Rajat Sharma's Blog | बांग्लादेश के तख्तापलट के पीछे पाकिस्तानी ISI का हाथ
शेख हसीना ने जमात-ए-इस्लामी के खिलाफ एक्शन लिया लेकिन जमात ने छात्र नेताओं को सामने कर दिया। इन सारे छात्र नेताओं के तार कट्टर इस्लामिक संगठन जमात-ए-इस्लामी से जुड़े हैं। इन संगठनों को पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI पैसे देती है।
बांग्लादेश में प्रधानमंत्री शेख हसीना को इस्तीफा देकर देश छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा। शेख हसीना और उनकी बहन बांग्लादेश की सेना के विमान से ढाका से निकल कर दिल्ली पहुंचीं। पता ये लगा है कि शेख हसीना भारत होते हुए लंदन जाना चाहती थीं लेकिन ब्रिटेन ने शेख हसीना को राजनीतिक शरण देने से इनकार कर दिया है। बांग्लादेश के राष्ट्रपति मोहम्मद शाहबुद्दीन ने सोमवार रात को ऐलान किया कि संसद को भंग कर देशव्यापी चुनाव कराये जाएंगे, और तब तक एक अन्तरिम सरकार रहेगी। राष्ट्रपति ने जेल में बंद बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी की अध्यक्ष बेगम खालिदा जिया को फौरन रिहा करने का आदेश जारी कर दिया। खालिदा जिया के बेटे तारिक रहमान, जो इस वक्त ब्रिटेन में है, बांग्लादेश लौटने वाले हैं। आंदोलकारी छात्र नेताओं ने मांग की है कि कोई भी अन्तरिम सरकार नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री डॉ. मुहम्मद युनुस की देखरेख में बनायी जानी चाहिए। छात्रों ने मोहम्मद युनुस को मुख्य सलाहकार बनाने की मांग की है। बांग्लादेश के थल सेनाध्यक्ष जनरल वकार उज्जमां ने लोगों से शांति बनाए रखने की अपील की लेकिन सोमवार देर रात तक समूचे देश में आगजनी , हत्या और हमलों की घटनाएं हुई। ढाका के कई थानों में आग लगा दी गई, पुलिस वाले दीवार फांद कर भाग गए। सोमवार को सुबह से ही लाखों लोग ढाका की सड़कों पर निकल आए और शाहबाग की तरफ जाने लगे। हजारों छात्रों ने प्रधानमंत्री के निवास पर हमला कर दिया और सारे कीमती सामान लूट कर भाग गए। प्रदर्शनकारी संसद भवन में भी घुस गए।
थल सेनाध्यक्ष ने राजनीतिक दलों के नेताओं की बैठक बुलाई और अन्तरिम सरकार बनाने के बारे में बातचीत की। जनरल वकार उज-ज़मां ने लोगों से संयम बनाए रखने की अपील की है और प्रदर्शनकारियों से अपने अपने घर लौटने को कहा। मंगलवार सुबह ढाका में शांति रही, सरकारी दफ्तर, दुकानें और अदालतें खुलीं, लेकिन जिलों में हिन्दुओं के घरों और मंदिरों में तोड़फोड़ और आगज़नी की घटनाएं हुई। बांग्लादेश में हो रही हिंसा में अब तक चार सौ से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। प्रशासन नाम की चीज नही हैं। सेना की कोई सुन नहीं रहा। इसलिए सबसे बड़ा सवाल ये है कि बांग्लादेश में अब क्या होगा और वहां जो हालात हैं, उनका हमारे देश पर क्या असर हो सकता है। शेख हसीना ने इसी साल जनवरी में लगातार चौथी बार भारी बहुमत से सरकार बनाई थी लेकिन 6 महीने के भीतर ही अपने देश से भागना पड़ा। ढाका की सड़कों पर शेख़ मुजीब की मूर्तियों पर हथौड़ा और बुलडोज़र चलाते-चलाते प्रदर्शनकारियों की भीड़ प्रधानमंत्री आवास गण भवन में दाखिल हो गई। प्रदर्शनकारियों ने प्रधानमंत्री आवास में लूट-पाट शुरू कर दी। ढाका में वही मंज़र दोहराया जाने लगा जैसा हमने श्रीलंका में देखा था। बांग्लादेश में इन विरोध प्रदर्शनों की शुरुआत पिछले महीने से हुई थी जब सरकारी नौकरियों में आज़ादी की लड़ाई के नायकों की तीसरी पीढ़ी को आरक्षण देने का विरोध शुरू हुआ था। इसकी शुरुआत ढाका विश्वविद्यालय से हुई थी। बांग्लादेश में 1971 के मुक्ति युद्ध में लड़ने वालों को नौकरी में आरक्षण मिलता था। फिर मुक्ति योद्धाओं के बेटे-बेटियों को भी आरक्षण मिला। अब बांग्लादेश में मुक्ति योद्धाओं के पोते पोतियों के लिए भी एक तिहाई से ज़्यादा सरकारी पद आरक्षित हैं। छात्रों का विरोध इसी बात को लेकर था।
बहुत जल्दी ही आरक्षण विरोध का ये आंदोलन, शेख़ हसीना सरकार के ख़िलाफ़ बड़े आंदोलन में तब्दील हो गया। इसके बाद शेख़ हसीना की पार्टी अवामी लीग के कार्यकर्ता छात्रों के विरोध में उतरे। हिंसा ढाका से शुरू हुई और धीरे-धीरे पूरे देश में फैल गई। पिछले 15 साल से सत्ता पर क़ाबिज़ शेख़ हसीना के ख़िलाफ़ छात्रों के इस आंदोलन को प्रतिबंधित कट्टरपंथी संगठन जमात-ए-इस्लामी ने हाईजैक कर लिया क्योंकि शेख़ हसीना की सरकार ने पाकिस्तान का साथ देने वाले जमात के कई नेताओं को फांसी की सज़ा दिलाई थी और जमात-ए-इस्लामी पर पाबंदी भी लगा दी थी। जब सुप्रीम कोर्ट ने मुक्ति योद्धाओं की तीसरी पीढ़ी को रिज़र्वेशन देने पर रोक लगाई तो विरोध प्रदर्शन कुछ दिनों के लिए रुके लेकिन पिछले एक हफ़्ते से पूरे बांग्लादेश में सरकार के ख़िलाफ़ हिंसक प्रदर्शन फिर से शुरू हो गए थे। पूर्व विदेश सचिव, और बांग्लादेश में भारत के उच्चायुक्त रह चुके हर्षवर्धन श्रृंगला ने कहा कि शेख़ हसीना की तख़्तापलट के पीछे जमात-ए-इस्लामी और बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी के अलावा, कुछ विदेशी ताक़तों का भी हाथ हो सकता है। बांग्लादेश में सरकार विरोधी प्रदर्शन करने वाला कटट्टरपंथी हैं। इसलिए अब वहां रहने वाले हिन्दुओं पर खतरा है। बांग्लादेश के कम से कम 27 नगरों में हिंदुओं के घरों और मंदिरों पर हमले की ख़बरें आई हैं। हिंदू नेताओं ने बताया कि दंगाइयों ने हिंदुओं के मंदिरों में घुसकर तोड़-फोड़ की। ढाका में भारत की मदद से बनाए गए इंदिरा गांधी कल्चरल सेंटर में भी दंगाइयों ने तोड़-फोड़ की।
पश्चिम बंगाल के बीजेपी नेता शुभेंदु अधिकारी ने तो ये दावा कर दिया कि बांग्लादेश में जो हालात हैं, उसकी वजह से क़रीब एक करोड़ बांग्लादेशी हिंदू पनाह लेने के लिए भारत का रुख़ कर सकते हैं और बांग्लादेश की सीमा से लगने वाले ज़िलों में इसकी तैयारी कर लेनी चाहिए। बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा कि उनकी सरकार बांग्लादेश के बारे में जो भी केंद्र सरकार का निर्देश होगा, उसका पालन करेंगी। ममता बनर्जी ने सभी नेताओं से अपील की कि वो ऐसे बयान न दें जिससे माहौल बिगड़े। ममता की ये बात सही है कि मामला अंतरराष्ट्रीय है, संवेदनशील है, बांग्लादेश में हिन्दुओं पर खतरा है, इसलिए आगे क्या करना है, इसका फैसला केन्द्र सरकार को ही करना है। मंगलवार को एक सर्वदलीय बैठक में विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने सभी नेताओं को वहां के हालात के बारे में जानकारी दी और बाद में संसद में बयान भी दिया। बांग्लादेश के सियासी हालात का असर हमारे देश पर होगा, इसमें कोई शक नहीं हैं क्योंकि बांग्लादेश कभी भारत का ही हिस्सा था। वहां लाखों हिन्दू परिवारों के नाते रिश्ते भारत में हैं। भारत बांग्लादेश का सबसे बड़ा ट्रेडिंग पार्टनर है। शेख हसीना को भारत का करीबी माना जाता है। उनकी पार्टी उदारवादी है जबकि जो संगठन इस वक्त बांग्लादेश में हंगामा कर रहे हैं, वो इस्लामी कट्टरपंथी हैं, और भारत विरोधी माने जाते हैं। इसलिए हमारे देश पर बांग्लादेश के हालात का असर तो होगा। बांग्लादेश में भारत के जो करीब आठ हजार छात्र फंसे हैं, उनकी सुरक्षा की चिंता भी भारत सरकार को है। इसीलिए सरकार को बहुत सोच-समझकर फैसला करना है।
सबसे बड़ा सवाल ये है कि शेख हसीना को इस्तीफा क्यों देना पड़ा? अपना मुल्क छोड़कर इस तरह क्यों भागना पड़ा? ऊपर से तो यही दिखाई देता है कि छात्र आदोलन की वजह से हालात खराब होते जा रहे थे, ये आंदोलन आरक्षण के नाम पर हुआ और शेख हसीना ने इस आंदोलन को दबाने के लिए जो भी प्रयास किए वो नाकाम साबित हुए। लेकिन इस आंदोलन और शेख हसीना के इस्तीफे के पीछे की कहानी, इससे कहीं बड़ी है। इस पूरे आंदोलन के पीछे इस्लामिक कठमुल्लावादी ताकतें है। इसके पीछे जमात-ए-इस्लामी है। जमात की पॉलिसी और मकसद बांग्लादेश को इस्लामिक तरीके से चलाना है। वहां इस्लामिक रूल लागू करना है। और शेख हसीना इस रास्ते में सबसे बड़ी बाधा बनी हुई थीं। शेख हसीना ने जमात-ए-इस्लामी के खिलाफ एक्शन लिया लेकिन जमात ने छात्र नेताओं को सामने कर दिया। इन सारे छात्र नेताओं के तार कट्टर इस्लामिक संगठन जमात-ए-इस्लामी से जुड़े हैं। इन संगठनों को पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI पैसे देती है। शेख हसीना ने बांग्लादेश के कट्टरपंथियों पर लगाम लगाने की कोशिश की। नतीजा ये हुआ कि जमात-ए-इस्लामी जैसे संगठन शेख हसीना को किसी भी कीमत पर हटाने के काम में जुट गए। इसमें ISI का भी बड़ा रोल है। इसीलिए ये आंदोलन इतना बड़ा बना। लेकिन बांग्लादेश में एक बहुत बड़ा तबका है जो शेख हसीना का समर्थन करता है लेकिन इस बार आगजनी, हिंसा और तोड़फोड़ की घटनाओं के सामने ये लोग खामोश हो गए। इस्लामिक कट्टरपंथियों के शक्तिशाली होने से बांग्लादेश में रहने वाले हिंदुओं के लिए बड़ा खतरा पैदा हो गया है। दंगाईयों ने सोमवार को बहुत सी जगहों हिंदुओं के घर जलाए, मंदिरों में तोडफोड़ की। भारत सरकार को सबसे ज्यादा चिंता ऐसे ही लोगों की है। इसीलिए एक-एक कदम फूंक-फूंक कर रखा जा रहा है। (रजत शर्मा)
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