Rajat Sharma's Blog: शिमला में बाहर से कौन आया, क्यों आया, कैसे आया?
शिमला के लोगों की नाराज़गी देखकर, इतनी भारी संख्या में प्रोटेस्टर्स को देखकर ये तो साफ है कि मस्जिद का विवाद सिर्फ ट्रिगर प्वाइंट है। असली दिक्कत ये है कि अचानक बाहर से आकर लोग शिमला में बस गए हैं।
शिमला में गुरुवार को पहली बार मज़हबी झगड़े की आग दिखाई दी। पहली बार हजारों लोग सड़कों पर उतरे। सबकी मांग एक थी कि शिमला में आए बांग्लादेशी और रोहिंग्या मुसलमानों को बाहर किया जाए। सबकी शिकायत एक थी कि ये लोग शिमला में शान्ति और भाईचारे के लिए खतरा बन गए हैं। ये बात इसलिए बड़ी बन गई क्योंकि हिमाचल की कांग्रेस सरकार के मंत्री अनिरुद्ध सिंह भी इस प्रोटेस्ट में शामिल हुए। उन्होंने प्रदर्शनकारियों की मांग को जायज़ बताया। अनिरूद्ध सिंह ने विधानसभा में भी मुख्यमंत्री से विनती की। कहा कि इस बात की जांच कराई जाए कि अचानक शिमला में बाहरी मुसलमानों की संख्या कैसे बढ़ गई, रेहड़ी पटरी और बाजारों पर रोहिंग्या मुसलमानों का कब्जा कैसे हो गया। जब अनिरुद्ध सिंह हिन्दू संगठनों के प्रोटेस्ट में शामिल हुए, तो मुख्यमंत्री सुखविन्दर सिंह सुक्खू को कहना पड़ा कि मंत्रियों, विधायकों को इस तरह के मामलों में नहीं पड़ना चाहिए। शिमला के लोगों ने सरकार को अल्टीमेटम दिया है कि दो दिन के भीतर शिमला में सरकारी जमीन पर बनी गैर क़ानूनी मस्जिद को गिराया जाए। आरोप है कि ये मस्जिद बाहरी मुसलमानों की पनाहगाह बन गई है, सारी गड़बडियों का केंद्र यही मस्जिद है, अगर सरकार मस्जिद नहीं गिराती है तो हिन्दू ये काम खुद करेंगे।
मामला बढ़ा तो इस विवाद में AIMIM चीफ असदुद्दीन ओवैसी और कांग्रेस सांसद इमरान मसूद जैसे नेता भी कूद पड़े। उन्होंने कहा कि ये पुरानी मस्जिद है, और मामला कोर्ट में है, इसलिए इसे गिराने का सवाल पैदा नहीं होता। आमतौर पर शिमला शान्त रहता है। सैलानियों से भरा रहता है लेकिन गुरुवार को शिमला की सड़कों पर नारे लगाते हुए हजारों लोगों का हुजूम पहुंचा। चौड़ा मैदान में हिन्दुओं को इकट्ठा होने की अपील देवभूमि क्षत्रिय संगठन की तरफ से की गई थी। मस्जिद का विरोध तो सिर्फ एक छोटा कारण था। लोगों की ज्यादा नाराजगी की मुख्य वजह शिमला में आए दिन होने वाली लूटपाट, चोरी, और छेड़खानी की घटनाएं थी और ज़्यादातर मामलों में इस तरह की हरकतें करने वाले बाहरी मुसलमान हैं। लोगों का इल्ज़ाम है कि संजौली मस्जिद इस तरह के लोगों की पनाहगाह बनी हुई है। जिस मस्जिद में पहले सिर्फ एक मंजिल थी, अब चार मंजिलें बन गई हैं, जहां पहले सिर्फ दो चार लोग रहते थे, अब वहां तीन सौ से ज्यादा लोग मस्जिद में आते जाते रहते हैं। लोगों का कहना है कि मस्जिद गैर क़ानूनी है क्योंकि सरकारी ज़मीन पर बनी है।
शिमला में ढाई मंजिल से ज्यादा ऊंचा इमारत बनाने पर पाबंदी है। प्रदर्शनकारियों ने ये भी साफ कर दिया कि उन्हें शिमला में रहने वाले हिमाचली मुसलमानों से कोई दिक्कत नहीं हैं लेकिन बाहर से आए रोहिंग्या और बांग्लादेशी मुसलमान भाईचारे के लिए खतरा बन गए हैं। प्रदर्शनकारी महिलाओं ने कहा कि शिमला की सड़कों पर लगने वाली दुकानों पर रेहड़ी पटरी पर, रोहिंग्या मुसलमानों ने क़ब्ज़ा कर लिया है, वे हिन्दुओं को दुकान नहीं लगाने देते, सड़क पर बहन बेटियों को छेड़ते हैं, विरोध करने पर ख़ून ख़राबे पर उतर आते हैं। विधानसभा में मंत्री अनिरुद्ध सिंह ने कहा कि 2007 में मस्जिद बननी शुरू हुई, 2010 में इसकी शिकायत की गई, मुकदमा कोर्ट में गया लेकिन मस्जिद का काम जारी रहा और अब मस्जिद चार मंजिल की हो गई हैं। अनिरूद्ध सिंह ने इस बात पर हैरानी जताई कि 14 सालों तक मुक़दमा चलता रहा, मस्जिद भी बनती रही और प्रशासन सोता रहा। शहरी विकास मंत्री विक्रमादित्य सिंह ने कहा कि संजौली मस्जिद का मसला कोर्ट में है, 44 पेशियां हो चुकी हैं, और कोर्ट का जो भी फ़ैसला होगा, उसका पालन सरकार कराएगी। उन्होंने माना कि मस्जिद में अवैध निर्माण किया गया था।
AIMIM चीफ असदुद्दीन ओवैसी विवाद में कूद पड़े। राहुल गांधी से पूछा कि मुहब्बत की दुकान में इतनी नफ़रत कैसे भर गई, मस्जिद का मुक़दमा कोर्ट में है और हिंदूवादी उसे गिराने की मांग कर रहे हैं तो कांग्रेस के मंत्री उनका समर्थन कर रहे हैं, देश के नागरिकों को बांग्लादेशी और रोहिंग्या कह रहे हैं। यूपी से कांग्रेस सांसद इमरान मसूद ने कहा कि अनिरुद्ध सिंह लव जिहाद और रोहिंग्या घुसपैठियों जैसे जुमलों का इस्तेमाल करके बीजेपी की ज़ुबान बोल रहे हैं, जो ठीक नहीं है, वो ये मामला आला कमान के सामने उठाएंगे। हिमाचल के मुख्यमंत्री सुखविंदर सुक्खू ने कहा कि मंत्रियों को सांप्रदायिक बयान नहीं देने चाहिए, किसी को भी क़ानून हाथ में लेने का अधिकार नहीं है। कोर्ट का फ़ैसला आने के बाद उनकी सरकार ज़रूरी क़दम उठाएगी।
शिमला के लोगों की नाराज़गी देखकर, इतनी भारी संख्या में प्रोटेस्टर्स को देखकर ये तो साफ है कि मस्जिद का विवाद सिर्फ ट्रिगर प्वाइंट है। असली दिक्कत ये है कि अचानक बाहर से आकर लोग शिमला में बस गए हैं। जो शिमला महिलाओं के लिए सुरक्षित था, वहां आए दिन छेड़खानी होने लगी हैं। जो शिमला हमेशा शांत रहता था, वहां आए दिन झगड़े और लूटपाट की घटनाएं होने लगी हैं। शिमला में लोग पीढ़ियों से मिलजुल कर भाईचारे के साथ रहते रहे हैं। बड़ी संख्या में बाहर से आए बांग्लादेशी और रोहिंग्या आकर तहखानों में रहने लगे। उनकी न कोई पहचान है, न उनपर कोई रोक। दूसरी बात, जो बाहरी मुसलमान शिमला में बसे हैं, उन्हें मस्जिद में पनाह मिलती है, जुमे के दिन मस्जिद में सैकड़ों लोग जुटते हैं, कई बार मारपीट की घटनाएं हुई हैं जो शिमला के लिए बड़ी असामान्य घटना है।
सबसे बड़ी बात ये कि शिमला में ढ़ाई फ्लोर से ज्यादा के निर्माण की इजाजत नहीं हैं, फिर चार मंजिला मस्जिद कैसे बन गई? नोट करने वाली बात ये है कि ये अवैध निर्माण कुछ महीनों में नहीं हुआ, इसमें बरसों लगे, इस दौरान कांग्रेस और बीजेपी दोनों की सरकारें रहीं। पर किसी ने एक्शन नहीं लिया। अगर ये मसला किसी बीजेपी के नेता ने उठाया होता तो इसे RSS का रंग दे दिया गया होता। पर ये सवाल कांग्रेस के स्थानीय MLA ने उठाया, जो सुक्खू की सरकार में मंत्री हैं। अनिरुद्ध सिंह ने विधानसभा में जो कहा वो चेतावनी है। मुख्यमंत्री ने कानून की बात कही पर उन्हें शिमला के लोगों की संवेदनाओं को समझना होगा। सुखविंदर सिंह सुक्खू खुद भी शिमला वाले हैं, वो लोगों की भावनाओं को समझते हैं। उन्हें इस समस्य़ा के बारे में एक व्यापक दृष्टिकोण अपनाना चाहिए। (रजत शर्मा)
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