Rajat Sharma’s Blog: क्या कुश्ती पर बृजभूषण का नियंत्रण खत्म हो जाएगा?
पिछले दिनों फेडरेशन की जितनी बदनामी हुई है, उसे ध्यान में रखते हुए अब फेडरेशन की कमान ऐसे व्यक्ति के हाथ में होनी चाहिए जिसके नैतिक बल की रौशनी में पिछले अध्यक्ष पर लगे आरोपों से पैदा हुआ अंधेरा दूर हो जाए।
भारतीय कुश्ती फेडरेशन अगले महीने बृजभूषण शरण सिंह के चंगुल से आज़ाद हो जाएगा। जो भी फेडरेशन का नया अध्यक्ष बनेगा, वह न तो बृजभूषण शरण सिंह का कोई रिश्तेदार होगा, न ही उनके किसी करीबी को इस पद पर बैठने दिया जाएगा। खेल मंत्री अनुराग ठाकुर ने बुधवार को पहलवानों से कहा कि फेडरेशन से बृजभूषण शरण सिंह के नियंत्रण को खत्म कर दिया जाएगा। बुधवार को पहलवानों और खेल मंत्री के बीच 6 घंटे चली बातचीत में ये फैसला हुआ। पहलवानों को दूसरा बड़ा आश्वासन ये मिला कि एक हफ्ते के भीतर दिल्ली पुलिस बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ लगे आरोपों की जांच पूरी कर लेगी। 15 जून तक चार्जशीट फाइल कर दी जाएगी। तीसरी बड़ी बात ये तय हुई कि फेडरेशन की इंटरनल कंप्लेन कमेटी की अध्यक्ष एक महिला को बनाया जाएगा। फेडरेशन के पदाधिकारियों की नियुक्ति खिलाड़ियों की राय लेकर, उनकी सहमति से की जाएगी। चौथी बात, प्रदर्शन के दौरान खिलाड़ियों या उनके समर्थकों के खिलाफ जो केस दर्ज हुए हैं, वे सभी वापस लिए जाएंगे और पहलवानों को सुरक्षा दी जाएगी। पहलवानों ने भी सरकार को भरोसा दिया है कि वो 15 जून तक इंतजार करेंगे, 15 जून तक कोई धरना प्रदर्शन नहीं करेंगे। करीब डेढ़ महीने से चल रहे विरोध के बाद बुधवार को पहली बार सरकार ने साफ साफ बात की। चूंकि खुले मन से बात हुई, इसलिए इसका असर भी दिखा। सरकार ने पहलवानों की करीब-करीब सभी मांगें मान ली हैं। इसका खाका परसों अमित शाह के साथ हुई बैठक में तय हो गया था। पहलवानों के साथ जो बात हुई, वह बहुत पहले हो जानी चाहिए थी। जो आश्वासन उन्हें आज दिए, वो अगर कुछ दिन पहले दिए जाते तो देश को सड़क पर पहलवानों को घसीटते हुए पुलिस की तस्वीरें देखने को न मिलतीं, न ही पहलवानों को अपने मेडल गंगा में बहाने की जरूरत महसूस होती। खैर देर आए, दुरुस्त आए। अगर खेल मंत्री अपनी बात पर कायम रहे तो देश के पहलवानों को बृजभूषण शरण सिंह की मनमानी से मुक्ति मिलेगी। कुश्ती में चैंपियन बनने के सपने देखने वाली देश की बेटियों की हिम्मत बढ़ेगी। पिछले दिनों फेडरेशन की जितनी बदनामी हुई है, उसे ध्यान में रखते हुए अब फेडरेशन की कमान ऐसे व्यक्ति के हाथ में होनी चाहिए जिसके नैतिक बल की रौशनी में पिछले अध्यक्ष पर लगे आरोपों से पैदा हुआ अंधेरा दूर हो जाए। जहां तक बृजभूषण शरण सिंह का सवाल है, अगर पुलिस ने जांच निष्पक्षता से की, तो इतने सबूत हैं इतने बयान हैं कि उनका बचना मुश्किल होगा। हालांकि उनका ख्याल तो यही होगा कि एक बार चार्जशीट फाइल हो गई तो केस बरसों चलेगा, वैसे ही चलेगा जैसे उन पर दर्जनों केस पहले भी चलते रहे हैं। लेकिन मुझे लगता है कि बृजभूषण को ये केस भारी पड़ेगा क्योंकि ये पब्लिक डोमेन में है। यहां शिकायत करने वाली देश की वो पहलवान बेटियां हैं जिन्होंने देश का नाम रौशन किया है। कोई भी अदालत उनकी शिकायत को, यौन शोषण के उनके आरोपों को गंभीरता से लेगी। इस पूरे मामले का एक पक्ष ये भी है कि चूंकि सरकार से आश्वासन मिलने में देरी हुई, कई राजनीतिक दल और खाप पंचायतें इस प्रोटेस्ट में शामिल हो गईं और उन्होंने पहलवानों को समर्थन दिया, उनकी हिम्मत बढ़ाई, अब पहलवान भी समर्थन देने वालों को नज़रअंदाज़ नहीं कर पाएंगे। इसलिए आज उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि जो भी बातचीत हुई है इसकी चर्चा वो खाप पंचायत के चौधरियों से करेंगे और उनकी राय लेकर ही आगे का कोई फैसला करेंगे।
क्या किसानों का आंदोलन सियासी रूप ले चुका है?
हरियाणा में सूरजमुखी की फसल के कम दाम मिलने से नाराज़ किसान सड़कों पर हैं। कुरुक्षेत्र में मंगलवार को प्रदर्शन करने वाले किसानों पर पुलिस ने लाठीचार्ज किया, इससे किसान संगठन और भड़क गए। बुधवार को कुरक्षेत्र, रोहतक, सोनीपत समेत कई नगरों में प्रदर्शन हुआ, किसानों ने हाइवे को जाम कर दिया। किसानों की मांग है कि प्रदर्शन के दौरान गिरफ्तार उनके नेता गुरनाम सिंह चढ़ूनी को रिहा किया जाए और सूरजमुखी की फसल को एमएसपी पर खरीदा जाए। किसानों का कहना है कि जब तक एमएसपी पर सनफ्लावर की खरीद नहीं होती तब तक वो हटने वाले नहीं है। किसानों पर लाठियां चली तो राजनीति गर्म हो गई। कांग्रेस ने तुरंत इस मुद्दे को लपक लिया। जयराम रमेश, रणदीप सुरजेवाला और दीपेन्द्र हुड्ड़ा ने किसानों के समर्थन में बयान दिये। दीपेंद्र हुड्डा ने कहा कि लगता है कि सरकार दोबारा किसान आंदोलन चाहती है, सरकार किसानों से न टकराए, वरना किसान अपना हक लेना जानते हैं। हरिय़ाणा के कृषि मंत्री जे. पी. दलाल ने कहा कि प्रदर्शन करने वाले किसान नहीं, सियासी एजेंट हैं, जिनका खेती से दूर दूर तक कोई लेना देना नहीं है। कृषि मंत्री ने कहा कि जब सरकार को पता लगा कि किसानों को सूरजमुखी का भाव MSP से कम मिल रहा है तो सरकार ने प्रति क्विंटल एक हजार रूपए अपनी तरफ से किसानों को देने का फैसला किया। अगर इसके बाद भी किसानों को दिक्कत है, तो सरकार उनकी मांग के मुताबिक काम करने को तैयार है। बुधवार को ही दिल्ली में कैबिनेट बैठक के बाद खाद्या और नागरिक आपूर्ति मंत्री पीयूष गोयल ने ऐलान किया कि सरकार ने खरीफ की फसलों की MSP में 7 प्रतिशत बढोत्तरी होगी। सनफ्लावर सीड की एमएसपी को भी 6 से 7 परसेंट बढ़ाया गया है। मूंग दाल की MSP 10 परसेंट से ज्यादा बढ़ी है, मूंग दाल की खरीद अब 8558 रूपए प्रति क्विटल की दर से होगी। मूंगफली की MSP नौ परसेंट बढ़कर अब 6357 रूपए प्रति क्विंटल हो गई है। इसमें तो शक नहीं है कि केन्द्र सरकार ने पिछले कुछ सालों में फसलों की MSP में काफी इजाफा किया है। किसानों को राहत मिले, इसकी पूरी कोशिश की है लेकिन असली मुश्किल दूसरी है। सरकार MSP तो बढ़ा देती है, लेकिन आढ़तिए इस रेट पर फसल नहीं खरीदते। सरकारी खरीद केन्द्र इतने नहीं है कि किसान उन पर अपनी फसल बेच सकें, इसीलिए किसान परेशान होते हैं। इसका फायदा विरोधी दल उठाते हैं। अब राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ के बाद हरियाणा में चुनाव होने हैं। चर्चा ये भी है कि हरियाणा में चुनाव वक्त से पहले हो सकते हैं, इसलिए किसान नेता सड़कों पर आ गये हैं। कांग्रेस फिर से सक्रिय हुई है, फिर से रोड जाम, लेकिन पैटर्न वही है, नारे वही है, लोग वही हैं जो दिल्ली में हुए किसान आंदोलन के वक्त थे। अब मामला सियासी हो गया है।
विपक्षी एकता: नींव कितनी मजबूत?
पटना में 23 जून को विपक्षी दलों के नेताओं की एक बड़ी बैठक होगी, जिसमें कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे, राहुल गांधी, एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार, तृणमूल कांग्रेस अध्यक्ष ममता बनर्जी, समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव, तमिलनाडु के सीएम एम. के. स्टालिन, झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन, दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल और वाम दलों के नेता आएंगे। मेजबान नीतीश कुमार होंगे। जब जेडीयू के अध्यक्ष ललन सिंह नामों का एलान कर रहे थे, तो उनके पास बैठे राष्ट्रीय जनता दल के अध्यक्ष तेजस्वी ने कहा कि विरोधी दलों की एकता नीतीश कुमार और लालू यादव की कोशिशों का नतीजा है। इस बात में कोई शक नहीं है कि विरोधी दलों के नेता मोदी विरोध के चक्कर में एकजुट हो गए हैं। सब मोदी से इतने हैरान परेशान हैं कि सारे मतभेद भुलाकर एक मंच पर आने को तैयार हैं। मजे की बात ये है कि सबको इकट्ठा करने के काम में लीड लेने वाले नीतीश कुमार दो-दो बार बीजेपी के सपोर्ट से मुख्यमंत्री बन चुके हैं। बिहार में सब जानते हैं कि आरजेडी ने मजबूरी में नीतीश के साथ समझौता क्यों किया। पलटू चाचा दो-दो बार लालू यादव को धोखा दे चुके हैं। नीतीश कुमार कब पलट जाएं कोई नहीं कह सकता। इसलिए विरोधी दलों की एकता का जो मंच बन रहा है उसकी नींव कमजोर धरातल पर रखी गई है। इस मामले में कांग्रेस की भूमिका सबसे अहम होगी। कांग्रेस अकेली ऐसी पार्टी है जिसका अखिल भारतीय जनाधार है, जिसके नेताओं को सरकार चलाने का अच्छा खासा अनुभव है, लेकिन विरोधी दलों के नेताओं को लगता है कर्नाटक में जीत के बाद कांग्रेस के तेवर बदल गए हैं। अगर मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव कांग्रेस जीत गई, तो उसे संभाल पाना और मुश्किल हो जाएगा। कांग्रेस के बदले हुए अंदाज़ का सबसे ताजा उदाहरण अरविंद केजरीवाल के साथ उनका व्यवहार है। केजरीवाल की लाख कोशिशों के बाद भी दिल्ली सरकार को लेकर जो अध्यादेश आया है, उसके विरोध के सवाल को लेकर अभी तक कांग्रेस का समर्थन नहीं मिला है। (रजत शर्मा)
देखें: ‘आज की बात, रजत शर्मा के साथ’ 07 जून, 2023 का पूरा एपिसोड