A
Hindi News भारत राष्ट्रीय Rajat Sharma’s Blog : बिहार में सरकारी स्कूलों की दुर्दशा

Rajat Sharma’s Blog : बिहार में सरकारी स्कूलों की दुर्दशा

बिहार में 18 साल से नीतीश कुमार राज कर रहे हैं. 18 साल में स्कूलों में शिक्षक नहीं रख पाए, कुर्सी टेबल नहीं बनवा पाए, सरकारी स्कूलों में लड़कियों बेहोश होकर गिर रही है. इतना महान काम करने के बाद क्या बेटियों को नीतीश कुमार के सामने नतमस्तक होना चाहिए?

इंडिया टीवी के चेयरमैन एवं एडिटर-इन-चीफ रजत शर्मा।- India TV Hindi Image Source : इंडिया टीवी इंडिया टीवी के चेयरमैन एवं एडिटर-इन-चीफ रजत शर्मा।

बिहार में सरकारी स्कूलों की बदहाली अत्यन्त दुर्भाग्यपूर्ण है. इन छात्र-छात्राओं का दर्द, उनका गुस्सा, उनकी पीड़ा, उनकी तड़प देखकर आप चौंक जाएंगे. बिहार के स्कूलों में बेहोश होकर गिरतीं छात्राओं को देखकर आपके रोंगटे खड़े हो जाएंगे. स्कूलों का हाल इतना बुरा है कि आप कल्पना भी नहीं कर सकते. जहां स्कूल है, वहां  क्लासरूम नहीं है. अगर कहीं क्लासरूम है, तो वहां शिक्षक नहीं है. क्या आप सोच सकते हैं कि एक-एक क्लास रूम में 200 बच्चों को भर दिया जाए? गणित, विज्ञान, गृह विज्ञान, इतिहास, भूगोल, हिन्दी, उर्दू, सारे विषयों के छात्र एक ही क्लासरूम  में एक साथ बैठे दिखाई दे रहे हैं और स्कूल में एकमात्र शिक्षक सिर्फ जीवविज्ञान का है. क्या आप यकीन करेंगे कि किसी स्कूल में बच्चों को आने से सिर्फ इसलिए रोक दिया जाए क्योंकि स्कूल में जगह नहीं हैं? और इससे भी ज्यादा हैरानी की बात कि स्कूल में शिक्षक नहीं है, क्लासरूम  में जगह नहीं है, बच्चों को स्कूल आने से रोक जा रहा है, लेकिन सबको इम्तिहान देना लाज़िमी है. और फरमान ये कि इम्तहान का एडमिट कार्ड तभी मिलेगा जब स्कूल में उपस्थिति 75  प्रतिशत से ज्यादा हो. इससे बड़ा मज़ाक और क्या हो सकता है? ये जानकर आप का खून खौल उठेगा कि क्लासरूम में ज्यादा संख्या के कारण रोज़ आठ- दस लड़कियां बेहोश होकर अस्पताल पहुंचतीं हैं. अगर बिहार के सरकारी स्कूलों की ये बेहाली, ये बेबसी हमारी तहक़ीक़ात में सामने आई. बात सिर्फ एक दो जिले की नहीं है, वैशाली, जहानाबाद, गोपालगंज, हाजीपुर और औरंगाबाद जैसे कई जिलों में हमारे संवाददाता सरकारी स्कूलों में गए और जो कड़वा सच सामने आया, वो रोंगटे खड़े करने वाला है. आप बिहार की बेटियों की बात सुनेंगे तो आपको गुस्सा भी आएगा और दुख भी होगा. विडंबना ये है कि बिहार के स्कूलों की हालत की सच्चाई एक सरकारी आदेश के कारण ही सामने आई. बिहार के शिक्षा विभाग के अवर प्रमुख सचिव  के. के. पाठक ने एक आदेश जारी किया जिसमें कहा गया कि सरकारी स्कूलों में बच्चों की 75 प्रतिशत उपस्थिति अनिवार्य होगी. जिन बच्चों की अटेंडेंस 75 परसेंट से कम होगी, उन्हें इम्तेहान में बैठने की अनुमति नहीं मिलेगी, वे अनुत्तीर्ण माने जाएंगे.

वैशाली जिले में मंगलवार को सरकारी गाड़ी पर छात्राओं ने पत्थर बरसाये. ये लड़कियां वैशाली के महनार इलाके के सरकारी गर्ल्स स्कूल की छात्राएं हैं.  स्कूल की लड़कियों ने वैशाली में रोड जाम कर दिया. उनका कहना था कि स्कूल में बैठने की जगह नहीं हैं, पढ़ाने वाले शिक्षक नहीं हैं. एक ही क्लासरूम में कई कक्षाओं की लड़कियों को एक साथ बैठा दिया जाता है. उमस और गर्मी के कारण लड़कियां बेहोश हो रही हैं, अस्पताल पहुंच रही हैं. स्कूल में पानी नहीं है, टॉयलेट नहीं हैं लेकिन लड़कियों की परेशानी सुनने वाला कोई नहीं है. परेशान होकर ये लड़कियां अपने स्कूल बैग के साथ सड़क पर बैठ गईं, ट्रैफिक जाम कर दिया, प्रशासन के खिलाफ नारेबाजी करने लगीं. खबर फैली तो वैशाली की प्रखंड शिक्षा अधिकारी वहां पहुंचीं. उन्होंने पुलिस को भी बुला लिया, लड़कियों को चुपचाप स्कूल जाने या घर जाने को कहा गया. जब इससे बात नहीं बनी तो सरकारी और पुलिसिया रौब दिखाया गया, लेकिन ये बेटियां डरी नहीं. उन्होंने शिक्षा अधिकारी से कह दिया कि वो अपना हक़ मांग रही हैं. स्कूल में सुविधाएं मांग रही हैं, ये कौन सा गुनाह है? वो खामोश नहीं रहेंगी. जब  प्रखंड शिक्षा अधिकारी  अहिल्या कुमारी ने लड़कियों से सख्ती से बात की तो लड़कियों का सब्र जवाब दे गया. उन्होंने अफसर साहिबा का गाड़ी पर पत्थर बरसाने शुरू कर दिए. जब हंगामा बढ़ा तो शिक्षा विभाग के दूसरे अफसर भी मौके पर पहुंच गए. पुलिस भी पहुंच गई. सबने मिलकर लड़कियों को समझाया, बताया कि उनके प्रोटेस्ट से वो कानूनी पचड़ों में फंस जाएंगी. उनके अभिभावकों को कोर्ट कचहरी के चक्कर लगाने पड़ेंगे, इसलिए वो प्रोटेस्ट खत्म करें, घर जाएं. कुछ देर में एसडीओ भी मौके पर पहुंच गए. उन्होंने भी लड़कियों को समझाने की तमाम कोशिश की. इसके बाद लड़कियों ने प्रदर्शन खत्म कर दिया.  छात्राओं का गुस्सा इस बात पर था कि जब स्कूल में बैठ कर पढ़ने की कोई सुविधा ही नहीं है तो छात्रों की 75 प्रतिशत उपस्थिति क्यों अनिवार्य कर दी गयी? जो छात्र स्कूल नहीं जाते थे, वो कोचिंग में पढ़कर सिर्फ परीक्षा देने स्कूल जाते थे. वे बच्चे भी स्कूल पहुंचने लगे और स्कूल में इतने बच्चों को न तो बैठाने की जगह थी, न क्लासरूम्स थे, न शिक्षक थे. हालत ये हो गई कि गर्मी से परेशान लड़कियां स्कूल में बेहोश होकर गिरने लगीं. इसके बाद ये लड़कियां स्कूल से बाहर निकल कर सड़क पर आ गईं, प्रशासन के खिलाफ नारेबाजी करने लगीं और रोड जाम कर दिया. लड़कियों ने इल्जाम लगाया कि पुलिस ने प्रदर्शन से नाराज होकर उनकी पिटाई की.

स्कूल की लड़कियों के इतने उग्र प्रदर्शन के बाद बिहार के स्कूलों की हालत पर चर्चा शुरू हो गई, लेकिन सवाल ये उठा कि लड़कियों ने सिर्फ प्रोटेस्ट किया. क्या वाकई में स्कूल की हालत ऐसी है कि लड़कियों को पथराव करना पड़ा? इसकी हकीकत जानने के लिए मैंने अपने संवाददाता नीतीश चन्द्र को वैशाली के महनार इलाके के उसी स्कूल में भेजा जहां की छात्राओं ने प्रोटेस्ट किया था. जिस वक्त हमारे संवाददाता इस स्कूल में पहुंचे, उस वक्त भी कई लड़कियां चक्कर खाकर गिरीं. स्कूल के शिक्षक उन्हें इलैक्ट्राल पिलाने की कोशिश कर रहे थे. स्कूल में अफरातफरी का माहौल था. जिस क्लास में पचास लड़कियों के बैठने का इंतजाम था, उस क्लास में दो सौ से ज्यादा लड़कियां बैठी थी.. जिस डेस्क पर तीन लड़कियों के बैठने की जगह होती है., उसमें छह से सात लड़कियों को बैठाया गया था. क्लासरूम में जबरदस्त गर्मी और उमस थी.. पंखे चल रहे थे, लेकिन लड़कियों के कपड़े पसीने से भीगे हुए थे. ज्यादा हैरानी की बात ये थी कि जितनी लड़कियां क्लासरूम में थी, उतनी ही लड़कियां क्लासरूम के बाहर थीं  क्योंकि क्लास में बैठने की जगह ही नहीं थी. लड़कियों ने बताया कि वो सिर्फ अटेंडेस लगाने के लिए स्कूल आ रही हैं. स्कूल में न पढ़ाई होती है, न कोई सुविधा है और स्कूल से कई लड़कियां रोज अस्पताल पहुंच रही हैं.  स्कूल के शिक्षक ने बताया कि आज ही छह लड़कियां गर्मी के कारण बेहोश चुकी हैं.  वैशाली के इस सरकारी गर्ल्स स्कूल में 2083 स्टूडेंट्स के नाम हैं. लेकिन इतनी लड़कियों के बैठने का इंतजाम कभी किया ही नहीं गया. अब लड़कियों की अटेंडेंस बढ़ गई तो स्कूल के प्रिसींपल ने लड़कियों को बैठाने का एक नया तरीका निकाला. एक ही क्लासरूम को दो हिस्से में बांटकर.. दो अलग-अलग क्लास के स्टूडेंट्स को एकसाथ बैठा दिया.

आप सोचिए जिस क्लास में एक तरफ नौवीं में पढ़ने वाली लड़कियों को गणित पढ़ाई जा रही हो, उसी क्लास में दूसरी तरफ ग्यारहवीं में पढ़ने वाली लड़कियां जीवविज्ञान की पढ़ाई कर रही हों, तो पढ़ाई कैसे होती होगी? लेकिन बच्चियों के हाथ में कुछ नहीं है, वो मजबूर हैं क्योंकि अटेंडेंस जरूरी है और इम्तेहान देकर पास भी होना है. स्कूल के शिक्षकों ने भी माना कि स्कूल की हालत खराब है, बच्चों की संख्या ज्यादा है, गर्मी बढ़ती है तो कोई न कोई बच्ची बेहोश हो जाती है. इस स्कूल में सिर्फ क्लासरूम में ही नहीं, कॉरिडोर में भी कक्षाएं चल रही थी और इससे भी ज्यादा हैरानी की बात ये है कि अर्थशास्त्र की कक्षा में इतिहास, राजनीति विज्ञान, और दूसरे विषय की लड़कियां भी बैठी हैं, क्योंकि उनके बैठने के लिए कोई और जगह नहीं है. ग्यारहवीं की जिस कक्षा में सिर्फ पांच लड़कियां अर्थशास्त्र की हैं, वहीं उससे दस गुना लड़कियां दूसरे विषयों की बैठी हैं. शिक्षक का कहना है कि वो क्या करें, मजबूर हैं. जब प्रशासन को ये पता लगा कि इंडिया टीवी की टीम महनार के सरकारी स्कूल में पहुंची है, इंडिया टीवी की टीम के सामने कई लड़कियां बेहोश हो गईं, तो शिक्षा विभाग के अफसर दौड़ते भागते स्कूल पहुंचे, हालात का जायजा लिया, फिर ये तय किया गया कि स्कूल को दो शिफ्ट में चलाया जाएगा. कुछ क्लास की छात्राओं को सुबह की शिफ्ट में बुलाया जाएगा, कुछ को दोपहर की शिफ्ट में, लेकिन इस फैसले पर लड़कियों ने आपत्ति जताई. कहा, वो दूर दूर से पैदल चल कर या साइकिल से स्कूल आती हैं, इतनी गर्मी में, उमस में, दोपहर के वक्त साइकिल से स्कूल आना मुश्किल है. जब तमाम लड़कियों ने दो शिफ्ट का विरोध किया तो ये तय हुआ कि फिलहाल नौवीं की क्लास को सस्पेंड रखा जाए. कुछ दिनों तक नौवीं की क्लास नहीं होगी. नौवीं के तीन सेक्शंस के बच्चों को छुट्टी दे दी गई लेकिन लड़कियों ने इसका भी विरोध किया. कहा, कि अगर स्कूल में छात्राएं ज्यादा हैं, क्लासरूम में बैठने की जगह नहीं है, तो ये उनकी गलती नहीं है. उन्हें इसकी सज़ा क्यों दी जा रही है?उनकी पढ़ाई का नुकसान क्यों किया जा रहा है? अगर अटैंडेंस कम होगी तो परीक्षा देने से रोंकेंगे. अगर अटैंडेंस में छूट भी दे दी तो बिना पढ़े वो परीक्षा कैसे देंगी? 

इंडिया टीवी की टीम वैशाली के एक और सरकारी स्कूल में गई. .देसरी इलाके के मिडिल स्कूल में 580 बच्चे पढ़ते हैं लेकिन स्कूल में बच्चों के बैठने के लिए एक भी बेंच नहीं हैं. बच्चे जमीन पर टाट की बोरी पर बैठकर पढ़ते हैं.  टाट की बोरी भी खुद घर से लाते हैं. जिस क्लास रूम में बच्चे बैठते हैं, उसकी दीवारों का प्लास्टर उखड़ गया है, क्लासरूम में जबरदस्त सीलन है और सीलन भरे क्लासरूम में एक पंखा भी नहीं है. सिर्फ वैशाली नहीं, दूसरे जिलों के सरकारी स्कूलों का भी यही हाल था.  वैशाली से करीब 80 किलोमीटर दूर जहानाबाद जिले के सरकारी स्कूलों में भी हमारी टीम गयी. यहां गांव की बात तो छोड़िए, शहर के सरकारी स्कूलों का भी हाल वैशाली के स्कूल से अलग नहीं था.  जहानाबाद के महर्षि पतंजलि मिडिल स्कूल  में पहली से लेकर आठवीं क्लास तक के बच्चे पढ़ते हैं लेकिन पूरे स्कूल में सिर्फ एक क्लासरूम है. ये स्कूल दो शिफ्ट में चल रहा है. छठवीं से आठवीं कक्षा तक के बच्चे सुबह की शिफ्ट में पढ़ते हैं और पहली से पांचवीं तक के बच्चों को दोपहर की शिफ्ट में पढ़ाया जाता है. चूंकि क्लासरूम एक ही है इसलिए ज्यादातर बच्चों की क्लास स्कूल के बरामदे में लगती है. ये स्कूल 1970 से चल रहा है. लेकिन स्कूल में क्लासरूम का इंतजाम नहीं हो पाया. स्कूल की जो जमीन है, उस पर भी लोगों ने कब्जा कर लिया है. स्कूल के शिक्षक ने कहा कि वो प्रशासन से कह कर थक गए, कोई सुनता ही नहीं है, इसलिए जो है, उसी में काम चला रहे हैं, जैसे तैसे बच्चों को पढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं. 

अब बारी थी प्राइमरी स्कूलों की. प्राइमरी स्कूल तक पहुंचने के लिए पहले आपको कच्ची पगडंडी से गुजरना होगा, वो भी दूसरे के खेत से होकर जाती है. चारों तरफ बड़ी बड़ी घास है. बारिश हो जाए तो स्कूल तक पहुंचना किसी जंग लड़ने से कम नहीं होता. सांप बिच्छू का डर अलग. ये स्कूल जिला मुख्यालय से सिर्फ 6 किलोमीटर दूर चंदौली गांव में हैं. स्कूल की हालत जर्जर है, क्लासरूम की फर्श टूटी है, दीवार खराब है. यहां भी स्कूल के नाम पर सिर्फ दो तीन कमरे हैं और दो शिक्षक हैं. न बेंच हैं, न पीने का पानी है. एक टॉयलेट जरूर है जिस पर हमेशा ताला लटका रहता है. औरंगाबाद में स्कूल के आसपास घास उग आई थी लेकिन गोपालगंज में तो स्कूल की बिल्डिंग पर घास उग आई है. स्कूल की छत कब गिर जाए, इसका कोई भरोसा नहीं हैं. इसलिए स्कूल के शिक्षक छोटे बच्चों की जिंदगी खतरे में डालने का जोखिम  नहीं उठाना चाहते. पांचवीं क्लास तक के बच्चों को स्कूल के दर्शन कराते हैं और उन्हें मैदान में पेड़ के नीचे बैठाकर पढ़ाते हैं. बच्चों की क्लास खुले आसमान के नीचे होती है. अगर बारिश हो जाए तो स्कूल में बिना कहे छुट्टी हो जाती है. स्कूल के तीन कमरों की हालत ठीक है, इसलिए छठवीं, सातवीं और आठवीं के बच्चों की क्लास उन्ही कमरों में होती है, लेकिन इन बच्चों की मुश्किल ये है कि सभी विषयों के शिक्षक नहीं हैं. जो हैं, उन्हीं से सारे विषय पढ़ लेते हैं. 

बिहार के स्कूलों की ये दुर्दशा देखकर इंडिया टीवी ने नीतीश कुमार की सरकार के मंत्रियों से बात करने की कोशिश की लेकिन कोई मंत्री बात करने को तैयार नहीं हुआ. बिहार में इस वक्त जेडीयू और आरजेडी की सरकार है इसलिए इन दोनों पार्टियों के नेताओं ने स्कूलों की दुर्दशा पर कुछ भी कहने से इंकार कर दिय़ा. जेडीयू के नेता के.सी. त्यागी ने कहा, ऐसा मामला दूसरे राज्यों में भी है. RJD के  मनोज झा ने बच्चियों के प्रदर्शन को ही गलत ठहरा दिया, कहा, स्कूल में जो गड़बड़ी सामने आई है, उस पर एक्शन ज़रूर होगा. मुझे जेडी-यू नेता ललन सिंह का बयान याद आ रहा है. वो दो दिन पहले  कह  रहे थे, नीतीश कुमार ने नालंदा यूनीवर्सिटी को पुनर्जीवित कर दिया, नरेन्द्र मोदी को नीतीश कुमार के सामने नतमस्तक होना चाहिए. ललन सिंह कह रहे थे कि नीतीश ने शिक्षा के क्षेत्र में इतना बड़ा काम किया है, जिसे दिखा कर मोदी दुनिया भर की वाहवाही लूट रहे हैं. अब कोई ललन सिंह से पूछे कि बिहार में 18 साल से नीतीश कुमार राज कर रहे हैं. 18 साल में स्कूलों में शिक्षक नहीं रख पाए,  कुर्सी टेबल नहीं बनवा पाए, सरकारी स्कूलों में लड़कियों बेहोश होकर गिर रही है. इतना महान काम करने के बाद क्या बेटियों को नीतीश कुमार के सामने नतमस्तक होना चाहिए? हो सकता है कल कुछ बेशर्म नेता ये भी कह दें कि बेटियों ने सड़क पर प्रदर्शन विपक्ष के उकसावे पर किया. हो सकता है कि ये भी कहा जाए कि ये लड़कियां झूठ बोल रही हैं. शिक्षक सरकार को बदनाम करने की साजिश कर रहे हैं. लड़कियां बेहोश होने का नाटक कर रही हैं और अगर वैशाली में प्रदर्शन करने वाली लड़कियों के खिलाफ सरकारी काम में बाधा डालने,  अफसर की गाड़ी पर पथराव करने, पुलिस वालों को घायल करने के इल्जाम में मुकदमा दर्ज कर दिया जाए तो हैरानी नहीं होनी चाहिए. क्योंकि ये खबर भी आ गई है कि लड़कियों के प्रदर्शन में एक एसआई पूनम कुमारी घायल हुई हैं, उन्हें अस्पताल में भर्ती होना पड़ा. इसका मतलब है कि अपनी पढ़ाई के लिए प्रोटेस्ट करने वाली, अपना हक़ मांगने वाली लड़कियों के खिलाफ मुकदमे की पृष्ठभूमि बन चुकी है. जो सरकार स्कूलों में लड़कियों के बैठने का इंतजाम न करे, और पचहत्तर परसेंट अटेंडेश कम्पल्सरी होने का फरमान जारी कर दे, वो सरकार कुछ भी कर सकती है. सोचिए, जिस देश में ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ की मुहिम चल रही हो, जिस देश की बेटियां दुनिया में नाम रौशन कर रही हों, जिस देश की बेटियां फाइटर जेट उड़ा रही हों,  जिस देश की महिला वैज्ञानिक चन्द्रयान को चांद पर पहुंचा रही हों, उस देश में अगर बेटियों को अपनी पढ़ाई के लिए सड़क पर आना पड़े, तो इससे ज्यादा शर्मनाक बात और क्या हो सकती है? लेकिन नीतीश कुमार को फिलहाल स्कूल की टेंशन नहीं है क्योंकि वह आजकल विरोधी दलों को एकता का पाठ पढ़ा रहे हैं. उनका ध्यान विपक्षी एकता पर लगा हुआ है.. (रजत शर्मा)

देखें: ‘आज की बात, रजत शर्मा के साथ’ 13 सितंबर, 2023 का पूरा एपिसोड

Latest India News