Rajat Sharma's Blog | राहुल नेता विपक्ष हैं: ज़िम्मेदारी समझ कर बोलें
अमेरिका की धरती पर खड़े होकर राहुल ने कहा कि बीजेपी चुनाव इसीलिए जीती क्योंकि उसके पास पैसा है, सत्ता है, चुनाव आयोग है, मीडिया है और सारी एजेंसियों पर बीजेपी का क़ब्ज़ा है।
राहुल गांधी आजकल अमेरिका में हैं। वहां उन्होंने हमारे चुनाव आयोग की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए। चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर शक का इज़हार किया। वॉशिंगटन डीसी में जॉर्जटाउन यूनिवर्सिटी के छात्रों बातचीत के दौरान राहुल गांधी ने कहा कि उनकी नज़र में 2024 का लोकसभा चुनाव निष्पक्ष नहीं था। उन्होंने चुनाव आयोग को बीजेपी द्वारा नियंत्रित आयोग बता दिया। राहुल गांधी ने कहा कि चुनाव पूरी तरह से बीजेपी के, नरेंद्र मोदी के पक्ष में कराए गए थे। बीजेपी के पास अपार धन था, प्रशासन की ताक़त थी, चुनाव आयोग का रवैया बीजेपी के पक्ष में था जबकि कांग्रेस के तो बैंक खाते ही फ्रीज कर दिए गए थे। अगर निष्पक्ष चुनाव होते तो बीजेपी 240 सीटें जीत ही नहीं सकती थी। अमेरिका की धरती पर खड़े होकर राहुल ने कहा कि बीजेपी चुनाव इसीलिए जीती क्योंकि उसके पास पैसा है, सत्ता है, चुनाव आयोग है, मीडिया है और सारी एजेंसियों पर बीजेपी का क़ब्ज़ा है। लेकिन राहुल गांधी से कोई ये पूछे कि जब 2014 में चुनाव हुआ था तो कांग्रेस के पास पैसा था, सत्ता थी, ED, CBI जैसी सारी एजेंसियां कांग्रेस के हाथ में थीं, फिर कांग्रेस क्यों नहीं जीत पाई? तब नरेन्द्र मोदी को बहुमत कैसे मिला? क्या उस वक्त भी चुनाव आयोग ने बीजेपी को फायदा पहुंचाया था?
ये बात बचकानी लगती है। मैं एक और बात आपको याद दिलाता हूं। मैंने 1977 का चुनाव देखा है। उस वक्त इंदिरा गांधी जैसी ताक़तवर नेता प्रधानमंत्री थीं। चुनाव होने से पहले 19 महीने तक देश में इमरजेंसी थी, विरोधी दलों के सारे नेता जेल में थे, सारी एजेंसियां बिना किसी रोक-टोक के सरकार के लिए काम कर रही थीं। न्यायपालिका को डराकर रखा गया था और मीडिया पर सेंसरशिप थी। इंदिरा गांधी के विरोध में कोई चूं भी नहीं कर सकता था। उसके बावजूद जब चुनाव हुए तो इंदिरा गांधी बुरी तरह हारीं, जनता पार्टी की सरकार बनी। इसका मतलब साफ है कि अगर जनता आपके खिलाफ हो तो आपके पास चाहे कितनी भी ताक़त हो, चाहे कितना भी पैसा हो, आप चुनाव नहीं जीत सकते। इमरजेंसी के बाद देश ने सबसे खराब समय 1984 में देखा, जब इंदिरा जी की हत्या कर दी गई। हत्या करने वाले उनके अपने सिक्योरिटी गार्ड थे और फिर देश भर में सिख विरोधी दंगे हुए। हजारों सिखों को मौत के घाट उतार दिया गया। वो पहला और आखिरी वक्त था जब सिख समाज ने ऐसा डर, ऐसा खौफ देखा था। इस घटना को 40 साल हो गए। आज इस बात का जिक्र मैंने इसीलिए किया कि राहुल गांधी ने अमेरिका में खड़े होकर सिखों को संबोधित किया और कहा कि वो चाहते हैं कि भारत में सिख बिना किसी डर के पगड़ी पहन सकें, कड़ा पहन सकें, बिना किसी डर के गुरुद्वारा जा सकें।
राहुल गांधी के इन बयानों पर केंद्रीय मंत्री हरदीप पुरी ने तीखी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने इल्ज़ाम लगाया कि राहुल गांधी दुनिया में एक ख़तरनाक नैरेटिव बनाना चाहते हैं कि भारत में सिखों को अपना धर्म मानने की आज़ादी नहीं। हरदीप पुरी ने राहुल गांधी को याद दिलाया कि भारत के इतिहास में सिर्फ़ एक बार 1984 में ऐसा हुआ था, जब सिखों को पगड़ी बांधने और कड़ा पहनने में डर लगा था, जब तीन हज़ार से ज़्यादा बेगुनाह मासूम सिखों को जिंदा जला दिया गया था। राहुल गांधी नरेन्द्र मोदी की मुखालफत करें, उनकी आलोचना करें, ये विपक्ष के नेता के तौर पर उनका हक है। इसमें किसी को कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए लेकिन राहुल गांधी विदेश जाकर हमारी संवैधानिक संस्थाओं को बदनाम करने की कोशिश करें, हमारे देश के सांप्रदायिक सदभाव के खिलाफ बोलें, ये अच्छा नहीं है। मुझे लगता है कि राहुल गांधी को बचपना छोड़ना चाहिए, वो अब प्रतिपक्ष के नेता हैं, उन्हें ज़िम्मेदारी से अपनी बात कहनी चाहिए। संवैधानिक संस्थाओं का अपमान करने के बजाए, जनता की ताकत को, जनादेश को स्वीकार करना चाहिए। वो कब तक इस बात की सफाई देते रहेंगे कि वो तीसरी बार चुनाव क्यों हारे? (रजत शर्मा)
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