Rajat Sharma's Blog | किसान आंदोलन : गतिरोध जल्द खत्म हो तो बेहतर
पंजाब के किसान नेता बार-बार दावा कर रहे हैं कि प्रदर्शनकारी शान्तिपूर्ण तरीके से दिल्ली की तरफ बढ़ना चाहते हैं, सरकार किसानों पर जुल्म कर रही है, लेकिन जो तस्वीरें हैं, वे दूसरी कहानी बयां करती हैं।
संयुक्त किसान मोर्चे के नेताओं ने साफ कर दिया है कि अब किसानों का आंदोलन लम्बा चलेगा। शुक्रवार को किसान संगठनों ने आक्रोश दिवस मनाया, अगले सोमवार को हाइवे पर ट्रैक्टर मार्च होगा, 14 मार्च को दिल्ली के रामलीला मैदान में किसान महापंचायत होगी। इस दौरान किसान संगठनों में आपसी दरार भी सामने आ गई। संयुक्त किसान मोर्चे ने पंजाब के किसान संगठनों के आंदोलन को समर्थन तो किया, खनौरी बॉर्डर पर हुई हिंसा की निंदा की, हरियाणा सरकार और पुलिस के खिलाफ FIR दर्ज करने की मांग की, खनौरी में जिस नौजवान की मौत हुई है उसकी न्यायिक जांच कराने की मांग की, लेकिन साथ-साथ ये भी कह दिया कि फिलहाल पंजाब के संगठनों के आंदोलन में संयुक्त किसान मोर्चा शामिल नहीं हैं। अब आगे क्या करना है, सभी किसान नेताओं को एक साथ कैसे लाया जाए, इसके लिए कोऑर्डिनेशन कमेटी बनाई गई है, लेकिन फिलहाल पंजाब के किसान संगठनों के साथ संयुक्त किसान मोर्चे का राब्ता नहीं हैं। दूसरी तरफ आंदोलन कर रहे पंजाब के किसान संगठनों ने एलान कर दिया कि फिलहाल वे सरकार से कोई बात नहीं करेंगे क्योंकि सरकार किसानों पर जुल्म कर रही है। किसान नेताओं का इल्जाम है कि हरियाणा पुलिस ने पंजाब की सीमा में घुसकर प्रदर्शनकारियों पर गोलियां बरसाईं, जिसमें चौदह किसान घायल हुए हैं, एक लड़के की मौत हुई है। किसान संगठनों का कहना है कि पंजाब सरकार भी डबल गेम खेल रही है। एक तरफ किसानों के साथ हमदर्दी दिखाती है, दूसरी तरफ प्रदर्शनाकरियों की मदद के लिए आ रहे ट्रैक्टरों और राशन-पानी से भरे ट्रकों को रोका जा रहा है। किसान संगठनों ने कहा है कि भगवंत मान को अपना रुख साफ करना चाहिए।
गुरुवार को हमने अपने शो ‘आज की बात’ में वीडियो दिखाया, जिसमें साफ नजर आ रहा है कैसे खनौरी में प्रदर्शनकारियों ने सड़क की बजाय खेतों के रास्ते आगे बढ़ने की कोशिश की, पुलिस पर हमला किया। उनके हाथों में लाठियां थीं, कुछ लोग पुलिस पर पत्थर बरसा रहे थे। तस्वीरों में साफ दिख रहा है कि पुलिस के जवानों के पास बंदूकें नहीं हैं, वे लाठियों से प्रदर्शनकारियों का मुकाबला कर रहे थे, इस वीडियो से ये तो साफ है कि किसान नेताओं की ये बात पूरी तरह सही नहीं है कि किसान शान्तिपूर्ण तरीके से आगे बढ़ने की कोशिश कर रहे थे और उन्होंने पुलिस पर कोई हमला नहीं किया। कुछ और तस्वीरें भी मिली। खनौरी बॉर्डर के पास कई हजार क्विंटल पराली का ढेर लगा हुआ था। जब पुलिस ने किसानों को आगे बढ़ने से रोका, तो बहुत से किसान पराली के गट्ठर उठाकर आगे बढ़ने लगे। इसके पीछे बड़ी प्लानिंग थी। जब प्रदर्शनकारी पराली लेकर पुलिस के घेरे के करीब पहुंच गए, तो उन्होंने पराली में आग लगा दी, आग लगने के बाद किसानों ने पानी लगाकर बुझा दिया और फिर उसमें मिर्च पाउडर झोंक दिया। इससे अधजली पराली से भयंकर धुआं निकलने लगा। इस धुएं से पुलिसवालों की आंखों में जलन होने लगी, उनके लिए देखना मुश्किल हो गया और मिर्च मिश्रित धुएं की जलन से पुलिस वालों को भागना पड़ा। जब इस मिर्ची वाले धुएं में फंस गए तो किसानों ने पुलिसवालों पर हमला बोल दिया जिसमें 10 से 12 पुलिसवाले गंभीर रूप से जख्मी हो गए। गुरुवार को फोरेंसिक विभाग की एक टीम, खनौरी बॉर्डर पहुंची। इस टीम ने जली हुई पराली से नमूने इकट्ठे किए ताकि जांच करके ये पता लगाया जा सके कि पराली में क्या-क्या मिलाया गया था।
पंजाब के किसान नेता बार-बार दावा कर रहे हैं कि प्रदर्शनकारी शान्तिपूर्ण तरीके से दिल्ली की तरफ बढ़ना चाहते हैं, सरकार किसानों पर जुल्म कर रही है, लेकिन जो तस्वीरें हैं, वे दूसरी कहानी बयां करती हैं। मैंने कल भी कहा था कि किसान संगठनों ने जिस तरह की तैयारी की है, उससे लगता है कि वे जंग की तैयारी करके आए हैं। पुलिस अफसरों ने बार-बार कहा है कि प्रदर्शनकारी गंडासे, तलवार लेकर आए थे। उन्होंने लाठियों के आगे नुकीले हथियार लगा रखे थे। किसानों के प्रोटेस्ट में वस्तुत: अंदर क्या हो रहा है, समझना और कहना काफी मुश्किल है। रिपोर्टरों को किसान नेताओं के खेमे के अंदर जाने नहीं दिया जा रहा। कई जगह रिपोर्टरों के साथ हाथापाई भी हुई। एक तरफ प्रदर्शन करने वाले किसान हैं, दूसरी तरफ पुलिस। दोनों के अपने-अपने दावे हैं। दोनों के अपने अपने वीडियो हैं। दोनों का कहना है कि दूसरी तरफ से हमला हुआ। जैसे किसान नेताओं का आरोप है कि पुलिस ने फायरिंग की जिसमें एक नौजवान की मौत हो गई। अब नौजवान की मौत हुई ये तो सही है, लेकिन पुलिस का दावा है कि उन्होंने गोली नहीं चलाई। किसान नेता कहते हैं कि कम से कम 14 किसान घायल हैं। पुलिस का दावा है कि उसके 12 जवान अस्पताल में हैं।
एक जगह पर किसान आंदोलन में शामिल लोगों का दावा है कि जख्मी लोगों के शरीर से पैलेट्स निकले। पुलिस का कहना है कि उसकी तरफ से पैलेट गन का इस्तेमाल नहीं किया गया। इन सब दावों और जवाबी दावों का मतलब है कि पुलिस और किसान नेता दोनों पब्लिक परसेप्शन को ठीक रखना चाहते हैं, जनता की सहानुभूति अपने साथ चाहते हैं। जितने वीडियो मीडिया को भेजे जा रहे हैं, सबकी हकीकत तुरंत जांच कर पाना संभव नहीं है। इसमें वक्त लगता है। जैसे एक वीडियो आज मैंने देखा जिसमें पुलिस ट्रैक्टर्स के टायरों की हवा निकाल रही है, टंकियां खोलकर डीजल सड़क पर बहा रही है ताकि ये ट्रैक्टर आगे न बढ़ सकें। पर ये कहना मुश्किल है कि ये वीडियो कहां का है, कब का है? राजनीतिक दल भी अपने अपने हिसाब से बयान दे रहे हैं। अकाली नेता सुखबीर सिंह बादल ने भगवंत मान को निशाना बनाया, तो मान ने केंद्र सरकार को जिम्मेदार ठहराया। इस भ्रम की वजह से गतिरोध बना हुआ है और सबसे ज्यादा नुकसान उन छात्रों का हो रहा है जिनकी आजकल बोर्ड के इम्तहान हैं। गुरुवार को जब एक किसान नेता ने ये कहा कि ये तकरार और ये टकराव इलेक्शन तक चलेगा, तो चिंता हुई, क्योंकि इस आंदोलन की वजह से इन इलाकों में काम करने वाले हजारों व्यापारियों का हर रोज करोड़ों का नुकसान हो रहा है। (रजत शर्मा)
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