Rajat Sharma's Blog : नरेंद्र मोदी ने कैसे बजट की परिभाषा बदल डाली
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने हमेशा देश की अर्थव्यवस्था के बारे में एक दीर्घकालीन दृष्टिकोण से काम किया। 2014 में अरुण जेटली ने मोदी सरकार का पहला बजट पेश किया था। अगर आप गौर से देखें तो तब से लेकर इस साल तक के सभी सालाना बजट आपस में जुड़े हुए हैं।
अब जबकि केंद्रीय बजट का पूरा ब्यौरा सामने आ चुका है और अर्थशास्त्री, आयकर विशेषज्ञ एवं पूंजी बाजार के विश्लेषक बजट प्रस्ताव के आंकड़ों का बारीकी से अध्ययन करने में जुटे हैं, इस बजट पर एक विहंगम दृष्टि डालने की जरूरत है। देश का मध्यम वर्ग इनकम टैक्स में दी गई राहत से खुश है, अमीर करदाता भी खुश हैं, जबकि महिलाओं, वरिष्ठ नागरिकों, युवाओं और किसानों ने नई योजनाओं का स्वागत किया है।
बजट के पूरे विवरण में न जाकर हमें निर्मला सीतारमण के इस बजट की दो बातें समझनी होंगी।
पहला : कोरोना की महामारी ने पूरी दुनिया में हर मुल्क की अर्थव्यवस्था को बर्बाद कर दिया है। आज अमेरिका और यूरोप के बड़े-बड़े मुल्क इस मार से उबर नहीं कर पाए हैं। वहां महंगाई और बेरोजगारी से लोग परेशान हैं। लोगों को नौकरियों से निकाला जा रहा है। हमारे पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान में तो लोग दो वक्त की रोटी के लिए तरस रहे हैं। लेकिन भारत कोरोना महामारी की मार से पूरी तरह उबर गया है। आज हम कोरोना से पहले वाली स्थिति में पहुंच गए हैं। पूरी दुनिया भारत को सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था मानती है।
दूसरी बात,अब ये समझने की जरूरत है कि भारत ऐसा क्यों कर पाया ? ऐसा इसलिए हुआ कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने हमेशा देश की अर्थव्यवस्था के बारे में एक दीर्घकालीन दृष्टिकोण से काम किया। 2014 में अरुण जेटली ने मोदी सरकार का पहला बजट पेश किया था। अगर आप गौर से देखें तो तब से लेकर इस साल तक के सभी सालाना बजट आपस में जुड़े हुए हैं। इससे पहले बजट एक साल के लिए होते थे। वे साल की आर्थिक और राजनीतिक जरूरतों को पूरा करने के लिए होते थे। नरेंद्र मोदी ने इस सोच को बदला। उन्होंने बजट की परिभाषा और शब्दावली को ही बदल दिया। इसलिए हमें भी मोदी के बजट को देखने का तरीका बदलना होगा।
मोदी से पहले बजट का मतलब होता था क्या सस्ता हुआ, क्या मंहगा हुआ, किस चीज पर ज्यादा एक्साइज या कस्टम ड्यूटी लगी और कौन सा प्रोडक्ट बच गया। मुझे याद है बजट के महीनों पहले औद्योगिक घरानों की तरफ से लॉबिंग होने लगती थी। हर व्यापारी सिर्फ अपने फायदे के लिए अपने उत्पाद या अपनी वस्तुओं पर ड्यूटी (शुल्क) कम करने के लिए दौड़ता था, लॉबिंग करता था। लेकिन अब ये नहीं होता।
पिछले नौ साल से बजट में ओवर ऑल डेवलपमेंट (समग्र विकास) और ग्रोथ की बात होती है। निर्मला सीतारामन ने भी लगातार पांचवें साल इसी रास्ते को फॉलो किया। देश जब 2047 में आजादी की 100 वीं वर्षगांठ मना रहा होगा (जिसे 'अमृत काल' का नाम दिया गया है ), तब हमारी अर्थव्यवस्था कैसी होगी, निर्मला सीतारामन ने इसकी बात की।
कुछ लोगों का कहना है कि यह चुनावी बजट है। मेरा कहना है कि अगर मोदी की नीतियों से लोगों को घर मिले, बिजली मिली, नल से जल मिला, शौचालय मिले, गैस मिली, दो वक्त की दाल रोटी मिली तो इसमें बुरा क्या है? अगर सरकार ऐसे बजट और ऐसी योजनाएं बनाए, जिसका सीधा लाभ लोगों तक पहुंचे तो इसे अच्छा संकेत मानना चाहिए।
बुधवार को पेश बजट में जो आंकड़े सामने आए उससे पता चला कि पिछले नौ साल में भारत की प्रति व्यक्ति आय दोगुनी हो गई है। भारत की अर्थव्यवस्था पहले दुनिया में दसवें नंबर पर थी लेकिन अब यह पांचवें नंबर पर आ गई है। यह अच्छा संकेत है और उम्मीद करनी चाहिए कि 2047 में हम दुनिया की पहली दो अर्थव्यवस्थाओं में से एक होंगे। (रजत शर्मा)
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