Rajat Sharma's Blog | आपातकाल : लोकतंत्र के काले दिन
मैंने आपातकाल के उस दौर को करीब से देखा है। उस दम घोंटने वाले वातावरण को जिया है। मेरी उम्र सिर्फ 17 साल की थी। मैं जयप्रकाश नारायण के आंदोलन का हिस्सा था।
18वीं लोकसभा का अध्यक्ष ध्वनिमत से चुने जाने के बाद ओम बिरला ने बुधवार को सदन में याद दिलाया कि कैसे 1975 में 25 जून को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और उनकी कांग्रेस सरकार ने देश में इमरजेंसी लागू कर लोगों की बुनियादी आज़ादी को खत्म कर दिया था और सारे विरोधी दलों के नेताओं को जेलों में डाल दिया था। स्पीकर ओम बिरला ने इसे भारत के इतिहास का एक काला अध्याय बताया, और सदस्यों ने दो मिनट का मौन भी रखा। कांग्रेस के सांसदों ने इस पर शोर मचाया, और सदन को गुरुवार तक के लिए स्थगित करना पड़ा। स्पीकर ओम बिरला ने प्रस्ताव में कहा, 'ये सदन 1975 में आपातकाल लगाने के निर्णय की कड़े शब्दों में निंदा करता है। इसके साथ ही हम उन सभी लोगों की संकल्पशक्ति की सराहना करते हैं, जिन्होंने आपातकाल का पुरजोर विरोध किया, अभूतपूर्व संघर्ष किया और भारत के लोकतंत्र की रक्षा का दायित्व निभाया। भारत के इतिहास में 25 जून 1975 के उन दिन को हमेशा एक साले अध्याय के रूप में जाना जाएगा। इसी दिन तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में इमरजेंसी लगाई और बाबा साहेब आंबेडकर द्वारा निर्मित संविधान पर प्रचंड प्रहार किया था। भारत की पहचान पूरी दुनिया में लोकतंत्र की जननी के तौर पर है। भारत में हमेशा लोतांत्रिक मूल्यों और वाद-संवाद का संवर्धन हुआ, हमेशा लोकतांत्रिक मूल्यों की सुरक्षा की गई, उन्हें हमेशा प्रोत्साहित किया गया। ऐसे भारत पर इंदिरा गांधी द्वारा तानाशाही थोप दी गई, भारत के लोकतांत्रिक मूल्यों को कुचला गया और अभिव्यक्ति की आजादी का गल घोंट दिया गया।'
ओम बिरला ने कहा, 'ये वो दौर था जब विपक्ष के नेताओं को जेलों में बंद कर दिया गया, पूरे देश को जेलखाना बना दिया गया था। तब की तानाशाह सरकार ने मीडिया पर अनेक पाबंदियां लगा दी थी और न्यायपालिका की स्वायत्तता पर भी अंकुश लगा दिया गया था। इमरजेंसी का वो समय हमारे देश के इतिहास में एक अन्याय काल था, एक काला कालखंड था। हम ये भी मानते हैं कि हमारी युवा पीढ़ी को लोकतंत्र के इस काले अध्याय के बारे में जरूर जानना चाहिए। इमरजेंसी ने भारत के कितने ही नागरिकों का जीवन तबाह कर दिया था, कितने ही लोगों की मृत्यु हो गई थी। इमरजेंसी के उस काले कालखंड में, कांग्रेस की तानाशाह सरकार के हाथों अपनी जान गांवाने वाले भारत के ऐसे कर्तव्यनिष्ठ और देश से प्रेम करने वाले नागरिकों की स्मृति में हम दो मिनट का मौन रखते हैं।' 18वीं लोकसभा के पहले दिन भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश को याद दिलाया था कि कैसे इंदिरा गांधी ने देश में 1975 में इमरजेंसी लगाई थी और संविधान को ध्वस्त किया था।
मैं यहां बता दूं कि इमरजेंसी की उस काली रात का मैं गवाह हूं। उस दौर के जुल्म और सितम का शिकार रहा हूं। आज से ठीक 50 साल पहले 25 जून की आधी रात को इमरजेंसी लगाई गई थी। इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री बनी रहें, इसके लिए देश के नागरिकों की आजादी छीन ली गई थी। रातों रात इंदिरा जी का विरोध करने वाले सारे नेताओं को गिरफ्तार करके जेल में डाल दिया गया था। इनमें जय प्रकाश नारायण, मोरारजी देसाई, अटल बिहारी बाजपेयी, चौधरी चरण सिंह, प्रकाश सिंह बादल जैसे तमाम नेता शामिल थे। देश भर में उस जमाने के जितने छात्र नेता थे, अरुण जेटली, लालू यादव, नीतीश कुमार, रामविलास पासवान जैसे अनगिनत छात्र नेता थे, उनके घर रात को पुलिस ने दस्तक दी, कुछ पकड़े गए, कुछ अंडरग्राउंड हो गए, जनता को कुछ खबर नहीं थी, रात को अखबारों की बिजली काट दी गई थी, उस समय सिर्फ दूरदर्शन एकमात्र टीवी चैनल था जो सिर्फ सरकार द्वारा स्वीकृत खबरें दिखाता था, अखबारों पर सेंसरशिप लगा दी गई थी, किसी को खुलकर बोलने की आजादी नहीं थी, पुलिस को देखते ही गोली मारने का अधिकार दे दिया गया था।
मैंने उस दौर को करीब से देखा है। उस दम घोंटने वाले वातावरण को जिया है। मेरी उम्र सिर्फ 17 साल की थी। मैं जयप्रकाश नारायण के आंदोलन का हिस्सा था। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़ा हुआ था। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए, बोलने और लिखने की आजादी के लिए, मैंने एक अखबार निकाला। पकड़े जाने पर पुलिस की मार खाई। थाने में टॉर्चर सहा, कई महीने जेल में रहा, लेकिन हिम्मत नहीं हारी। इसीलिए वो दिन कभी भूल नहीं सकता। वो दिन जब मीडिया पर पहरा लगा दिया गया, विरोधी दलों के सारे नेताओं की आवाज को दबा दिया गया, न्यायपालिका पर सरकार ने कब्जा कर लिया, संविधान को गिरवी रख दिया गया, लोकतंत्र की हत्या कर दी गई। 50 साल बीत चुके हैं। ज्यादातर लोगों को वो ज़माना याद नहीं है, लेकिन अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए, उस संघर्ष को उस लड़ाई को जानना और समझना जरूरी है। कभी अवसर होगा तो मैं विस्तार में बताऊंगा कि उस जमाने में ये क्यों हुआ? किसके लिए हुआ? और कैसे 19 महीने बाद देश की जनता ने लोकतंत्र को बचाने के लिए, संसद की परंपरा को खत्म करने वाली सरकार को उखाड़ फेंका। (रजत शर्मा)
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