Rajat Sharma’s Blog | यूनीफॉर्म सिविल कोड: दुविधा में विपक्ष
ओवैसी की पार्टी, फारूक़ अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती की पार्टी को छोड़कर दूसरी विपक्षी पार्टियां न तो इसका विरोध कर सकती हैं, न खुलकर समर्थन कर पाएंगी।
यूनीफॉर्म सिविल कोड के मुद्दे पर बुधवार को दो घटनाएं हुई। पहली, विधि आयोग (लॉ कमीशन) के अध्यक्ष जस्टिस ऋतुराज अवस्थी ने साफ कह दिया कि वो समान नागरिक संहिता के मसले पर गंभीरता से आगे बढ़ रहे हैं। अब तक इस मसले पर 8.5 लाख सुझाव मिल चुके हैं। जस्टिस ऋतुराज अवस्थी ने लोगों से अपील की है कि वो ज्यादा से ज्यादा संख्या में इस मसले पर अपनी राय दें। दूसरी घटना ये हुई कि समान नागरिक संहिता के मुद्दे पर विपक्ष में फूट पड़ गई। आम आदमी पार्टी ने साफ कर दिया कि वो सैद्धान्तिक तौर पर यूनीफॉर्म सिविल कोड का समर्थन करती है। अरविन्द केजरीवाल की पार्टी के इस रुख से विरोधी दलों में खलबली है। अब कांग्रेस, आरजेडी, समाजवादी पार्टी और जेडी-यू जैसी पार्टियां परेशान हैं। हालांकि केजरीवाल की पार्टी ने ये साफ नहीं किया है कि अगर सरकार यूनीफॉर्म सिविल कोड का बिल लाती है, तो पार्टी इसका समर्थन करेगी या नहीं, लेकिन इतना जरूर कहा है कि सैद्धान्तिक तौर पर पार्टी कॉमन सिविल कोड के पक्ष में हैं। केजरीवाल की पार्टी के इस रुख पर कांग्रेस और जेडीयू ने हैरानी जताई है। अब सवाल ये है कि क्या कॉमन सिविल कोड का मुद्दा विपक्षी एकता के लिए खतरा बन जाएगा? या फिर केजरीवाल कांग्रेस पर दवाब बनाने के लिए इस तरह का दांव चल रहे हैं ? जमीयत उलेमा ए हिन्द के अध्यक्ष अरशद मदनी समेत तमाम मौलानाओं ने समान नागरिक संहिता पर एतराज जताया, लेकिन कुछ ऐसे मुस्लिम विद्वान सामने आए जिन्होंने कहा कि यूनीफॉर्म सिविल कोड का इस्लाम से कोई लेना देना नहीं है, अगर इसे लागू किया जाता है तो ये मुसलमानों की बेहतरी के लिए उठाया गया बड़ा कदम होगा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मंगलवार को भोपाल में यूनीफॉर्म सिविल कोड की जो बात कही थी। आम आदमी पार्टी ने जो रुख अपनाया उससे विरोधी दल सावधान हो गए हैं, इस मुद्दे पर संभल कर बोल रहे हैं। NCP के कार्यकारी अध्यक्ष प्रफुल्ल पटेल ने कहा कि यूनीफॉर्म सिविल कोड का विरोध तो NCP भी नहीं करती, लेकिन पहले ये पता तो चले कि सरकार क्या करना चाहती है। जमीयत उलेमा ए हिन्द के अध्यक्ष और मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य मौलाना अररशद मदनी ने कहा कि ये मसला वोटों की खातिर उठाया गया है वरना मुसलमान तो इस देश में 1300 साल से रह रहे हैं, अब तक तो किसी को कोई दिक्कत नहीं हुई। फिर अचानक इस तरह के कानून की जरुरत क्यों पड़ गई? ऑल इंडिया शिया पर्सनल लॉ बोर्ड के महासचिव मौलाना यासूब अब्बास ने भी यूनीफॉर्म सिविल कोड का विरोध किया और कहा कि अगर यूनीफॉर्म सिविल कोड आया तो इससे मुसलमानों को दिक्कत होगी। मध्य प्रदेश में चुनाव होने हैं, इसलिए मध्य प्रदेश कांग्रेस के नेता भी ये बात समझ रहे हैं, इसलिए वो इस मसले को ज्यादा तूल नहीं देना चाहते। मध्य प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष कमलनाथ ने कहा कि बीजेपी ये सब असल मुद्दों से ध्यान भटकाने के लिए कर रही है। कांग्रेस बीजेपी की चाल में नहीं फंसेगी। कमलनाथ ने कहा कि यूनिफॉर्म सिविल कोड का मुद्दा बीजेपी को उठाने दीजिए, कांग्रेस मंहगाई, बेरोजगारी की बात करेगी। जिस तरह से यूनीफॉर्म सिविल कोड पर सियासत शुरू हुई है, उससे ये तो साफ हो गया कि मोदी का तीर निशाने पर लगा है। ये ऐसा मसला है जिससे विरोधी दलों में फूट के आसार दिखाई देने लगे है। इसका पहला सबूत केजरीवाल की पार्टी के रुख से मिल गया। दूसरी बात ओवैसी की पार्टी, फारूक़ अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती की पार्टी को छोड़कर दूसरी विपक्षी पार्टियां न तो इसका विरोध कर सकती हैं, न खुलकर समर्थन कर पाएंगी। अगर विरोध किया तो हिन्दुओं को वोट जाने का खतरा होगा और समर्थन किया तो मुसलमानों की नाराजगी झेलनी पड़गी। इसीलिए अब सभी पार्टियों ने ये कहना शुरू कर दिया है कि सरकार पहले बिल का ड्राफ्ट सामने रखे, सभी पार्टियों की मीटिंग बुलाए, उसके बाद ही वो इस मुद्दे पर अपनी राय देंगे। लेकिन मुझे लगता है कि बीच का ये रास्ता भी काम नहीं आएगा क्योंकि जिस तरह से मोदी ने इस पर खुल कर बात की है, उसका संकेत साफ है कि सरकार इस मामले में अपना मन बना चुकी है। संसद का मॉनसून सत्र 17 जुलाई से शुरू हो सकता है। अगर सरकार ने मॉनसून सत्र में बिल का ड्राफ्ट पेश कर दिया तो कांग्रेस और दूसरे विरोधी दलों की वही हालत होगी, जो कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले आर्टिकिल 370 को खारिज करने के वक्त हुई थी। सबने मजबूरी में ही सही, इसका समर्थन किया था। इसीलिए मैंने कहा कि आज नहीं तो कल, विरोधी दलों को इस मुद्दे पर साफ स्टैंड लेना ही पड़ेगा और नरेंद्र मोदी विरोधी दलों को इसके लिए मजबूर करेंगे। चूंकि कई मुस्लिम उलेमा ने यूनीफॉर्म सिविल कोड का खुलकर विरोध करना शुरू कर दिया है, इसलिए विपक्षी दल इस वक्त दुविधा वाली स्थिति में हैं।
बिहार को बाहर से शिक्षकों की ज़रूरत क्यों पड़ी?
बिहार में स्कूली शिक्षकों की भर्ती को लेकर हंगामा चल रहा है। बिहार सरकार ने शिक्षकों की भर्ती में बिहार के अलावा दूसरे राज्यों के लोगों को भी इम्तहान में बैठने की छूट दे दी है। इसका जमकर विरोध हो रहा है। दरअसल, बिहार सरकार ने इसी महीने की शुरुआत में 1 लाख 70 हजार शिक्षकों की भर्ती के लिए अधिसूचना जारी की थी। उसके बाद इसके नियमों में बदलाव हुए। मंगलवार को राज्य सरकार ने एक विज्ञापन जारी किया जिसमें बताया गया कि शिक्षकों की भर्ती वाली परीक्षा में शामिल होने के लिए बिहार का मूल निवासी होने की शर्त हटा दी गई है। अब देश के सभी राज्यों के नौजवान बिहार में शिक्षकों की भर्ती की परीक्षा दे सकते हैं। नीतीश कुमार की सरकार के इस फैसले से परीक्षा की तैयारी कर रहे बिहार के नौजवान नाराज हो गए और सरकार के खिलाफ प्रोटेस्ट की कॉल दे दी। बीजेपी ने भी सरकार के इस फैसले का विरोध किया। बिहार के शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर ने जो बात कही, उससे लोगों का गुस्सा और बढ़ गया। चन्द्रशेखर ने कहा कि चूंकि इससे पहले हुई भर्तियों में गणित, विज्ञान और अंग्रेज़ी के अच्छे शिक्षक नहीं मिल पाते थे, जगह खाली रह जाती थी, इसलिए इस बार दूसरे राज्यों के लोगों को भी परीक्षा में मौका देने का फैसला किया गया। इससे मेधावी उम्मीदवार भर्ती प्रक्रिया में शामिल हो सकेंगे। लेकिन नौकरी की उम्मीद में सालों से तैयारी कर रहे बिहार के नौजवानों को सरकार के ये तर्क नागवार गुजरे हैं। छात्र संगठनों ने फैसला वापस लेने के लिए बिहार सरकार को 72 घंटे का अल्टीमेटम दिया है। छात्र नेताओं का कहना है कि शिक्षा मंत्री एक तो बिहार के बच्चों के मौके छीन रहे हैं और दूसरी तरफ उनकी मेधा पर सवाल उठा रहे हैं, इसे बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। बिहार के बीजेपी नेता एवं पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी ने कहा कि बिहार के लोगों का गुस्सा जायज है, अगर दूसरे राज्यों के बच्चे शिक्षक भर्ती परीक्षा में बैठेंगे तो बिहार के बच्चों का क्या होगा? सुशील मोदी ने कहा कि हकीकत ये है कि नीतीश कुमार की सरकार की मंशा शिक्षकों की भर्ती की है ही नहीं, सरकार चाहती है कि केस कोर्ट में चला जाए और भर्ती की प्रक्रिया लटक जाए। बिहार सरकार की ये बात तो सही है कि देश के किसी भी हिस्से के नौजवानों को बिहार में रोजगार के मौके से वंचित नहीं किया जा सकता, लेकिन सवाल ये है कि क्या नीतीश कुमार को ये बात पहले से नहीं मालूम थी। उन्होंने बार बार नियमों में बदलाव क्यों किया। फिर दूसरे राज्यों के नौजवानों को भर्ती में शामिल करने के लिए अलग से विज्ञापन क्यों निकाला? इसके बाद सरकार अपनी बात सही तरीके से छात्रों को समझाती। ऐसा करने के बजाए शिक्षामंत्री ने बिहार के बच्चों के टैलेंट पर ही सवाल उठा दिया। ये ठीक नहीं हैं, इससे छात्रों का गुस्सा और बढ़ेगा। छात्र संगठन सड़कों पर उतरेंगे, फिर इस पर सियासत होगी और सुशील मोदी की ये बात सही है कि कोई कोर्ट चला जाएगा और भर्ती की प्रक्रिया लटक जाएगी। इससे नुकसान बिहार के नौजवानों का ही होगा। (रजत शर्मा)
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