Rajat Sharma’s Blog : दस साल पुरानी गलती का खामियाज़ा भुगत रहे हैं राहुल
राहुल ने उस समय के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के लिए शर्मनाक स्थिति पैदा कर दी थी।अब दस साल बाद राहुल को दो साल की सजा सुनाई गई है और सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला उनपर लागू होता है।
आपराधिक मानहानि के मामले में दोषी ठहराए जाने के बाद शुक्रवार को लोकसभा सचिवालय ने राहुल गांधी को संसद की सदस्यता के लिए अयोग्य ठहरा दिया। राहुल की लोकसभा सदस्यता जाने के बाद से राजनीतिक बवाल शुरू हो गया है। कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने विभिन्न शहरों में विरोध प्रदर्शन किया। बीजेपी नेताओं ने आरोप लगाया कि राहुल ने नरेंद्र मोदी के ओबीसी समुदाय को बदनाम करने की कोशिश की। कांग्रेस नेता और वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि फैसले को चुनौती दी जाएगी क्योंकि इसमें कई खामियां हैं। हम इसे सेशन कोर्ट और हाईकोर्ट में ले जाएंगे। मानहानि के संबंध में एक मूलभूत सिद्धांत यह है कि ये किसी व्यक्ति विशेष के विरुद्ध होना चाहिए न कि सामान्य लहजे में कही गई बातों को इसका आधार बनाया जाए।
अभिषेक मनु सिंघवी कानून के जानकार हैं और उन्हें पता था कि फिलहाल जो कानून है उसके मुताबिक राहुल की सदस्यता छिननी तय है। दस जुलाई 2013 को लिली थॉमस बनाम यूनियन ऑफ इंडिया मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया था कि अगर किसी व्यक्ति को दो साल या उससे ज्यादा की सजा हो जाए तो वह संसद या विधानसभा का सदस्य नहीं रह सकता। कोर्ट ने तुरंत अयोग्यता का आदेश दिया था। डॉक्टर मनमोहन सिंह की अगुवाई वाली तत्कालीन सरकार इसे बदलने के लिए एक अध्यादेश लाई। लेकिन राहुल गांधी ने यह कहकर उसका विरोध किया था कि ऐसे अध्यादेस को फाड़कर रद्दी की टोकरी में फेंक देना चाहिए। राहुल ने उस समय के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के लिए शर्मनाक स्थिति पैदा कर दी थी।अब दस साल बाद राहुल को दो साल की सजा सुनाई गई है और सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला उनपर लागू होता है। इसी फैसले के आधार पर उत्तर प्रदेश में विधानसभा सदस्य अब्दुल्ला आजम की सदस्यता खत्म हो चुकी है। अब्दुल्ला आजम को भी ट्रायल कोर्ट ने दो साल की सजा दी थी।
कांग्रेस अब इस लड़ाई को सियासी पिच पर लड़ना चाहती है। अब राहुल गांधी को मोदी के सबसे बड़े विरोधी के तौर पर प्रोजेक्ट किया जाएगा। कांग्रेस के नेताओं की तरफ से बार-बार ये कहा जाएगा कि राहुल ही अकेले ऐसे नेता हैं जो नरेंद्र मोदी से नहीं डरते। राहुल गांधी ने अपनी सदस्यता गवां दी लेकिन माफी नहीं मांगी। मोदी का मुकाबला राहुल ही कर सकते हैं। लेकिन ये तो मानना पड़ेगा कि राहुल गांधी ने 10 साल पहले जो किया वही घूम फिरकर उनके सामने आ गया। अगर दस साल पहले उन्होंने मनमोहन सिंह के अध्यादेश का विरोध नही किया होता, उसे 'पूरी तरह से बकवास' नहीं बताया होता और उनकी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलट दिया होता तो सजा होने के बाद भी राहुल गांधी की संसद की सदस्यता को कोई खतरा नहीं होता।
तेजस्वी यादव और गुजराती
बिहार के उपमुख्यमंत्री और आरजेडी प्रमुख तेजस्वी यादव ने भी मंगलवार को एक गलती कर दी। उन्होंने कह दिया कि आजकल जितने ठग हैं, सब गुजरात से हैं क्योंकि आजकल गुजरातियों की ठगी माफ है। तेजस्वी यादव विपक्षी दलों के नेताओं के ख़िलाफ़ ईडी-सीबीआई की कार्रवाई पर नाराजगी जाहिर कर रहे थे और इसी गुस्से में उन्होंने गुजरातियों को ठग बता दिया। अब आरजेडी के नेता कह रहे हैं कि उनका मतलब नीरव मोदी और मेहुल चोकसी से था। राहुल गांधी ने भी अदालत में यही सफाई दी थी कि उन्होंने सभी मोदियों को नहीं सिर्फ नरेन्द्र मोदी और नीरव मोदी और ललित मोदी को चोर कहा था। लेकिन अदालत में उनकी दलील काम नहीं आई। इसलिए बेहतर तो यही होगा कि नेता किसी भी पार्टी के हों, संभलकर बोलें। वरना, बयान के चक्कर में मुसीबत में पड़ सकते हैं।
केजरीवाल और मोदी
वैसे जो मोदी विरोधी हैं उन्हें आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविन्द केजरीवाल से सीखना चाहिए। केजरीवाल एक बार अदालत में माफी मांगने के बाद संभल गए हैं। वे भी नरेन्द्र मोदी को दिन रात कोसते हैं लेकिन इतना ख्याल रखते हैं कि ऐसी बात मुंह से न निकल जाए जिससे अदालत के चक्कर काटने पड़ें। गुरुवार को भी केजरीवाल ने दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर जमकर हमला किया। 'मोदी हटाओ, देश बचाओ' रैली में केजरीवाल ने आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री दिनभर यही सोचते रहते हैं-'किसको जेल में डालना है और कौन उनका विरोध कर रहा है? वो चिड़चिड़े हो गए हैं और कम सोते हैं, उन्हें नींद न आने की बीमारी है। उन्हें देश के लोगों पर गुस्सा उतारने के बजाए अच्छे डॉक्टर को दिखाना चाहिए।' केजरीवाल ने प्रधानमंत्री के लिए जिस तरह की भाषा का इस्तेमाल किया वो ना तो नैतिकता की दृष्टि से सही है और ना ही शालीनता की नजर से। केजरीवाल प्रधानमंत्री की नीतियों पर सवाल उठा सकते हैं, उनके काम की आलोचना कर सकते हैं। इसका लोकतंत्र में सबको अधिकार है और केजरीवाल को भी इसका हक़ है। लेकिन देश की जनता द्वारा चुने गए सर्वोच्च नेता पर व्यक्तिगत हमला करना लोकतंत्र में स्वीकार्य नहीं है। प्रधानमंत्री के बारे में ये कहना कि उन्हें नींद ना आने की बीमारी है, असभ्यता है। राजनीति का यह गिरता स्तर देश के लिए चिंता की बात है। (रजत शर्मा)
देखें: ‘आज की बात, रजत शर्मा के साथ’ 23 मार्च, 2023 का पूरा एपिसोड