दिल्ली, हरियाणा और पंजाब की राजनीति में एक नया तूफान आया। करीब 177 दिन बाद दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल तिहाड़ जेल से बाहर आ गए। सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दे दी। जेल से बाहर आकर केजरीवाल ने कहा कि मैं सही था इसलिए भगवान ने मेरा साथ दिया, जेल की सलाखें..मेरे हौसले को कमजोर नहीं कर पाईं, मेरा हौसला सौ गुना बढ़ गया है। सुप्रीम कोर्ट ने जमानत देते वक्त कड़ी शर्तें रखी है। शीर्ष अदालत ने केजरीवाल से कहा है कि वो शराब घोटाले से जुड़े केस के बारे में कोई बात नहीं करेंगे। मुख्यमंत्री के दफ्तर में नहीं जा सकेंगे, किसी सरकारी फाइल पर दस्तखत नहीं कर पाएंगे। अब असली लड़ाई राजनीतिक है। कोर्ट में जो लड़ाई होनी थी वो हो गई। अब केस लंबा चलेगा लेकिन केजरीवाल की रिहाई से राजनीति के मैदान में एक नई जंग की शुरुआत होगी। अब लड़ाई perception की है, narrative क्रिएट करने की है।
केजरीवाल का दावा है कि उनपर लगाए गए शराब घोटाले के आरोप झूठे हैं, केस फर्जी हैं, इसीलिए उन्हें कोर्ट से जमानत मिली। बीजेपी याद दिलाएगी कि जमानत मिलने का मतलब ये नहीं कि कोर्ट ने उन्हें क्लीन चिट दे दी है । बीजेपी के नेताओं ने कहा कि कोर्ट ने भी माना है कि CBI की गिरफ्तारी वैध थी। केजरीवाल के साथी कह रहे हैं बीजेपी ने केजरीवाल को परेशान करने के लिए ED और CBI का बेजा इस्तेमाल किया लेकिन कोर्ट ने बीजेपी के मंसूबे नाकाम कर दिए। इस पूरे केस में एक और पॉलिटिकल ट्विस्ट भी है।
सारी विपक्षी पार्टियों ने केजरीवाल के जेल से बाहर आने पर बीजेपी को कोसा, खुशी भी जाहिर की लेकिन कांग्रेस खामोश रही। वजह है हरियाणा का चुनाव। कांग्रेस को डर है कि अगर हरियाणा में केजरीवाल दम लगाएंगे तो उनका वोट काट सकते हैं और ये डर भूपेन्द्र सिंह हुड्डा के भाषणों में भी दिखाई दे रहा है जिसमें वो जनता से अपील करते नजर आ रहे हैं कि हरियाणा में मुकाबला सिर्फ बीजेपी और कांग्रेस के बीच है, इसलिए जनता किसी वोटकटवा को अपना वोट ना दे। जब केजरीवाल हरियाणा में कैंपेन के लिए जाएंगे तो उन्हें कांग्रेस को आड़े हाथों लेना पड़ेगा और ये आगे की राजनीति के लिए कांग्रेस की परेशानी बढ़ाएगा। क्योंकि दिल्ली हो या पंजाब केजरीवाल कांग्रेस को हराकर ही सत्ता में आए।(रजत शर्मा)
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