Rajat Sharma’s Blog | पाकिस्तान: इमरान खान को ज़मानत
पाकिस्तान में कोई नियम कानून को नहीं मान रहा है, जिसकी जो मर्जी है वही कर रहा है.इसलिए अब पाकिस्तान में आगे क्या होगा, कोई नहीं जानता.
पाकिस्तान में शुक्रवार को इस्लामाबाद होई कोर्ट ने पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान को दो हफ्ते के लिए ज़मानत दे दी. हाई कोर्ट ने आदेश दिया कि इमरान को 17 मई तक गिरफ्तार न किया जाय. इमरान आज मुल्क से खिताब करने वाले हैं. इस तरह तीन दिन से पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में चल रहे ड्रामे पर पर्दा गिरा. इमरान खान ने हाई कोर्ट में कहा कि अगर मुझे गिरफ्तार किया गया, तो सरकार को इसके नतीजे भुगतने के लिए तैयार रहने चाहिए. हाई कोर्ट परिसर में ‘इमरान खान जिन्दाबाद’ के नारे लगाए गए, इमरान के समर्थकों और पाकिस्तान रेंजर्स के बीच झड़पें भी हुई. कई गाड़ियों में आग लगा दी गई. इमरान खान को कल रात पुलिस लाइन्स गेस्ट हाउस में रखा गया और आज सुबह कड़ी सुरक्षा के बीच हाई कोर्ट में लाया गया. गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि इमरान खान को फौरन रिहा किया जाय , लेकिन साथ ही उन्हें हिदायत दी थी कि वो अपने खिलाफ चल रहे मामलों में सुनवाई के लिए हाई कोर्ट में पहुंचे.
शुक्रवार को इमरान खान ने हाई कोर्ट में कहा कि उन्हें हिरासत मे पीटा गया, और उनके साथ इस वक्त जो कुछ हो रहा है, उसके लिए थल सेनाध्यक्ष जनरल आसीम मुनीर जिम्मेवार हैं. इमरान ने कहा कि ‘ये मेरा वतन है, और मैं अपना वतन छोड़ कर मुल्क के बाहर नहीं जाऊंगा.’ गुरुवार को, पाकिस्तान की सूचना मंत्री मरियम औरंगजेब ने सुप्रीम कोर्ट की जम कर आलोचना करते हुए कहा था कि अगर चीफ जस्टिस बंडियाल को इमरान खान के प्रति इतनी हमदर्दी है, तो वो इस्तीफा देकर उनकी पार्टी में क्यों नहीं शामिल हो जाते. मरियम औरंगजेब ने कहा कि ‘ सुप्रीम कोर्ट ने एक चोर, एक लुटेरे, और एक भ्रष्ट इंसान को रिहा करने का आदेश दिया है.’ एक पूर्व मंत्री शेख रशीद ने मांग की कि मुल्क में फौरन चुनाव कराए जाएं, साथ ही उन्होंने हिंसा और आगजनी करने वालों की जम कर मज़म्मत की. शेख रशीद की ये बात सही है कि शहबाज़ शरीफ ने इमरान खान को गिरफ्तार करके उन्हें वाकई में हीरो बना दिया, लेकिन ये भी सही है कि पाकिस्तान में कुछ भी ठीक नहीं हैं. जिस तरह से रेंजर्स ने इमरान खान को गिरफ्तार किया, वो गलत था. इसके बाद इमरान खान के समर्थकों ने जिस तरह पाकिस्तान में आग लगाई, वो भी गलत था. इसके बाद जिस तरह मंत्रियों ने कोर्ट के खिलाफ बयानबाजी की, वो भी ठीक नहीं था. फिर जिस तरह से सेना की तरफ से धमकियां दी गई और आज जिस तरह से सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को जलील किया, वो भी ठीक नहीं था. कुल मिलाकर पाकिस्तान में कोई नियम कानून को नहीं मान रहा है, जिसकी जो मर्जी है वही कर रहा है.इसलिए अब पाकिस्तान में आगे क्या होगा, कोई नहीं जानता.
महाराष्ट्र: नैतिकता की बात करना हास्यास्पद
महाराष्ट्र की एकनाथ शिंदे सरकार के बारे में गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाया. सुप्रीम कोर्ट ने शिंदे सरकार को इस्तीफा देने के लिए नहीं कहा, लेकिन साथ में ये जरूर कहा कि पिछले साल 30 जून को विधानसभा में शक्ति परीक्षण से एक दिन पहले अगर उद्धव ठाकरे ने इस्तीफा न दिया होता, तो इस बात की संभावना थी कि उनकी सरकार बहाल हो जाती. सुप्रीम कोर्ट ने विधानसभा में 30 जून को कराये गये शक्ति परीक्षण को गैरकानूनी बताया. कोर्ट ने इसके साथ ही तत्कालीन राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी की भूमिका की आलोचना की और कहा कि राज्यपाल का मुख्यमंत्री से कहना कि वह विधानसभा के अन्दर बहुमत साबित करे, गलत था. कोर्ट ने कहा कि किसी पार्टी के अन्दरूनी झगड़े में विधानसभा में शक्ति परीक्षण कराना माध्यम नहीं हो सकता. मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया, जबकि उद्धव ठाकरे ने मांग की कि शिंदे नैतिक आधार पर अब इस्तीफा दें. भगत सिंह कोश्यारी ने कहा कि ‘ मैं तो कानून का छात्र नहीं हूं. मैने जो उचित समझा, वही किया. जब कोई इस्तीफा लेकर मेरे सामने आ जाए, तो मैं क्या करता?’
मुझे ये सुनकर हंसी आई कि शिन्दे और उद्धव नैतिकता की बात कर रहे हैं. एकनाथ शिन्दे ने जब उद्धव ठाकरे के विधायक तोड़े, उन्हें लेकर गुवाहाटी में बैठ गए तो कहां गई थी नैतिकता. उद्धव ठाकरे ने बीजेपी के साथ चुनाव लड़ा, और सरकार NCP और कांग्रेस के साथ बना ली, तो उन्हें नैतिकता याद क्यों नहीं आई. देवेन्द्र फडणवीस और अजीत पवार ने जब रात के अंधेरे में समझौता करके सरकार बनाई थी, तब नैतिकता का सवाल दिल में क्यों नहीं उठा. इसलिए महाराष्ट्र के ये सारे के सारे नेता नैतिकता की बात न ही करें तो अच्छा. सुप्रीम कोर्ट के आदेश का असर ये हुआ कि जिसको जो चाहिए था वो मिल गया. शिन्दे को सरकार में आना था, उन्हें अपनी कुर्सी की फिक्र थी, वो बच गई. शिन्दे मुख्यमंत्री बने रहेंगे. उद्धव को ये दिखाना था कि उन्हें गलत तरीके से हटाया गया, शिन्दे ने उन्हें धोखा देकर सरकार बनाई, तो उनकी बात सही सााबित हो गई. जिन विधायकों को सदस्यता जाने का डर था, उनका कुछ नहीं बिगड़ेगा, क्योंकि फैसला स्पीकर के हाथ में है. अब महाराष्ट्र में शिन्दे की सरकार चलती रहेगी, उद्धव शिन्दे को मिंघे कहकर ढो़ल बजाते रहेंगे, और नैतिकता अपने लिए किसी कोने में जगह पाने का इंतजार करती रहेगी.
दिल्ली में एक सरकार हो, अलग अलग एजेंसियां नहीं
दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार को सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार को एक बड़ी सफलता मिली. पांच जजों की खंडपीठ ने अपने अहम फैसले में कहा कि दिल्ली की चुनी हुई सरकार को सेवाओं पर कार्यकारी और विधायी अधिकार, दोनों हैं. चुनी हुई सरकार अफसरों की ट्रांसफर, पोस्टिंग कर सकती है और अफसर मंत्रियों के सामने जवाबदेह होंगे. पीठ ने कहा कि दिल्ली सरकार का यह फर्ज है कि वह दिल्ली की जनता की इच्छाओं को पूरा करे, जिसने उसे चुना है. पीठ ने ये भी कहा कि दिल्ली सरकार का सेवाओं पर पूरा नियंत्रण रहेगा, लेकिन जो विषय दिल्ली सरकार के अधीन नहीं है, उस पर नियंत्रण नहीं रहेगा. कोर्ट ने ये भी कहा कि उपराज्यपाल दिल्ली की अफसरशाही पर नियंत्रण के मामले में चुनी हुई सरकार का निर्णय मानने के लिए बाध्य होंगे. मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने फैसले का स्वागत किया और सेवा विभाग के सचिव को तुरंत उनके पद से हटा दिया.
मैं इस बात से सहमत हूं कि दिल्ली की चुनी हुई सरकार के पास अफसरों को नियुक्त करने और उनका तबादला करने अधिकार होना चाहिए. इसमें केन्द्र सरकार का दखल न हो तो अच्छा. लेकिन केजरीवाल को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वो अफसरों के खिलाफ बदले की भावना से कार्रवाई न करें. काम करने वाले अफसरों को आजादी भी मिले और सम्मान भी. अब किसी अफसर को घर बुला कर उसके साथ घूंसेबाजी की शिकायत करने का मौका न मिले. दिल्ली की मुख्य समस्या ये है कि यहां मल्टीपल एजेंसी काम करती है. केन्द्र सरकार का दखल है, दिल्ली सरकार है, इसके अलावा DDA, MCD, NDMC, दिल्ली छावनी बोर्ड है. और जब इन संस्थाओं में आपसी समन्वय और सम्पर्क की कमी होती है, तो दिल्ली के विकास में समस्या पैदा होती है. अगर इस दिक्कत को दूर कर लिया जाए, और मल्टीपल एजेंसियों की बजाए दिल्ली में एक सरकार हो, जिसके पास सारे अधिकार हों, तभी दिल्ली का विकास ठीक से हो पाएगा. (रजत शर्मा)
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