Rajat Sharma’s Blog: योगी ने यूपी में सभी वक्फ संपत्तियों के सर्वे का आदेश क्यों दिया?
सियासत करने वाले समझा रहे हैं कि सर्वे में सिर्फ यह पता लगेगा कि कितनी सरकारी जमीन पर वक्फ का कब्जा है, लेकिन यह आधा सच है।
उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार ने सुन्नी और शिया सेंट्रल वक्फ बोर्डों की सभी संपत्तियों के सर्वे का आदेश दिया है। सर्वे का मकसद संपत्तियों के स्वामित्व में गड़बड़ियों का पता लगाना है, साथ ही इस बात का भी पता लगाना है कि किन लोगों ने इन संपत्तियों पर गैरकानूनी तरीके से कब्ज़ा किया।
यूपी में करीब 1,62,229 वक्फ संपत्तियां हैं, जिनमें सुन्नी वक्फ बोर्ड नाम लगभग 1,50,000 संपत्तियां और शिया वक्फ बोर्ड के नाम लगभग 12,229 संपत्तियां रजिस्टर्ड हैं। इन संपत्तियों की कीमत हजारों करोड़ रुपये में है।
वक्फ और हज मामलों के मंत्री धर्मपाल सिंह ने कहा, 'सर्वे अच्छे इरादे से किया जा रहा है और सबसे पहले वक्फ संपत्तियों की पहचान करने के आदेश दिए गए हैं।' सर्वे का आदेश सभी जिलाधिकारियों को भेज दिया गया है और उन्हें एक महीने के भीतर ब्योरा देने को कहा गया है।
सर्वे का मकसद यह पता लगाना है कि क्या वक्फ संपत्तियों पर व्यक्तियों या संगठनों ने अवैध रूप से कब्जा कर रखा है। इस्लामी परंपराओं के मुताबिक, धार्मिक और कल्याणकारी कार्यों के लिए दान की जाने वाली संपत्तियां 'वक्फ' की श्रेणी में आती हैं, जिसका मतलब होता है, दीन के काम के लिए दान दी गई वस्तु या संपत्ति। एक बार दान की गई इस संपत्ति को ‘अल्लाह की संपत्ति’ माना जाता है।
राज्य सरकार को ऐसी तमाम शिकायतें मिली थीं जिनमें कहा गया था कि वक्फ बोर्ड के कुछ सदस्यों को रिश्वत देकर वक्फ की संपत्तियों को मार्केट रेट से काफी कम कीमत पर बेच दिया गया। यह भी पता चला कि बोर्ड के कुछ सदस्यों ने अपने करीबियों को वक्फ संपत्तियों का केयरटेकर (मुतवल्ली) बनाया, और उन्होंने तमाम तिकड़में लगाकर प्रॉपर्टी पर कब्जा कर लिया। वक्फ की संपत्ति को ‘अल्लाह की संपत्ति’ माना जाता है क्योंकि यह लोगों की दान की हुई जायदाद होती है। ऐसी संपत्ति का इस्तेमाल इमामबाड़े, मस्जिदें, मदरसे, कब्रिस्तान, ईदगाह और कर्बला के लिए होता है।
वक्फ की संपत्तियों का इस्तेमाल दीन की बेहतरी के लिए, गरीब मुसलमानों की भलाई के लिए, स्कूल-कॉलेज और हॉस्टल बनाने में होता है। इस संपत्ति में अगर कोई कॉमर्शल प्रॉपर्टी है तो उससे होने वाली आमदनी भी मुसलमानों की बेहतरी में ही खर्च होती है।
वक्फ की संपत्तियों की देखरेख की जिम्मेदारी वक्फ बोर्ड पर है। स्थानीय स्तर पर वक्फ बोर्ड की तरफ से मुतवल्ली या केयरटेकर नियुक्त किए जाते हैं, बस यहीं खेल हो जाता है। बहुत सी जगहों पर मुतवल्लियों ने प्रॉपर्टी डीलर्स और दूसरे लोगों के साथ साठ-गांठ करके, वक्फ की संपत्ति औने-पौने दाम में बेच दी या अवैध कब्जे करवा दिए। इन वक्फ संपत्तियों पर कब्जा जमाने के लिए लाखों-करोड़ों रुपये की रिश्वत दी जाती है। मिसाल के तौर पर, दिल्ली में आम आदमी पार्टी के विधायक अमानतुल्ला खान पर यही इल्जाम है कि उन्होंने मदरसे को तोड़ कर दुकानें बनवा दीं। इन दुकानों को मामूली किराये पर चढ़ा दिया जाता था और बदले में करोड़ों रुपये की रिश्वत वसूल ली जाती थी।
यूपी शिया वक्फ बोर्ड के चेयरमैन अली जैदी के मुताबिक, वक्फ की संपत्ति लैंड माफिया का पसंदीदा निशाना बन चुकी है। वक्फ बोर्ड का कानून साफ कहता है कि इसकी किसी भी प्रॉपर्टी को मार्केट वैल्यू से 2.5 पर्सेंट से कम किराये या लीज पर नहीं दिया जा सकता, और 11 महीने से ज्यादा का रेंट और लीज एग्रिमेंट नहीं हो सकता, लेकिन इन नियमों की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं।
अली जैदी ने यूपी सरकार से वक्फ की 6 संपत्तियों पर अवैध कब्जों की शिकायत की थी। इनमें लखनऊ में ठाकुरगंज की मोती मस्जिद, महानगर के कब्रिस्तान, लालबाग का इमामबाड़ा, प्रयागराज का छोटा कर्बला शामिल हैं। इसी तरह प्रयागराज के गुलाम हैदर इमामबाड़े के एक बड़े हिस्से को भू-माफिया ने अवैध रूप से बेच दिया था, और कुछ हिस्से को किराए पर दे दिया था।
प्रयागराज के इस इमामबाड़े की जमीन पर अवैध कब्जे का इल्जाम इसके मुतवल्ली वकार रिजवी पर था। वकार रिजवी को उस वक्त के शिया वक्फ बोर्ड के चेयरमैन वसीम रिजवी ने मुतवल्ली बनाया था। बाद में इमामबाड़े की जमीन पर हुए अतिक्रमण पर बुलडोजर चला और मामले की जांच CBI को सौंप दी गई थी। इमामबाड़े की तरफ से हाई कोर्ट में पैरवी करने वाले वकील फरमान नकवी ने बताया कि वक्फ की संपत्ति में हेराफेरी की ये पूरी साजिश शिया वक्फ बोर्ड के पूर्व चेयरमैन वसीम रिजवी ने ही रची थी।
एक अनुमान के मुताबिक, उत्तर प्रदेश में वक्फ की 60 से 70 फीसदी संपत्ति पर अवैध कब्जे हैं। देश भर में 2009 तक वक्फ के पास करीब 4 लाख एकड़ जमीन थी, जो 2022 में बढ़कर 8 लाख एकड़ हो गई। सेना और रेलवे के बाद सबसे ज्यादा प्रॉपर्टी के मामले में वक्फ तीसरे नंबर पर आता है। अधिकांश राज्यों में वक्फ बोर्ड पर जो लोग काबिज हैं, वे अपने लोगों को मुतवल्ली बनाकर ऐसी संपत्तियों पर कब्जा कर लेते हैं। कई बार इसका उल्टा भी होता है, और सरकारी जमीनों के साथ-साथ निजी जमीनों को भी वक्फ की संपत्ति बताकर उसपर कब्जा कर लिया जाता है।
वक्फ के नाम पर क्या-क्या होता है, इसका एक बहुत ही हैरान करने वाला उदाहरण आपको बताता हूं। तमिलनाडू के तिरुचिरापल्ली जिले के एक पूरे के पूरे गांव को वक्फ की प्रॉपर्टी बता दिया गया। इस गांव में हिंदुओं की आबादी ज्यादा है। गांव में 150 साल पुराना मंदिर है। फिर भी इस गांव के लोगों के पुश्तैनी घरों और उनकी जमनी को वक्फ की प्रॉपर्टी बताकर उन पर कब्जा करवाने की मांग की गई थी। गांव के लोगों को जमीन बेचने के लिए वक्फ से NOC (अनापत्ति प्रमाण पत्र) लेनी पड़ रही थी, यह साबित करना पड़ रहा था कि जमीन उनकी है, वक्फ बोर्ड की नहीं।
चूंकि दस्तावेजों में हेरफेर करके इस तरह की गड़बड़ियां की जाती हैं, इसलिए यूपी सरकार द्वारा सर्वे कराने का फैसला एक स्वागत योग्य कदम है। एक और उदाहरण है। प्रयागराज में प्रसिद्ध चंद्रशेखर आजाद पार्क (पूर्व में अल्फ्रेड पार्क), जहां 1931 में अंग्रेजों से लड़ते हुए महान क्रांतिकारी ने खुद को गोली मार ली थी, को इलाहाबाद हाई कोर्ट के सामने वक्फ संपत्ति के रूप में दिखाया गया था। ऐसे ही हजारों मामले हैं, और राज्यव्यापी सर्वे करने के योगी आदित्यनाथ के कदम का समर्थन मुस्लिम उलेमा भी कर रहे हैं।
योगी सरकार का आदेश 1989 के बाद रजिस्टर्ड हुईं सभी वक्फ संपत्तियों के सर्वे से संबंधित है। AIMIM सुप्रीमो असदुद्दीन ओवैसी ने सवाल किया कि 1989 को कट-ऑफ वर्ष क्यों तय किया गया। यूपी सरकार के सूत्रों ने बताया कि 7 अप्रैल 1989 को मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी के नेतृत्व वाली तत्कालीन कांग्रेस सरकार के राजस्व विभाग ने एक आदेश जारी किया था जिसके तहत बंजर भूमि को वक्फ संपत्ति के रूप में ‘अवैध रूप से रजिस्टर्ड’ किया गया था।
आदेश में कहा गया था कि राज्स्व रिकॉर्ड में चूंकि वक्फ की कई संपत्तियां बंजर, ऊसर, भीटा आदि के तौर पर दर्ज है, उन्हें दुरूस्त करके कब्रिस्तान, मस्जिद या ईदगाह के तौर पर दर्ज की जाए। इस आदेश का असर यह हुआ कि तमाम जगहों पर सरकारी जमीन और ग्राम पंचायतों की जमीन वक्फ की संपत्ति के तौर पर दर्ज हो गई।
इसी साल 7 सितंबर को योगी सरकार ने 1989 के राजस्व विभाग के आदेश को रद्द कर दिया था। इसने सभी डिविजनजल कमिश्नरों और जिलाधिकारियों को एक महीने के भीतर राजस्व रिकॉर्ड को सही करने के लिए 1989 के आदेश के तहत की गई सभी कार्यवाहियों की जांच करने का निर्देश दिया था। वक्फ संपत्तियों का सर्वे भी 8 अक्टूबर तक पूरा कर लिया जाएगा।
AIMIM सुप्रीमो असदुद्दीन ओवैसी ने 1989 की समयसीमा पर सवाल उठाते हुए आरोप लगाया कि यूपी सरकार मुसलमानों को निशाना बना रही है। उन्होंने कहा, ‘यह मदरसों और वक्फ संपत्तियों के सर्वे पर ही नहीं रुकेगा। यूपी सरकार वक्फ संपत्तियों पर कब्जा करना चाहती है।’
समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा, 'जो लोग यूपी को एक ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने की बात कर रहे थे, वे अब हिंदू मुसलमान के मुद्दों पर पब्लिक को उलझा रहे हैं। योगी जी को बताना चाहिए कि क्या ऐसे ही यूपी एक देश की इकनॉमी का पावर हाउस बनाएंगे। एक ट्रिलियन डॉलर की इकनॉमी सर्वे करने से बन जाएगी?’
इस साल 21 फरवरी को केंद्र सरकार ने सभी राज्य सरकारों को एक चिट्ठी भेजकर सर्वे करने के बाद अपने लैंड रिकॉर्ड्स को सही करने के लिए कहा था, क्योंकि रेवेन्यू रिकॉर्ड्स में वक्फ की संपत्तियों के कई व्यक्तियों और निजी संगठनों के नाम पर रजिस्टर्ड होने के बारे में तमाम शिकायतें मिली थीं।
इसी चिट्ठी के मिलने के बाद योगी सरकार ने सभी जिलाधिकारियों को वक्फ संपत्तियों का सर्वे करने का निर्देश दिया। उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने कहा कि राज्य सरकार वक्फ संपत्तियों पर से अवैध कब्जे को हटाने की कोशिश करेगी, और इनका इस्तेमाल गरीब मुसलमानों के कल्याण के लिए किया जाएगा।
वक्फ की संपत्ति पर सियासत करने की बजाय इस मामले को समझने की जरूरत है। सियासत करने वाले समझा रहे हैं कि सर्वे में सिर्फ यह पता लगेगा कि कितनी सरकारी जमीन पर वक्फ का कब्जा है, लेकिन यह आधा सच है। असल में सर्वे से यह भी पता चलेगा कि वक्फ की कितनी जमीन पर गैरकानूनी कब्जे हैं।
सर्वे में उन लोगों के नाम और चेहरे भी सामने आएंगे जिन्होंने अवैध तरीके से वक्फ संपत्तियों को कौड़ियों के दाम किराए पर ले रखा है और उन पर कब्जा जमा लिया है। इससे आखिरकार वक्फ बोर्ड और गरीब मुसलमानों को ही फायदा होगा। मुस्लिम छात्रों के लिए स्कूल और कॉलेज की जगह मिलेगी, कब्रिस्तानों के लिए जमीन मिलेगी, और वक्फ की आमदनी बढ़ेगी।
सर्वे से उन लोगों की दुकानें बंद हो जाएंगी जो वक्फ की जायदाद पर कब्जा करके बैठे हैं। उससे उन्हीं लोगों को दिक्कत हो रही है। यह सर्वे सिर्फ उत्तर प्रदेश सरकार का ही नहीं है, बल्कि केंद्र सरकार ने भी सभी राज्यों में वक्फ की संपत्तियों की जानकारी हासिल करने को कहा है। अनुमान तो यह है कि वक्फ बोर्ड देशभर में कुल मिलाकर 8 लाख एकड़ जमीन के मालिक हैं, लेकिन इस बारे में कोई पक्का रिकॉर्ड नहीं है। सभी वक्फ संपत्तियों का देशव्यापी सर्वे इसीलिए जरूरी है। (रजत शर्मा)
देखें: ‘आज की बात, रजत शर्मा के साथ’ 21 सितंबर, 2022 का पूरा एपिसोड