Rajat Sharma’s Blog: दुनिया में हो रही उथल-पुथल के वक़्त भारत को एक मजबूत नेतृत्व की ज़रूरत है
सबसे बड़ी बात ये है कि जब दुनिया में अस्थिरता होती है, जंग के हालत होते हैं तो भारत के दुश्मन इस मौके का फायदा उठाने की कोशिश करते हैं।
रूस और अमेरिका के बीच तनाव नाटकीय रूप से बढ़ चुका है। रूसी सांसदों ने देश के बाहर सेना भेजने और उनका इस्तेमाल करने के लिए राष्ट्रपति पुतिन को हरी झंडी दे दी है। उधर, यूक्रेन में हालात लगातार बिगड़ रहे हैं। रूस ने इसके दो अलग-अलग इलाकों में अपने सैनिकों को भेज दिया है। यूक्रेन से अलग होने वाले दो प्रांतों में रूसी फौज तैनात है और टैंकों ने मोर्चा सम्भाल लिया है। पूरी दुनिया चन्द दिनों में होने जा रही जंग के नतीजों को लेकर काफी परेशान है।
यूक्रेन में फंसे भारतीय नागरिकों को वापस लाने का काम भी शुरू हो चुका है। मंगलवार को एयर इंडिया के विमान से 242 भारतीय छात्र यूक्रेन से वापस लौटे। देर रात उनका विमान दिल्ली में उतरा। यूक्रेन में अभी भी बड़ी संख्या में भारतीय नागरिक देश वापसी का इंतजार कर रहे हैं। उधर, अमेरिकी राष्ट्रपति जो बायडेन ने रूस के बैंकों, कई रूसी अरबपतियों और उनके परिवार के सदस्यों के खिलाफ नए आर्थिक प्रतिबंधों का ऐलान कर दिया है। ब्रिटेन, कनाडा, जापान. ऑस्ट्रेलिया और यूरोपियन यूनियन के 27 में से ज्यादातर देशों ने भी रूस के खिलाफ आर्थिक प्रतिबंध लगा दिया है। बायडेन ने यह ऐलान भी किया है कि वह रूस की सीमा से लगे बॉल्टिक देशों की सुरक्षा के लिए अमेरिकी सैनिकों को भेज रहे हैं।
कूटनीति के जानकारों को इस बात का डर है कि रूसी और नाटो की सेनाओं के बीच अगर जंग छिड़ी तो यह तीसरे विश्व युद्ध का भयावह रूप ले सकता है। यूक्रेन पर हमले के लिए लड़ाकू विमानों और रूसी टैंकों ने मोर्चा संभाल लिया है। फ्रांस के राष्ट्रपति और जर्मनी के चांसलर ने पुतिन से मुलाकात की, लेकिन वे दोनों पुतिन को मनाने मे नाकाम रहे।
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बायडेन ने व्हाइट हाउस से अपने संक्षिप्त संबोधन में पुतिन पर अंतरराष्ट्रीय कानून का खुले तौर पर उल्लंघन का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि 'यूक्रेन पर रूस के आक्रमण की शुरुआत' होने ही वाली है। उधर, राष्ट्रपति पुतिन ने अपने कदम पीछे हटाने के लिए दो शर्तें रखी हैं। पहली शर्त यह कि यूक्रेन क्रीमिया पर रूस की संप्रुभता को मान्यता दे। रूस ने क्रीमिया पर 2014 में कब्ज़ा कर लिया था। दूसरी शर्त यह कि यूक्रेन NATO में शामिल नहीं होगा और अपने सैनिकों की संख्या कम करेगा।
हालात उस वक्त बेहद जटिल हो गए जब पुतिन ने यूक्रेन के दो अलग-अलग इलाकों, डोनेत्स्क और लुगान्स्क को मान्यता देने का फैसला किया। इन देशों ने अलग राष्ट्र के तौर पर मान्यता के लिए आवेदन किया है। रूस की तरफ से स्वतंत्र घोषित किए जाने के बाद सोमवार की रात इन दोनों इलाकों में आतिशबाजी हुई। वहीं, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत ने संतुलित रुख अपनाया और सभी पक्षों से संयम बरतने और मसले के शान्तिपूर्ण हल के लिए राजनयिक प्रयासों को आगे बढ़ाने की अपील की।
यूक्रेन में तनाव पिछले साल दिसंबर में शुरू हुआ था, जब देश के राष्ट्रपति ने ऐलान किया कि उनका देश जल्द ही NATO में शामिल हो जाएगा। इसके बाद ही रूस ने यूक्रेन की सीमा पर सवा लाख सैनिकों को तैनात कर दिया और दूसरे पड़ोसी देश बेलारूस के साथ युद्ध अभ्यास भी किया। रूसी सेना ने यूक्रेन के पास काला सागर में परमाणु मिसाइलों के साथ भी वॉर एक्सर्साइज की। यूक्रेन को चारों तरफ से घेर लिया गया है। पुतिन ने कहा कि अमेरिका और यूरोपीय देशों को उनकी दो शर्तें माननी होंगी। पहली, यूक्रेन को NATO का सदस्य नहीं बनाने का वादा करना होगा और दूसरी, रूस के बॉर्डर के करीब तैनात अपने हथियार भी पीछे करने होंगे। बायडेन और पुतिन के बीच बातचीत हुई थी और दोनों देशों के विदेश मंत्री भी कई बार मिले, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। अब रूसी सेना और यूक्रेन की सेना आमने-सामने है।
यूरोप में अगर जंग हुई तो जाहिर तौर पर यह दुनिया के बाजारों में भारी उथल-पुथल होगी। यूक्रेन के बागियों के कब्जे वाले इलाकों में रूसी सेना के घुसने से सोना और कच्चे तेल की कीमतें आसमान छू रही हैं। दुनियाभर के शेयर बाजारों में मंदी का दौर देखने को मिल रहा है। ज़रा सोचिए कि अगर बड़े पैमाने पर जंग छिड़ी, तो क्या होगा। यूक्रेन में युद्ध अगर छिड़ा तो निश्चित रूप से भारत के विदेश व्यापार और तेल आयात पर इसका प्रतिकूल असर पड़ेगा। भारत सरकार का फोकस अब यूक्रेन में रह रहे करीब बील हजार भारतीयों को निकालने पर है। इनमें से करीब 18 हजार छात्र हैं। भारतीय दूतावास ने सभी भारतीय छात्रों को अस्थायी रूप से यूक्रेन छोड़ने को कहा है।
भारत के लिए यह निश्चित रूप से एक चुनौतीपूर्ण समय है। रूस भारत का पुराना दोस्त और हथियारों का सबसे बड़ा सप्लायर है। दूसरी ओर, अमेरिका और यूरोपियन यूनियन भी भारत के बड़े व्यापारिक भागीदार हैं। हाल में भारत की अमेरिका के साथ भी नजदीकियां बढ़ी है। अमेरिका ने ट्रम्प प्रशासन के अंतिम वर्ष में भारत को 3.4 अरब डॉलर मूल्य के हेलीकॉप्टरों और अन्य रक्षा उपकरणों की आपूर्ति की।
भारतीय विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रृंगला ने कहा है, ‘दुनिया अब एक और संघर्ष नहीं झेल सकती और भारत का स्पष्ट रूप से मानना है कि तनाव में कमी आनी चाहिए।’
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को यूपी के बहराइच में एक चुनावी रैली को संबोधित करते हुए परोक्ष रूप से यूक्रेन संकट का जिक्र किया। मोदी ने कहा, ‘आप देख रहे हैं कि इस समय दुनिया में कितनी उथल-पुथल मची हुई है। ऐसे में आज भारत का ताकतवर होना, भारत और पूरी मानवता के लिए बहुत जरूरी है। आज आपका एक-एक वोट भारत को ताकतवर बनाएगा। वैश्विक उथल-पुथल के दौर में एक मजबूत भारत जरूरी है।’
मोदी की बात सही है कि भारत का ताकतवर होना जरूरी है। इस समय भारत को एक वर्ल्ड लीडर माना जाता है। ऐसे में यूक्रेन और रूस के टकराव में भारत को एक-एक कदम फूंक फूंककर रखना है, क्योंकि इस टकराव का असर हमारे देश पर भी पड़ेगा। अगर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल की कीमतें बढ़ती हैं, तो हमारी अर्थव्यवस्था और हमारा घरेलू बजट जरूर प्रभावित होगा। वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल की कीमत पहले ही 100 डॉलर प्रति बैरल को पार कर चुकी है। अगर तेल की कीमतें बढ़ीं तो जरूरी चीजों की कीमतों पर भी असर पड़ेगा।
सबसे बड़ी बात ये है कि जब दुनिया में अस्थिरता होती है, जंग के हालत होते हैं तो भारत के दुश्मन इस मौके का फायदा उठाने की कोशिश करते हैं। आतंकवादी अपनी साजिशों को अंजाम देने का मौका तलाशते हैं। आतंकवाद को पालने पोसने वाले पाकिस्तान जैसे मुल्क ऐक्टिव हो जाते हैं।
मोदी पहले ही आतंकवाद का मुद्दा उठाकर चुनाव प्रचार की टोन बदल दी है। मंगलवार को अपनी रैली में उन्होंने बताया कि परिवारवादी कैसे आतंकवादियों पर अपना प्यार उड़ेलते रहे हैं। उन्होंने कहा, ‘जो लोग देश की सुरक्षा को ताक पर रखते हैं, वे यूपी का कभी भला नहीं कर सकते। बहराइच की इस धरती ने आतंकियों के नापाक मंसूबों को हमेशा नाकाम किया है। जिन लोगों पर यूपी में एक नहीं बल्कि कईं कईं बम धमाकों के आरोप था, ये परिवारवादी उन आतंकवादियों को जेल से रिहा करने के लिए पक्का निर्णय करके बैठे थे। वे इन आतंकवादियों पर मुकदमा चलाने के सरकार के फैसले के खिलाफ थे। समाजवादी पार्टी की सरकार आतंकी संगठनों पर प्रतिबंध लगाने के भी खिलाफ थी।’
मोदी ने इसके बाद अहमदाबाद की स्पेशल कोर्ट के उस फैसले का जिक्र किया जिसमें 2008 में हुए सीरियल बम ब्लास्ट को अंजाम देने वाले 38 दोषियों को मौत की सजा दी गई थी। मोदी ने कहा, ‘ये न्यायालय ने सही काम किया, हमें न्यायपालिका का सम्मान करना चाहिए। लेकिन ये चुप बैठे हैं। क्योंकि इनकों मालूम है कि अब सारा खेल जनता के सामने खुल चुका है। कौन किसकी मदद कर रहा था, ये अब उत्तर प्रदेश का बच्चा-बच्चा जान चुका है।’
अहमदाबाद सीरियल ब्लास्ट में जिन दोषियों को मौत की सजा दी गई है उनमें से कुछ यूपी के रहने वाले हैं। इनमें से आजमगढ़ के एक दोषी के पिता की तस्वीर सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव के साथ सामने आ गई। यही वजह है कि बीजेपी ने यूपी चुनाव में आतंकवाद को अब बड़ा मुद्दा बनाया है।
सियासी फायदे की बात छोड़ दें तो पिछले 20 साल का अनुभव बताता है कि आतंकवाद से लड़ने के लिए देश को मोदी जैसे मजबूत लीडर की जरूरत है। मोदी के विरोधी भी मानते हैं कि जब-जब दहशतगर्दी का संकट आया तो मोदी ने बोल्ड फैसले लिए, हिम्मत दिखाई और आतंकवादियों को उनके अंजाम तक पहुंचाया। अहमदाबाद के सीरियल बम ब्लास्ट करने वाले 49 में से 38 दोषियों को जब कोर्ट ने फांसी की सजा सुनाई और 11 को उम्रकैद मिली तो पता चला कि गुजरात पुलिस ने पुख्ता केस तैयार किया था, और यह काम मोदी के मुख्यमंत्री रहते हुआ।
जब मोदी प्रधानमंत्री बने तो हमारी फौज ने पाकिस्तान को दो-दो बार घर में घुसकर मारा, आतंकवादियों के मंसूबे को नेस्तानाबूद कर दिया। आतंकवाद से लड़ने के लिए मजबूत इच्छाशक्ति की जरुरत होती है, कठोर निर्णय लेने की आवश्यकता होती है। मोदी ने ऐसा करके दिखाया है, जब वह गुजरात में थे तब भी और आज जब केंद्र में हैं तब भी। इसीलिए लोगों को लगता है कि दुनिया में जब जंग के बादल मंडरा रहे हैं, जंग का खतरा सामने है तो देश को मोदी जैसे मजबूत लीडर की जरूरत है। (रजत शर्मा)