Rajat Sharma’s Blog : सनातन विरोधी ज़हर मध्य प्रदेश, राजस्थान में कांग्रेस की संभावनाओं पर असर डाल सकता है
हैरानी की बात ये है कि कांग्रेस इस पर खामोश है. सनातन को HIV जैसा कहना, क्या नफरत फैलाने का काम नहीं है? ये राहुल गांधी की मोहब्बत की दुकान का सामान कैसे हो सकता है? ये भी नोट करने की जरूरत है कि कांग्रेस अध्यक्ष के बेटे प्रियांक सनातन धर्म पर किए गए हमलों का समर्थन कर रहे हैं.
विरोधी दलों की तरफ से एक बार फिर सनातन धर्म पर हमला हुआ. तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम. के. स्टालिन के बेटे उदयनिधि के बाद अब उनकी पार्टी के बड़े नेता ए. राजा ने कह दिया कि सनातन डेंगू मलेरिया जैसी नहीं, कोढ़ और एड्स जैसी बीमारी है. ए. राजा ने कहा कि स्टालिन ने तो सनातन के प्रति थोड़ी नरमी बरती, उसकी तुलना डेंगू, मलेरिया और कोरोना से की. राजा ने कहा कि सनातन की तुलना तो कोढ़ और एड्स से होनी चाहिए जिनके मरीजों से समाज दूरी बना लेता है. यही सनातन के साथ होना चाहिए. हैरानी की बात ये है कि उदयनिधि स्टालिन के बयान के समर्थन में पूरी DMK पार्टी खड़ी है. पार्टी के नेता सिर्फ समर्थन नहीं कर रहे हैं, उदयनिधि से दो कदम आगे जाकर बोल रहे हैं. उदयनिधि के पिता और तमिलनाडु के चीफ मिनिस्टर एम के स्टालिन ने भी बेटे के बयान का समर्थन किया. कहा, उदयनिधि ने कोई नई बात नहीं की, जो पेरियार और अंबेडकर बहुत पहले कह गए, वही उदयनिधि ने कहा है, बस शब्द अलग हैं और शब्दों को पकड़ कर बीजेपी के नेता मुद्दे को भटकाने की कोशिश कर रहे हैं जिससे जनता का ध्यान दूसरे जरूरी मुद्दों से हट जाए. मल्लिकार्जुन खरगे के बेटे प्रियांक खरगे ने फिर कहा कि ये कहना क्या गलत है कि जो धर्म इंसानों में भेदभाव करे., जो लोगों को ऊंच-नीच सिखाए, उसे खत्म हो जाना चाहिए. खरगे ने कहा कि उन्होंने किसी धर्म का नाम नहीं लिया, इसलिए जो लोग उनके खिलाफ केस दर्ज करवा रहे हैं, उसकी उन्हें कोई परवाह नहीं. ए राजा और प्रियांक खरगे के बाद बिहार में RJD के अध्यक्ष जगदानंद सिंह ने कह दिया कि टीका लगाकर घूमने वालों के कारण ही देश गुलाम हुआ था. चूंकि सनातन धर्म के बारे में कहने वाले छोटे मोटे नेता नहीं हैं, उदयनिधि स्टालिन DMK प्रमुख के बेटे हैं, प्रियंक खरगे कांग्रेस अध्यक्ष के बेटे हैं, दोनों विरोधी दलों के गठबंधन की सबसे बड़ी पार्टियां हैं, जगदानंद सिंह RJD के बिहार प्रदेश अध्यक्ष हैं, लालू यादव के करीबी हैं, इसीलिए कहा जा रहा है कि दक्षिण से लेकर उत्तर तक सनातन पर ये हमला बिना सोचे समझे कैसे हो सकता है? अगर ऐसा होता तो ये पार्टियां या फिर गठबंधन में शामिल पार्टियों के नेता इस तरह के बयानों का विरोध करते, लेकिन नहीं किया. क्यों नहीं किया?
बीजेपी नेता रविशंकर प्रसाद संविधान की मूल कॉपी लेकर आए, दिखाया कि संविधान में राम दरबार है, बजरंग बली की तस्वीर है, संविधान में भी सनातन समाहित है. रविशंकर ने कहा कि DMK के नेता भी इसी संविधान की कसम खाते हैं, लेकिन वे इस संविधान का अपमान कर रहे हैं, लेकिन कांग्रेस और दूसरे विरोधी दल इस पर ख़ामोश है. कुछ लोग ये कह सकते हैं कि DMK के नेता इस तरह की बातें पहली बार नहीं कर रहे. वे हिन्दुत्व को नहीं मानते, हिन्दू धर्म का विरोध करते हैं, इसलिए अगर वो सनातन का विरोध कर रहे है तो कौन सी बड़ी बात है? लेकिन यहां बात टाइमिंग की है. जो शब्द इस्तेमाल किए जा रहे हैं, उनकी है. इससे पहले DMK के नेताओं ने जात-पात, भेदभाव के खिलाफ बयान दिए थे, सनातन में पैदा हुई खामियों की बात की थी लेकिन कभी ये नहीं कहा था कि सनातन एक बीमारी है, सनातन का समूल नाश होना चाहिए. ये एक खतरनाक प्रवृत्ति है, इसे सहन नहीं किया जा सकता क्योंकि ये देश के करोड़ों हिन्दुओं की भावनाओं को आहत करने वाला है.
ये बयानबाजी मुंबई में हुई विरोधी दलों के गठबंधन की बैठक के बाद शुरू हुई हैं. उस बैठक में एम के स्टालिन मौजूद थे. बैठक के चार दिन के बाद उनके बेटे उदयनिधि ने सनातन के खिलाफ जंग का एलान कर दिया. एम के स्टालिन ने दो दिन तक चुप्पी साधे रखी और उसके बाद उदयनिधि के बयान को सही बता दिया. तो क्या ये सब अनायास हो रहा है? कुछ लोग ये भी कह सकते हैं कि जब पार्टी के एक नेता ने बयान दे दिया, मुख्यमंत्री ने उसका समर्थन कर दिया तो फिर बाकी नेता भी उसी लाइन पर चल रहे हैं. इसलिए ये ए राजा की मजबूरी है. तो मैं आपको बता दूं कि ए राजा ने पार्टी की एक मीटिंग में पिछले साल अलग राष्ट्र बनाने की मांग कर दी थी. जुलाई 2022 में कहा था कि प्रधानमंत्री मोदी और गृह मंत्री तमिलनाडु को स्वायत्तता नहीं दे रहे हैं. वे तमिल जनता को अलग राष्ट्र की मांग उठाने पर मजबूर कर रहे हैं. इस पर जबरदस्त प्रतिक्रिया हुई, तो अगले दिन एम के स्टालिन ने ए. राजा के बयान से किनारा कर लिया था. DMK की तरफ से कहा गया था कि ए राजा के बयान से पार्टी इत्तेफाक नहीं रखती. तो अब स्टालिन को ये बताना पड़ेगा कि क्या सनातन को कोढ़ और एड्स बताना, सनातन को जड़ से खत्म करने की बात कहना, क्या देश में अलगाव की आग लगाने जैसा नहीं है? या फिर जब ए. राजा का विरोध होगा तो स्टालिन ये कहकर बचने की कोशिश करेंगे कि ए. राजा दलित हैं, इसलिए उनका विरोध हो रहा है. कांग्रेस को भी ये बताना पड़ेगा कि अगर वो उदयनिधि के बयान से सहमत नही है तो उसने उस बयान का समर्थन करने वाले मल्लिकार्जुन खरगे के बेटे प्रियांक खरगे के बयान पर चुप्पी क्यों साध रखी है? प्रियांक के खिलाफ एक्शन क्यों नहीं लिया?
वैसे सनातन धर्म पर हो रहे इस विवाद से सबसे ज़्यादा ख़ुश वामपंथी दिख रहे हैं. कम्युनिस्ट विचारधारा में धर्म को अफ़ीम कहा जाता है, वामपंथी ख़ुद को नास्तिक कहते हैं, किसी धर्म को नहीं मानते इसलिए सनातन धर्म के ख़िलाफ़ बयान देने पर वामपंथी नेता बढ़-चढ़कर उदयनिधि का बचाव कर रहे हैं. CPI के नेता डी. राजा ने कहा कि वो उदयनिधि को अपनी बात रखने का पूरा हक़ है लेकिन बीजेपी तो लोगों को बांटने का काम कर रही है. उधर उद्धव ठाकरे की शिवसेना डिफेंसिव पर आ गई. संजय राउत ने DMK के नेताओं को चेतावनी दी. कहा, वो सनातन धर्म के बारे में अनाप-शनाप बयान न दें. कांग्रेस के प्रवक्ता पवन खेड़ा ने कहा कि किसी भी धर्म के बारे में अपमानजनक बात कहना ठीक नहीं है, कांग्रेस ऐसे बयानों से बिल्कुल सहमत नहीं है, सभी धर्मों का सम्मान होना चाहिए. सनातन धर्म के सर्वनाश की बात करने वाले DMK नेताओं की बयानबाजी सोच समझकर की गई है. ये तमिलनाडु में उनकी सियासत को सूट करती है, पर हैरानी की बात ये है कि कांग्रेस इस पर खामोश है. सनातन को HIV जैसा कहना, क्या नफरत फैलाने का काम नहीं है? ये राहुल गांधी की मोहब्बत की दुकान का सामान कैसे हो सकता है? ये भी नोट करने की जरूरत है कि कांग्रेस अध्यक्ष के बेटे प्रियांक सनातन धर्म पर किए गए हमलों का समर्थन कर रहे हैं. सवाल ये है कि क्या इसका संबंध मल्लिकार्जुन खरगे की भविष्य की राजनीति से है? ये भी सुनने में आया है कि खरगे अब मोदी विरोधी मोर्चे का चेहरा बनना चाहते हैं. विरोधी दलों के गठबंध में शामिल कई गैर-कांग्रेसी नेताओं ने भी कहा है कि अगर किसी दलित को प्रधानमंत्री के तौर पर प्रोजेक्ट किया जाए, तो इसका फायदा हो सकता है. क्या इसीलिए प्रियांक खरगे खुलकर उदयनिधि की बातों का समर्थन कर रहे हैं, क्योंकि प्रियांक कांग्रेस अध्यक्ष के बेटे हैं, इसीलिए अब तक किसी ने उनकी बात का विरोध भी नहीं किया? प्रश्न ये भी है कि क्या जो रणनीति मल्लिकार्जुन खरगे का सपोर्ट बेस बढ़ा सकती है, जो रणनीति उनको प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनने की दिशा में बढ़ा सकती है, क्या वो कमलनाथ और अशोक गहलोत के लिए आत्मघाती साबित हो सकती है? क्योंकि उत्तर भारत में सनातन के सर्वनाश की बात कहना और सुनना दोनों हीं आत्मघाती साबित हो सकते हैं. जो कमलनाथ और अशोक गहलोत दिन-रात रामकथा कर रहे हैं, हनुमान चालीसा का पाठ करवा रहे हैं, वो सनातन धर्म पर हमला करने वालों पर चुप कैसे रहेंगे?
अशोक गहलोत और कमलनाथ की रणनीति बिल्कुल साफ है. कमलनाथ ने मध्य प्रदेश में अपने कैंपेन को अबतक लोकल मुद्दों तक सीमित रखा है. वो ना राहुल गांधी की तारीफ करते हैं, ना मोदी पर सीधा हमला करते हैं. उनका फोकस सिर्फ शिवराज सिंह चौहान पर है. वो नहीं चाहते कि राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस का बोझ उनका नुकसान करे. इसी तरह राजस्थान में अशोक गहलोत भी केंद्र की राजनीति से नपी-तुली दूरी बनाए हुए हैं. वो कभी कभी मोदी पर हमला करते हैं लेकिन उनका भी ज्यादा फोकस राजस्थान के स्थानीय मुद्दे पर है. वो अपनी कल्याणकारी योजनाओं के बल पर चुनाव लड़ रहे है. दोनों जानते हैं कि राजस्थान और मध्य प्रदेश में कांग्रेस की छवि अल्पसंख्यकों का समर्थन करने वाली पार्टी की रही है. अब बदली हुई परिस्थितियों में ये दोनों नेता हिंदू भावनाओं को आहत नहीं करना चाहते, वो तो अपने आप को ज्यादा प्रतिबद्ध हिन्दू दिखाना चाहते हैं. श्रीराम की कथा और श्रीकृष्ण का गुणगान और बजरंगबली इनके कैम्पेन का ही हिस्सा है. लेकिन पिछले दो-तीन दिन से सनातन धर्म को लेकर जिस तरह का ज़हर उगला गया उससे बच पाना इनके लिए मुश्किल होगा. इसकी सिर्फ उपेक्षा करके काम नहीं चलेगा. लोग पूछेंगे कि सनातन धर्म का सर्वनाश चाहने वालों पर उनकी राय क्या है ? क्या काँग्रेस हिन्दू समाज के खिलाफ नफरत फैलाने वाली डीएमके के साथ गठबंधन जारी रखेगी? इसपर जवाब देना मुश्किल हो जाएगा और इन्हें मोदी की लोकप्रियता का सामना भी करना पड़ेगा. अशोक गहलोत को इसका एहसास भी हो गया है. (रजत शर्मा)
देखें: ‘आज की बात, रजत शर्मा के साथ’ 07 सितंबर, 2023 का पूरा एपिसोड