Rajat Sharma’s Blog: मदरसों का आधुनिकीकरण क्यों जरूरी है?
यूपी सरकार राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग की सिफारिश पर प्राइवेट मदरसों का सर्वे करवा रही है।
यूपी और बिहार के ज़्यादातर प्राइवेट मदरसों की हालत आज की तारीख में बेहद खराब है। मैं इसके बारे में विस्तार से बताऊंगा लेकिन सबसे पहले मैं आपको यह बताना चाहता हूं कि मंगलवार को मौलानाओं और उलेमा ने यूपी सरकार के गैर-सहायता प्राप्त मदरसों का सर्वे करने के फैसले के बारे में क्या कहा।
मौलानाओं ने, जिनमें से ज्यादातर यूपी में मदरसे चलाते हैं, जमीयत उलेमा-ए-हिंद द्वारा बुलाई गई एक बड़ी बैठक में हिस्सा लिया। मीटिंग में ज्यादातर उलेमा ने यूपी की योगी सरकार को चेतावनी दी और इल्जाम लगाया कि राज्य सरकार मदरसों की छवि खराब करने की कोशिश कर रही है। दिन भर चली बैठक के अंत में ऐलान किया गया कि उलेमा किसी दबाव में नहीं झुकेंगे। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार मदरसों को हर संभव मदद दे, उनका आधुनिकीकरण करे और मदरसे के छात्रों के लिए बेहतर शिक्षा की व्यवस्था करे। उलेमा ने कहा कि उन्हें सर्वे से कोई दिक्कत नहीं है, लेकिन उनमें से ज्यादातर ने यूपी सरकार की नीयत पर शक जताया। कुछ मौलानाओं ने तो यहां तक कहा कि इस मसले पर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाना चाहिए और अगर जरूरत पड़े तो संसद का घेराव भी करना चाहिए।
ज्यादातर उलेमा सभी गैर सहायता प्राप्त मदरसों का 25 अक्टूबर तक सर्वे पूरा करने के योगी सरकार के आदेश से नाखुश थे। जमीयत द्वारा बुलाई गई बैठक में (1) मामले से निपटने के लिए उलेमाओं की कमेटी बनाने और (2) 24 सितंबर को देवबंद के दारुल उलूम में अगली बैठक में आगे की रणनीति बनाने की बात तय हुई। जमीयत नेता मौलाना महमूद मदनी ने आरोप लगाया कि सरकार अल्पसंख्यक समुदाय को शक की नजर से देख रही है। उन्होंने कहा, राज्य सरकार को मदरसों का सर्वे कराने का आदेश जारी करने से पहले मुस्लिम संगठनों से सलाह मशविरा करना चाहिए था।
कुछ मौलानाओं ने सवाल किया कि क्या सरकार को चंदे से चलने वाले मदरसों का सर्वे करने का हक है। इस मीटिंग में सबसे पहले तो मदरसों के प्रिंसिपल्स को बताया गया कि सरकार का आदेश क्या है, सरकार जो सर्वे कर रही है उसके सवालों के जबाव कैसे देने हैं, अपने रिकॉर्ड्स को दुरूस्त कैसे करना है, आमदनी और खर्चे का हिसाब कैसे रखना है। मजे की बात यह है कि मीटिंग के बाद मौलाना मदनी, मौलाना नियाज अहमद फारूकी या कमाल फारूकी में से किसी ने भी यूपी सरकार के फैसले का विरोध नहीं किया। किसी ने भी यह नहीं कहा कि सरकार गलत कर रही है। सबने कहा कि यूपी सरकार का फैसला ठीक हो सकता है, लेकिन उसकी नीयत पर शक है।
बैठक में कई मौलानाओं ने असम में स्थानीय अधिकारियों द्वारा कुछ मदरसों पर बुलडोजर चलवाने के फैसले का विरोध किया। इन मदरसों के कुछ शिक्षकों के अल कायदा और अन्य कट्टरपंथी संगठनों के साथ संबंध की बात सामने आई थी।
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल बोर्ड के मेम्बर कमाल फारूकी ने कहा कि योगी सरकार ने मदरसों का सर्वे कराने का जो फैसला किया है, वह कानूनी तौर पर सही है। उन्होंने कहा कि हो सकता है कि कुछ मदरसों में कमियां हों, लेकिन ये कमियां सरकारी सर्वे से दूर नहीं होगी, स्टीयरिंग कमेटी इन कमियों को दूर करने में मदरसों की मदद करेगी। लेकिन जमीयत उलेमा-ए-हिंद के नेशनल सेक्रेटरी मौलाना नियाज अहमद फारूकी ने कहा कि मदरसों की हालात मुसलमान खुद ठीक कर लेंगे, और अगर सरकार ने आंख टेढ़ी की तो फिर उसी तरह जवाब दिया जाएगा।
यूपी सरकार प्राइवेट मदरसों का सर्वे राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग की सिफारिश पर करवा रही है। आयोग की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि एक प्राइवेट मदरसे में बच्चों को चेन से बांध कर रखा गया था, जबकि एक दूसरे मदरसे में बच्चों को बेरहमी से पीटा गया था। ऐसी कई घटनाएं सामने आने के बाद यूपी सरकार ने प्राइवेट मदरसों के सर्वे की सिफारिश को मानने का फैसला किया गया। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, यूपी में इस वक्त 16 हजार से ज्यादा मदरसें हैं, जिनमें से सिर्फ 560 मदरसे सरकारी मदद से चलते हैं। यानी कि सिर्फ 3.5 फीसदी मदरसों को सरकारी मदद मिलती है, जबकि बाकी के 96.5 फीसदी मदरसे चंदे से चलते हैं।
मैंने इंडिया टीवी के रिपोर्टर्स से लखनऊ, कानपुर, उन्नाव, बस्ती, गोंडा, गोरखपुर, सहारनपुर, बुलंदशहर, मेरठ, मुरादाबाद और बागपत में गैर सहायता प्राप्त मदरसों की असली हालत देखने को कहा। जब जमीनी हकीकत सामने आई तो पता चला कि ज्यादातर मदरसे बहुत ही बुरी हालत में थे।
मंगलवार की रात अपने प्राइम टाइम शो 'आज की बात' में हमने गाजियाबाद के पास लोनी के एक मदरसे की तस्वीरें दिखाई थीं। इस मदरसे में एक बड़ा हॉल है जिसमें बच्चे रहते भी हैं, उसी में पढ़ते भी हैं और रात को वहीं दरी बिछाकर सो भी जाते हैं। अधिकांश बच्चे गरीब परिवारों से आते हैं और उनके पास फीस देने के लिए पैसे नहीं होते हैं। मदरसे के मैनेजर ने दावा किया कि बच्चों को उर्दू और अरबी के अलावा अंग्रेजी और हिंदी भी पढ़ाई जाती है। इंडिया टीवी के रिपोर्टर ने जब टीचर से बात की, तो पता चला कि अंग्रेजी में उनका हाथ तंग था। 13 से 14 साल तक के बच्चों को अभी ए, बी, सी, डी सिखाई जा रही थी।
इसमें हंसने की कोई बात नहीं है। हम सभी को बैठकर थोड़ा आत्मनिरीक्षण करना चाहिए। इसमें इन बच्चों की कोई गलती नहीं है। उनके पास अच्छे टीचर नहीं हैं, पढ़ने की सुविधा नहीं है। आमतौर पर स्कूल जाने वाले बच्चों के सपने बड़े होते हैं। वे डॉक्टर, आईएएस, पीसीएस, साइंटिस्ट या इंजीनियर बनना चाहते हैं, लेकिन जब हमारे रिपोर्टर ने मदरसे के बच्चों से पूछा तो उनमें से ज्यादातर ने कहा कि वे काजी, हाफिज, मुफ्ती या मौलाना बन जाएं, वही बहुत है।
मेरठ में स्थित एक दूसरे मदरसे का हाल गाजियाबाद के मदरसे से बेहतर था। यहां कमरे ठीक-ठाक बने थे, खिड़की दरवाजे ठीक थे, कमरे में दरियां बिछी थीं, और बच्चों के पास पढ़ाई के लिए छोटी-सी डेस्क भी थी। लेकिन मदरसे में सिर्फ दीनी तालीम पर जोर दिया जाता है, कुरान और अरबी पढ़ाई जाती है। इंग्लिश, साइंस और मैथ्स जैसे सब्जेक्ट्स से यहां के बच्चों का ज्यादा वास्ता नहीं था।
ज्यादातर प्राइवेट मदरसों का न तो को सिलेबस होता है, न उनके विषय तय होते हैं और न ही शिक्षकों की योग्यता तय होती है। ये मदरसे चंदे से चलाए जाते हैं। हमारे संवादातता मेरठ के एक दूसरे मदरसे में गए। यह मदरसा कई साल से चल रहा है, और लोगों की मदद से बिल्डिंग बन गई है। इस मदरसे में कुर्सी और टेबल का इंतजाम भी हो गया है, शिक्षक भी ठीक-ठाक हैं, लेकिन दिक्कत यह है कि बच्चों को सिर्फ उर्दू में तालीम मिल रही है। शिक्षकों को भी थोड़ी ठीक सैलरी मिल जाती है।
मेरे कहने का मतलब है कि अगर यूपी सरकार एक सर्वे करवा कर ये सारी डिटेल इकट्ठा करना चाहती है, और मदरसों की हालत में सुधार करना चाहती है, तो इसमें दिक्कत क्या है? यदि राज्य सरकार किसी तरह की मदद देगी तो मदरसों को निश्चित रूप से अच्छे शिक्षक मिलेंगे और छात्रों को आधुनिक शिक्षा मिलेगी। मेरठ के मदरसे में 4 शिक्षक थे जिन्हें हर महीने 13,000 रुपये सैलरी दी जाती है। यह पैसा मोहल्ले के लोग चंदे के जरिए जुटाते हैं।
मुझे लगता है कि ओवैसी जैसे मुस्लिम नेताओं को इन मदरसों में जाना चाहिए और देखना चाहिए कि वहां बच्चे किन हालात में पढ़ाई कर रहे हैं। ज्यादातर मदरसे एक या दो कमरों के घर में चल रहे हैं। छोटे-छोटे शहरों या गांव की तो बात ही छोड़ दीजिए, यूपी की राजधानी लखनऊ में भी घरों में मदरसे चल रहे हैं। हमारी संवाददाता रुचि कुमार लखनऊ के काकोरी इलाके में गई, और पाया कि वहां भी घर के अंदर मदरसा चल रहा था। वहां एक कमरा था जिसमें मौलवी कुरान और उर्दू के साथ-साथ इंग्लिश और गणित भी पढ़ा रहे थे, लेकिन न तो इन सब्जेक्ट्स का कोई कोर्स था और न ही किसी बोर्ड की किताबें थीं।
लखनऊ में बेशक कुछ मान्यता प्राप्त आलीशान मदरसे भी हैं जो सरकारी मदद से चलाए जा रहे हैं। लखनऊ के ऐशबाग में स्थित दारुल उलूम फिरंगी महल मदरसे में सभी आधुनिक सुविधाएं मौजूद हैं। यहां लड़के और लड़कियां, दोनों पढ़ाई करते हैं। दीनी तालीम के साथ-साथ साइंस, मैथ्स, हिंदी, इंग्लिश, हिस्ट्री और कम्प्यूटर साइंस, सारे सब्जेक्ट्स पढ़ाए जाते हैं। मदरसे में कुरान शरीफ के साथ-साथ NCERT की किताबें भी पढ़ाई जाती हैं। यहां बड़े-बड़े क्लास रूम हैं, प्लेग्राउंड है और एक बड़ी लाइब्रेरी भी है।
जब छात्रों को आधुनिक शिक्षा मिलती है तो उसका नजरिया भी पूरी तरह बदल जाता है। छात्र भी ये समझने लगते हैं कि उनके सामने करियर के कितने विकल्प हैं। लखनऊ के इस बड़े मदरसे के छात्रों ने खुलकर कहा कि उन्हें डॉक्टर और इंजीनियर बनना है। मौलाना खालिद रशीद फिरंगीमहली ने कहा कि उनका मकसद बच्चों को दीन के साथ दुनिया की भी तालीम देना है। उन्होंने कहा, ‘जब हमारी बेटियां आगे बढ़ेंगी, तभी देश आगे बढ़ेगा।’
योगी आदित्यनाथ की सरकार का प्राइवेट मदरसों के सर्वे के पीछे का मकसद सभी मुस्लिम बच्चों को बराबरी का मौका देना है। यूपी के अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री दानिश अली अंसारी ने कहा कि सर्वे को लेकर जो कंफ्यूजन फैलाया जा रहा है वह ठीक नहीं है। उन्होंने कहा, ‘हमारी सरकार का मकसद मदरसों की हालत को बेहतर करना है, जिससे मुस्लिम बच्चों को अच्छी शिक्षा और रोजगार मिल सके।’
दो बातें तो साफ हैं। एक तो यह कि सारे मदरसों की हालत खराब नहीं है। बहुत सारे मदरसे ऐसे हैं जिनमें पढ़ाई का अच्छा इंतजाम है, अच्छे क्लासरूम हैं, अच्छे शिक्षक हैं। कई मदरसों में कंप्यूटर से लेकर कुरान तक सारे विषयों की पढ़ाई होती है। लेकिन यह भी सच है कि ज्यादातर मदरसों की हालत खराब है। वहां न तो अच्छे क्लासरूम हैं, न ही प्रशिक्षित शिक्षक हैं और न ही पढ़ाई के लिए जरुरी सुविधाएं हैं।
दूसरी बात यह कि मौलाना मदनी को भी सर्वे से शिकायत नहीं है, लेकिन उन्हें योगी सरकार की नीयत पर शक जरूर है। इसलिए मुझे लगता है कि मौलाना मदनी जैसे पॉजिटिव सोच रखने वाले मौलानाओं को सर्वे पूरा होने का इंतजार करना चाहिए। उन्हें मदरसों को इस सर्वे में हिस्सा लेने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। मुझे लगता है कि सरकार की नीयत साफ है। प्राइवेट मदरसे चलाने वाले भी मदद चाहते हैं, बच्चों को अच्छी शिक्षा देना चाहते हैं। लेकिन जैसे ही इसमें सियासत घुसती है, वैसे ही मुश्किल शुरू हो जाती है। योगी ने प्राइवेट मदरसों के सर्वे का आदेश दिया, तो बिना आदेश की डिटेल जाने समझे औवैसी ने इसे ‘मिनी-NRC’ बता दिया।
चूंकि मदरसों के सर्वे का आदेश योगी ने दिया इसलिए बहुत से मौलानाओं ने सरकार की नीयत पर शक जता दिया। चूंकि योगी ने पहल की इसलिए जिन राज्यों में गैर-बीजेपी दलों की सरकारें हें उन्होंने कहना शुरू कर दिया कि वे अपने यहां मदरसों का सर्वे बिल्कुल नहीं करवाएंगे। बिहार के अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री मोहम्मद जमा खान ने कहा कि उनके राज्य में मदरसों के इस तरह के सर्वे की जरूरत ही नहीं है। उन्होंने कहा कि बीजेपी को हर मसले पर हिंदू-मुस्लिम करने की आदत पड़ गई है।
गैर-मान्यता प्राप्त मदरसों के जो हालात यूपी में है, वैसा ही बिहार में भी है। ज्यादातर मदरसे एक-एक कमरे में चल रहे हैं। मदरसों में देश विरोधी गतिविधियों की खबरें भी आई थीं। कुछ दिन पहले मोतिहारी के मदरसे से NIA ने एक मौलवी को गिरफ्तार किया था, जिसके संबंध आंतकवादी संगठनों से थे। चूंकि वह बाहर से मदरसे में पढ़ाने आया था, इसलिए वहां के लोगों को उसके बारे में कोई जानकारी नहीं थी। कहने का मतलब यह है कि अगर मुस्लिम बच्चों का भला करना है तो मदरसों की हालत सुधारने की जरूरत है। (रजत शर्मा)
देखें: ‘आज की बात, रजत शर्मा के साथ’ 06 सितंबर, 2022 का पूरा एपिसोड