पाकिस्तान की जनता ने इस बार कमाल की हिम्मत दिखाई। सब जानते थे कि इस बार फौज, नवाज़ शरीफ़ को जिताना चाहती है। इमरान खान को जेल में डाल दिया, उनकी पार्टी को चुनाव लड़ने से रोक दिया, इमरान की पार्टी के चुनाव निशान को फ्रीज कर दिया। इमरान की तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी को समर्थन करने वालों को डराया गया। इतना सब होने के बावजूद वहां की जनता ने बड़ी संख्या में ऐसे उम्मीदवारों को जिताया, जो इमरान खान के समर्थक हैं, पर पार्टी और चुनाव निशान न होने की वजह से ये निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर लड़े। इन उम्मीदवारों की जीत बताती है कि अगर इमरान खान आज़ाद होते, उनकी पार्टी को खुलकर चुनाव लड़ने दिया गया होता, तो इस बार इमरान की PTI को दो-तिहाई बहुमत मिलता। लोगों ने इतनी पाबंदियों के बावजूद, इतने जुल्म के बावजूद इमरान खान के उम्मीदवारों को वोट डाला। ये वहां की जनता का मूड बताता है और ये मूड वहां की फौज के खिलाफ है।
ये चुनाव इमरान का समर्थन करने वाली जनता और इमरान का विरोध करने वाली फौज के बीच हुआ और जनता ने खुलकर अपनी ताकत का इजहार किया। ये सब चुपचाप हुआ। इतनी खामोशी से हुआ कि एस्टैबलिशमेंट (व्यवस्था) को, फौज को, इसकी कानों-कान खबर भी नहीं लगी। इसके बाद एक और कोशिश हुई, काउंटिग के दौरान आधी रात के बाद चुनाव नतीजे के ऐलान पर रोक लगा दी गई। काउंटिंग में बड़े पैमाने पर हेराफेरी हुई, तो भी निर्दलीय उम्मीदवार इतनी बड़ी तादाद में जीत कर आए। इस वक्त पाकिस्तान में पुलिस और फौज की सबसे बड़ी परेशानी है, लोगों के हाथों में कैमरे। लोग काउंटिंग में होने वाली हर गड़बड़ी का वीडियो बना रहे हैं और सोशल मीडिया पर पूरे सिस्टम को नंगा कर रहे हैं। पूरे पाकिस्तान में जनता में ज़बरदस्त नाराज़गी है, लेकिन इतिहास गवाह है कि पाकिस्तान में जनता क्या चाहती है, इसकी पाकिस्तान में न कभी किसी सरकार ने परवाह की, न फौज ने। इस बार भी फैसला फौज के हाथ में हैं। फौज तय करेगी कि वज़ीर-ए-आज़म कौन बनेगा और फौज किसके ज़रिए पाकिस्तान को चलाएगी। (रजत शर्मा)
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