Rajat Sharma’s Blog | पवार पॉलिटिक्स: एक राज़ का खुलासा
पहली बार यह बात सामने आई है कि 2019 में आधी रात को और उसके बाद जो राजनीतिक घटनाक्रम हुआ, उसकी स्क्रिप्ट किसी और ने नहीं, बल्कि सियासत के चतुर खिलाड़ी शरद पवार ने लिखी थी।
आज मैं आपके साथ सियासत की दुनिया का एक बड़ा राज़ शेयर करना चाहता हूं। मैं आपको बताऊंगा कि 2019 की उस रात को क्या हुआ था जब महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों के बाद एनसीपी नेता अजीत पवार ने गठबंधन सरकार बनाने के लिए अचानक बीजेपी से हाथ मिला लिया था। यह सरकार सिर्फ तीन दिन चल पाई थी।
मैं आपको बताऊंगा कि शरद पवार के बीजेपी के साथ रिश्ते खराब क्यों हुए, क्या शरद पवार ने बीजेपी को धोखा दिया, कब दिया और कैसे दिया? शरद पवार ने इशारों में इशारों में माना कि वह बीजेपी से वादा करके मुकर गए थे। उन्होंने खुद ही संकेत दिया राजभवन में अपने भतीजे अजीत पवार के साथ शपथ लेने वाले देवेंद्र फडणवीस की पीठ में उन्होंने छुरा घोंपा था।
पहली बार यह बात सामने आई है कि उस दिन आधी रात और उसके बाद जो राजनीतिक घटनाक्रम हुआ, उसकी स्क्रिप्ट किसी और ने नहीं, बल्कि सियासत के दिग्गज खिलाड़ी शरद पवार ने लिखी थी। शरद पवार की इस पूरी स्क्रिप्ट की हकीकत बेहद दिलचस्प है। बुधवार को पिंपरी-चिंचवड में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में पवार ने जो 2 बयान दिए, उनसे सारा मामला ही खुल गया।
पवार ने कहा कि बीजेपी द्वारा उनके भतीजे और NCP नेता अजित पवार के साथ सरकार बनाने की कोशिश का एक फायदा यह हुआ कि इससे 2019 में महाराष्ट्र में ‘राष्ट्रपति शासन का खात्मा हो गया।’
एक पत्रकार ने जब बीजेपी नेता देवेंद्र फडणवीस के इस दावे के बारे में पूछा कि अजीत पवार के साथ तीन दिन की सरकार के गठन को NCP सुप्रीमो का समर्थन प्राप्त था, शरद पवार ने जवाब दिया: ‘सरकार बनाने का प्रयास किया गया था। उस कवायद का एक फायदा यह हुआ कि इससे महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन हटाने में मदद मिली। इसके बाद जो हुआ, वह सभी ने देखा है।’
जब रिपोर्टर ने पूछा कि क्या उन्हें इस तरह की सरकार के गठन के बारे में पता था, शरद पवार ने कहा, ‘क्या इस बारे में बोलने की जरूरत है? मैंने अभी कहा कि अगर इस तरह की कवायद नहीं होती तो क्या राष्ट्रपति शासन हटा लिया जाता? अगर राष्ट्रपति शासन नहीं हटा होता तो क्या उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री पद की शपथ लेते? यह पूछे जाने पर कि क्या उनका इशारा है कि उन्हें इस बात का पता था कि अजीत पवार बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बनाने जा रहे हैं, पवार ने कहा, ‘एक शख्स ने हाल ही में कहा है कि महाराष्ट्र में जो कुछ भी हुआ उसके लिए एक ही व्यक्ति (शरद पवार) जिम्मेदार है।’
निश्चित तौर पर पवार के बयान बेहद दिलचस्प हैं। पवार ने बस यह नहीं कहा कि उन्होंने ही अपने भतीजे अजीत पवार को NCP में 'बगावत' का झूठा नाटक करके देवेंद्र फडणवीस के पास भेजा था, और तीन दिन बाद सरकार गिरवा दी थी। पवार ने यह बताने की कोशिश की कि उके खेल से बीजेपी सत्ता से बाहर हो गई। महा विकास आघाड़ी के रूप में शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी का एक नया गठबंधन बना और उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री बने। पवार ने यह मैसेज देने की कोशिश की कि उन्होंने सियासी खेल में बीजेपी को मात दे दी।
24 अक्टूबर 2019 से लेकर 23 नवंबर 2019 के बीच क्या-क्या हुआ, इसकी पूरी हकीकत मैं आपको बताऊंगा। फिलहाल सबसे बड़ा सवाल यह है कि शरद पवार 3 साल तक खामोश क्यों रहे और उन्होंने अब इसका खुलासा क्यों किया। इस खुलासे के पीछे क्या पवार का कोई नया गेम प्लान है? प्रेस कॉन्फ्रेंस में दिए गए अपने बयान में पवार हालांकि सीधे तौर पर यह नहीं मानते कि उन्हें इस कवायद के बारे में पता था, लेकिन इसके कई सियासी मायने हैं।
पवार 23 नवंबर, 2019 की रात को हुए नाटकीय घटनाक्रम का जिक्र कर रहे थे जब केंद्र सरकार ने आधी रात को राष्ट्रपति शासन हटा लिया था, और राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने राजभवन में तड़के फडणवीस को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई थी, और अजीत पवार उपमुख्यमंत्री बने थे। यह सरकार 3 दिन के बाद गिर गई थी और शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने बाद में एनसीपी और कांग्रेस के समर्थन से मुख्यमंत्री के रूप में महा विकास आघाड़ी के नेता के रूप में शपथ ली। 2019 के विधानसभा चुनाव के बाद शिवसेना और बीजेपी की राहें इस मुद्दे पर जुटा हो गई थीं कि मुख्यमंत्री कौन होगा।
शरद पवार के बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए देवेंद्र फडणवीस ने मुंबई में पत्रकारों से कहा, ‘अच्छा है कि उन्होंने इस बात का खुलासा किया है। मेरी अपेक्षा है कि राष्ट्रपति शासन महाराष्ट्र में लगा क्यों? किसके कहने पर लगा? उसके पीछे क्या राजनीति थी? वह ये भी बताएं, क्योंकि फिर उससे आगे की सब कड़ियां जुड़ेंगी और सब बातें आपके सामने आएंगी। इसलिए इस बात का जवाब वही दें, मेरी यही उम्मीद है।’
शरद पवार ने जो कहा वह पूरा सच नहीं है। उनका दावा है कि वह चाहते थे कि उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री बनाने का रास्ता साफ करने के लिए राष्ट्रपति शासन को हटा दिया जाए, लेकिन यह सच नहीं है। अंदर की कहानी थोड़ी अलग है।
23 अक्टूबर 2019 को महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के नतीजे आए, और बीजेपी-शिवसेना के गठबंधन को पूर्ण बहुमत मिला। अगले दिन यानी कि 24 अक्टूबर को उद्धव ठाकरे ने 2.5 साल के लिए मुख्यमंत्री बनाने की मांग रख दी। बीजेपी ने उद्धव की बात नहीं मानी। शरद पवार को लगा महाराष्ट्र में उनकी पार्टी एनसीपी और बीजेपी साथ मिलकर सरकार बना सकते हैं। उन्हें यकीन था कि कांग्रेस कभी भी उद्धव ठाकरे को सपोर्ट नहीं करेगी, और बिना कांग्रेस और शिवसेना के समर्थन के गैर-बीजेपी सरकार बनाना मुमकिन नहीं है। पवार ने देवेंद्र फडणवीस समर्थन देने का प्रस्ताव भेजा और बाकी की बातचीत की जिम्मेदारी अजीत पवार को सौंप दी।
एनसीपी सुप्रीमो का कहना था कि वह सीधे-सीधे खुलकर बीजोपी को सपोर्ट करने की बात नहीं कह सकते, इसीलिए पहले राष्ट्रपति शासन लगाया जाए। इस दौरान वह पूरे महाराष्ट्र का दौरा करेंगे, माहौल तैयार करेंगे और महाराष्ट्र को स्थिर सरकार की जरूरत की बात कहकर बीजेपी की सरकार को सपोर्ट करने की बात कहेंगे। 2 हफ्ते के बाद राष्ट्रपति शासन खत्म होगा और फिर महाराष्ट्र में एनसीपी के सपोर्ट से देवेंद्र फडणवीस की सरकार बनेगी और इस सरकार में अजीत पवार उपमुख्यमंत्री बनेंगे। दूसरे शब्दों में कहें तो शरद पवार उस वक्त अपनी पार्टी को सत्ता में लाने के लिए बीजेपी के साथ आने को तैयार थे। वहीं, दूसरी तरफ उन्होंने उद्धव ठाकरे को मुगालते में रखा हुआ था।
अब सवाल यह है कि आखिर ऐसा क्या हुआ कि जब अजीत पवार उपमुख्यमंत्री बन गए तो शरद पवार ने पलटी मार दी? उन्होंने बीजेपी का विरोध क्यों किया और उद्धव के सपोर्ट में क्यों खड़े हो गए? लेकिन पहले मैं आपको शिवसेना नेता संजय राउत के एक बयान के बारे में बताता हूं। संजय राउत ने कहा, ‘केंद्र सरकार ने राष्ट्रपति शासन लगाया था, और उन्होंने ऐसी व्यवस्था की थी कि महाविकास आघाड़ी की सरकार न आए। राष्ट्रपति शासन हटेगा या नहीं, सबको इसकी चिंता थी। अगर हमने बहुमत साबित कर भी दिया होता, जिस तरह के राज्यपाल राजभवन में थे, उन्होंने बहुमत सिद्ध करने के लिए 5 साल का समय निकल दिया होता। लेकिन सुबह की शपथ की वजह से राष्ट्रपति शासन हटा, और केवल 24 मिनट में राज्यपाल शासन हट गया। इसी वजह से महाविकास आघाड़ी का रास्ता साफ हुआ। यह जो पवार साहब ने बोला है, सत्य है। शरद पवार को समझने के लिए 100 जन्म लेने पड़ेंगे। ऐसा मैंने पहले भी बोला था, जिसकी वजह से मेरे ऊपर कमेंट भी हुआ था।’
संजय राउत की यह बात सही है कि शरद पवार की सियासी चालों को समझने के लिए 100 जन्म भी कम पड़ेंगे। बीजेपी भी पवार के खेल में फंस गई, और उद्धव ठाकरे भी। किसी को समझ नहीं आया कि पवार ने क्या खेल कर दिया। पवार ने जो खुलासा किया वह उनकी अगली चाल है। मैं ऐसा क्यों कह रहा हूं, इसकी वजह आपको बताऊंगा।
जब हम 2019 के उन दिनों की टाइमलाइन समझेंगे तो सारी कहानी साफ हो जाएगी। 30 अक्टूबर को संजय राउत ने दावा किया कि अगर बीजेपी, उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री नहीं बनाती तो शिवसेना अपने दम पर सरकार बनाएगी। इसके बाद 2 नंवबर 2019 को शरद पवार ने उद्धव ठाकरे से बात की। 4 नवंबर को पवार ने कहा कि जनता ने बीजेपी और शिवसेना को बहुमत दिया है, वे सरकार बनाएं और NCP विपक्ष में बैठेगी। उस वक्त तक महाराष्ट्र में बीजेपी की सरकार थी क्योंकि 9 नबंवर तक विधानसभा का कार्यकाल था।
8 नबंवर तक अजीत पवार की देवेंद्र फडणवीस से सारी बात हो चुकी थी, और इसके बाद फडणवीस ने उसी दिन इस्तीफा दे दिया।
11 नवंबर को उद्धव ठाकरे ने NDA से अलग होने का ऐलान कर दिया। मेरी जानकारी यह है कि देवेंद्र फडणवीस अगले ही दिन अजीत पवार के साथ मिलकर सरकार बनाना चाहते थे, लेकिन शरद पवार ने कहा कि वह सीधे बीजेपी को सपोर्ट की बात नहीं कर सकते। उन्होंने कहा कि वह पहले 15 दिन महाराष्ट्र में घूमेंगे, फिर जनता की राय को बहाना बनाकर बीजेपी को सपोर्ट का ऐलान करेंगे। शरद पवार चाहते थे कि तब तक राष्ट्रपति शासन लगा दिया जाए।
12 नवंबर को राष्ट्रपति शासन का ऐलान किया गया, लेकिन अगले 12 दिनों में कुछ ऐसा हुआ जिसकी उम्मीद पवार को नहीं थी। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने शिवसेना को सपोर्ट करने के लिए ग्रीन सिग्नल दे दिया। पवार को तब लगा कि बीजेपी के साथ जाने के बजाय कांग्रेस और शिवसेना के साथ मिलकर सरकार बनाने में ज्यादा फायदा है। इससे सरकार पर उनका नियन्त्रण ज्यादा होगा। इसीलिए पवार ने महाविकास आघाड़ी बनाने पर काम शुरू कर दिया।
अब सवाल यह है कि अगर शरद पवार ने उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री बनाने का फैसला कर लिया था, तो फिर अजीत पवार को देवेंद्र फडणवीस के साथ सुबह-सुबह शपथ लेने क्यों भेजा? क्या वाकई में महाराष्ट्र में राष्ट्रपति को शासन को हटवाने के लिए यह एक चाल थी, जैसा कि पवार ने दावा किया?
इसकी हकीकत भी आपको बताता हूं। असल में अजीत पवार को शरद पवार ने देवेंद्र फडणवीस के पास नहीं भेजा था, अजीत पवार ने बगावत ही की थी। अजीत पवार तो फडणवीस के साथ मिलकर सरकार बनाने की सारी बात कर चुके थे। लेकिन जब उन्हें यह पता लगा कि शरद पवार का मूड बदल चुका है, और अब वह चुपके से शिवसेना के साथ मिलकर सरकार बनाने की तैयारी कर रहे हैं, तो अजीत पवार नाराज हो गए। उन्होंने अपने समर्थक विधायकों के साथ लेकर फडणवीस के साथ सरकार बनाने का फैसला कर लिया।
रात में ही राज्यपाल के पास जाकर सरकार बनाने का दावा पेश किया गया, और 23 नवंबर की सुबह देवेंद्र फडणवीस ने मुख्यमंत्री और अजीत पवार ने उपमुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ले ली। महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन हट गया, और नई सरकार बन गई। शिवसेना ने इसके बाद सुप्रीम कोर्ट में अपील की। 24 नवंबर को रविवार का दिन होने के बावजूद सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की, और 26 नवंबर को फैसला सुनाया। इस बीच शरद पवार ने अजीत पवार के खिलाफ कोई एक्शन नहीं लिया।
पवार 25 नवंबर को ताज होटल में उद्धव ठाकरे, कांग्रेस नेता अशोक चव्हाण और तमाम नेताओं से मिले, और महाविकास अघाड़ी का ऐलान कर दिया। चूंकि सुप्रीम कोर्ट ने 26 नबंवर को देवेंद्र फडणवीस को 30 घंटे के अंदर बहुमत साबित करने को कहा था, इसलिए उनके पास इस्तीफा देने के अलावा कोई चारा नहीं था। फडणवीस ने इस्तीफा दिया। 28 नबंवर को NCP और कांग्रेस के समर्थन से उद्धव ठाकरे ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली।
फडणवीस ने 3 दिन पहले कह दिया था कि शरद पवार की जानकारी में सबकुछ हुआ था। उन्हें पता था कि अजीत पवार उपमुख्यमंत्री के तौर पर शपथ लेंगे। जाहिर सी बात है कि शरद पवार कभी भी इस तथ्य को सार्वजनिक तौर पर स्वीकार नहीं करेंगे क्योंकि ऐसा करने पर पार्टी का खेल खराब हो सकता है। इसलिए उन्होंने बुधवार को एक अलग ही ट्रैक पकड़ लिया। उन्होंने आरोप लगाया कि बीजेपी अब ‘विरोधियों को खत्म करने में लगी है।’ पवार ने शिंदे गुट को असली शिवसेना की मान्यता देने और पार्टी का चुनाव चिह्न देने के चुनाव आयोग के फैसले का जिक्र किया। अब यह मामला सुप्रीम कोर्ट के सामने है।
पवार ने कहा, ‘राजनीति में मतभेद आम बात है लेकिन देश में ऐसा कभी नहीं हुआ जब पार्टी का नाम और चुनाव चिह्न शक्ति का दुरुपयोग करने वालों ने छीन लिया हो। जब कांग्रेस में विभाजन हुआ, तो कांग्रेस (आई) और कांग्रेस (एस) नाम के दो संगठन सामने आये। मैं कांग्रेस (एस) का अध्यक्ष था और इंदिरा गांधी कांग्रेस (आई) की प्रमुख थीं। उस वक्त मेरे पास कांग्रेस के नाम का इस्तेमाल करने का अधिकार था। आज के परिदृश्य में पार्टी का नाम और उसका चिह्न दूसरों को दे दिया गया है। भारत के इतिहास में ऐसा कभी नहीं हुआ।’
पवार ने कहा, ‘जब भी सत्ता का बहुत ज्यादा दुरुपयोग होता है और किसी दल को दबाने की कोशिश की जाती है तो जनता उस दल के साथ खड़ी हो जाती है। मैंने हाल ही में कई जिलों का दौरा किया और पाया कि हालांकि नेताओं ने शिवसेना छोड़ दी है, लेकिन कट्टर शिव सैनिक अब भी उद्धव ठाकरे के साथ हैं और यह चुनाव में साबित हो जाएगा।’
चुनाव आयोग के आदेश के बारे में पूछे जाने पर पवार ने कहा, ‘निर्णय किसने लिया? क्या यह आयोग था, या कोई और है जो आयोग का मार्गदर्शन कर रहा है? इस तरह के फैसले पहले कभी नहीं किए गए थे। इसके पीछे किसी बड़ी ताकत की भूमिका से इंकार नहीं किया जा सकता है।’ पवार ने सभी विपक्षी दलों से ‘लोकतंत्र को बचाने और बीजेपी से लड़ने’ के लिए हाथ मिलाने की अपील की।
शरद पवार ने ये सारी बातें बुधवार को कांग्रेस के लिए कैंपेन करते हुए कहीं। उनका मैसेज साफ है कि बीजेपी से अब उनका कोई रिश्ता-नाता नहीं बचा। वह बताना चाह रहे हैं कि वह पूरी तरह सोनिया गांधी और उद्धव ठाकरे के साथ हैं। पवार कह रहे हैं कि नरेंद्र मोदी दूसरे सियासी दलों को जिंदा रहने नहीं देंगे, इसलिए सबको साथ आने की जरुरत है। पवार साहब ने यह भी बता दिया कि आज जिनकी हुकूमत है वे चुनाव आयोग समेत सारी संस्थाओं का इस्तेमाल अपने लिए करते हैं।
ये सारी बातें कांग्रेस और दूसरे विरोधी दलों को सुनने में अच्छी लग सकती हैं। यह भी सही है कि आज के जमाने में शरद पवार सबसे अनुभवी और सबसे चतुर नेता हैं। वह चार कदम आगे की सोचकर चलते हैं, और विरोधी दलों के नेता भी उनकी इंटेलिजेंस पर भरोसा करते हैं, उनकी रणनीति का लोहा मानते हैं। पर दिक्कत यह है शरद पवार पर पूरी तरह भरोसा नहीं किया जा सकता, और विरोधी दलों के नेता इस बात को अच्छी तरह समझते हैं।
इन नेताओं को अंदर ही अंदर लगता है कि वह कब किसके साथ चले जाएंगे, कब किसका साथ छोड़ देंगे, निश्चित तौर पर नहीं कहा जा सकता। हालांकि शरद पवार फिलहाल दावा कर रहे हैं कि वह महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे के साथ हैं, लेकिन एकनाथ शिंदे गुट के नेताओं का कहना है कि जब उद्धव के पास न पार्टी रहेगी, न सिंबल रहेगा, तो शरद पवार का साथ भी नहीं रहेगा। शरद पवार का रुख शिवसेना के चुनाव निशान के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट के अंतिम फैसले के बाद साफ होगा। (रजत शर्मा)
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