नयी दिल्ली: बृहस्पतिवार को शून्य काल में भारतीय जनता पार्टी के डॉ. डी पी वत्स ने 'एक राष्ट्र, एक चुनाव' का मुद्दा उठाया और कहा कि 1967 के बाद संविधान के अनुच्छेद 356 का इस्तेमाल करते हुए संयुक्त विधायक दल की सरकारों को कार्यकाल के बीच में ही बर्खास्त किया गया तथा इसके बाद देश में ‘एक राष्ट्र, लगातार’ चुनाव की स्थिति हो गई। अलग- अलग समय पर होने वाले चुनावों को देश के संसाधनों पर बड़ा भार बताते हुए वत्स ने कहा, 'राष्ट्र हित को मद्देनजर रखते हुए मैं सभी राजनीतिक दलों, वह चाहें सरकार में हों या विपक्ष में, से आग्रह करूंगा कि इस विषय पर एक आम सहमति बनाई जाए। इसके लिए कोई रास्ता निकाला जाए ताकि देश के संसाधनों पर भार कम हो और पांच साल में एक बार विधानसभा, लोकसभा और शहरी निकायों के चुनाव हों। ऐसा होता है तो देश हित में बहुत अच्छा होगा।'
प्रधानमंत्री भी कर चुके हैं इसकी वकालत
बता दें 2014 में जब केंद्र में मोदी सरकार आई, तो कुछ समय बाद ही एक देश और एक चुनाव को लेकर बहस शुरू हो गई। प्रधानमंत्री मोदी कई बार वन नेशन-वन इलेक्शन की वकालत कर चुके हैं। 2018 में बीजेपी राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे अमित शाह ने विधि आयोग को एक पत्र लिखकर 'एक राष्ट्र, एक चुनाव' की बात कही थी। इसके बाद भी यह मुद्दा कई बार उठा है, लेकिन इसपर पूर्ण सहमति नहीं बन पाई है।
लॉ कमीशन की रिपोर्ट क्या कहती है?
दिसंबर 2015 में लॉ कमीशन ने वन नेशन-वन इलेक्शन पर एक रिपोर्ट पेश की थी। इसमें बताया गया था कि अगर देश में एक साथ ही लोकसभा और विधानसभा चुनाव कराए जाते हैं, तो इससे करोड़ों रुपए बचाए जा सकते हैं। इसके साथ ही बार-बार चुनाव आचार संहिता न लगने की वजह से डेवलपमेंट वर्क पर भी असर नहीं पड़ेगा।
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