि राव उन्हें रिपोर्ट करें, लेकिन राव ने इंकार कर दिया और इसके बाद उन्हें इसका खामियाजा भुगतना पड़ा। उन्होंने कहा, "कांग्रेस ने राव द्वारा किए गए आर्थिक सुधारों को कभी मान्यता नहीं दी, जिनकी वजह से देश में आर्थिक परिवर्तन हुआ। जब उन पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे, जिनका कभी भी प्रमाण नहीं मिला, कांग्रेस ने उनका समर्थन नहीं किया और जब 1996 में वे चुनाव हार गए, तो उन्हें कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा देना पड़ा। राव अपने अंतिम दिनों में दोस्तों के बिना, आर्थिक तंगी और खराब स्वास्थ्य से जूझते रहे। अंतिम अपमान उनकी मृत्यु के बाद हुआ, कांग्रेस ने उनका अंतिम संस्कार दिल्ली में नहीं होने दिया।"
कांग्रेस छोड़ने के कारणों का किया खुलासा
पूर्व केंद्रीय मंत्री नजमा हेपतुल्ला ने 2004 में कांग्रेस छोड़ने के अपने फैसले के पीछे सोनिया गांधी को जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने अपनी आत्मकथा में बताया कि उन्हें कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के करीबी लोगों से कई बार उत्पीड़न का सामना करना पड़ा। हेपतुल्ला ने आरोप लगाया कि सोनिया गांधी के करीबी लोग उन्हें संसद में अपने काम को छोड़कर कांग्रेस के कार्यक्रमों में शामिल होने के लिए दबाव डालते थे, जैसे कि धरनाओं में भाग लेना या कांग्रेस के पूर्व नेताओं की जयंती और पुण्यतिथि पर उनकी मूर्तियों पर माला चढ़ाना। उन्होंने यह भी खुलासा किया कि वे सोनिया गांधी की सभी स्पीच तैयार करने में मदद करती थीं, लेकिन इसके बावजूद उनका समर्थन कभी सोनिया के लिए पर्याप्त नहीं रहा। हेपतुल्ला ने कहा, "जब मुझे पार्टी के अहम फैसलों से बाहर कर दिया गया, जो सीधे तौर पर मुझसे जुड़े थे, तो मुझे अलग-थलग महसूस हुआ।"
"सोनिया गांधी ने कभी मुझे फोन नहीं किया"
उन्होंने गांधी परिवार द्वारा पार्टी के मामलों को पूरी तरह बर्बाद करने का मुद्दा भी उठाया। उन्होंने आरोप लगाया, "कांग्रेस पार्टी स्थिर हो गई और नेतृत्व का विकास सोनिया गांधी की असुरक्षाओं के कारण रुक गया था। हर नेता को एक ऐसे परिवार के नियंत्रण में काम करने के लिए मजबूर किया गया, जो सब कुछ नियंत्रित करता था।" नजमा हेपतुल्ला ने यह भी कहा कि सोनिया गांधी ने कभी उन्हें फोन नहीं किया और न ही उन्होंने कभी सोनिया गांधी से संपर्क किया। 10 जून 2004 को उन्होंने राज्यसभा के उपसभापति पद से इस्तीफा दिया और कांग्रेस पार्टी से भी इस्तीफा दे दिया। इसके बाद नजमा हेपतुल्ला जुलाई 2004 में भारतीय जनता पार्टी (BJP) में शामिल हो गईं।
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