Rajat Sharma's Blog | सारे बांग्लादेशी घुसपैठियों को वापस भेजो
सिर्फ दिल्ली नहीं, असम से लेकर केरल तक और बंगाल से लेकर महाराष्ट्र तक बांग्लादेशी घुसपैठियों के खिलाफ मंगलवार को जबरदस्त एक्शन हुआ, चौंकाने वाले खुलासे हुए।
दिल्ली और मुंबई में बांग्लादेशी कहां से आते हैं, कैसे इन शहरों में बस जाते हैं और वोटर बन जाते हैं, इसका खुलासा मंगलवार को हुआ। मुझे ये जानकर हैरानी हुई कि घुसपैठियों के फर्जी दस्तावेज दिल्ली में बीस-बीस रुपये में बन जाते हैं। फर्जी बर्थ सर्टिफिकेट, एड्रेस प्रूफ और फर्जी इनकम सर्टिफिकेट भी सस्ते में बन जाते हैं। फिर नकली सर्टिफिकेट्स का वेरीफिकेशन भी बिना ज्यादा खर्च के हो जाता है और उसके बाद असली आधार कार्ड, पैन कार्ड और वोटर कार्ड सब कुछ बन जाने में कोई मुश्किल नहीं होती। यानी बीस रुपये में बांग्लादेशी घुसपैठिए भारत के नागरिक बन जाते हैं, वोटर लिस्ट में उनका नाम आ जाता है, वोट डालते हैं, सरकारी योजनाओं का फायदा उठाते हैं और आपके पेट पर लात मारते हैं।
ये खुलासा तब हुआ जब दिल्ली पुलिस ने इस गिरोह के 11 सदस्यों को पकड़ा। इनमें 5 बांग्लादेशी हैं। दिल्ली में बांग्लादेशी घुसपैठियों के पकड़े जाने की कहानी बिल्कुल फिल्मी है। हुआ ये कि 20 अक्टूबर को संगम विहार में सेंटू शेख नाम के शख्स की हत्या हो गई थी। पुलिस ने जब इस मर्डर केस की जांच के दौरान उसके घर की तलाशी ली, तो 21 आधार कार्ड, 6 पैन कार्ड और 4 वोटर ID मिले। सारे दस्तावेज असली थे। जिन लोगों के वोटर कार्ड थे, पुलिस ने उनसे सख्ती से पूछताछ की तो पता लगा कि वे चारों बांग्लादेशी हैं। उनके आधार कार्ड, पैन कार्ड और वोटर ID बन चुके हैं। सेंटू ही उन्हें बांग्लादेश से भारत लाया था और पैसों के लेन-देन के झगड़े में उसकी हत्या हो गई। इसके बाद जांच ने दिशा बदली।
बांग्लादेशी नागरिकों को भारत में लाने का काम सेंटू शेख के लिए बड़ा आसान था। सबका रोल तय था। सेंटू शेख बांग्लादेश के लोगों को पश्चिम बंगाल के रास्ते भारत में घुसपैठ कराता था। ये घुसपैठिए पहले बंगाल और झारखंड में आकर ठहरते थे। वहां से धीरे-धीरे दिल्ली आते थे। दिल्ली में सेंटू शेख उन सबको एक कंप्यूटर सेंटर चलाने वाले साहिल सहगल से मिलवाता था। यहां सात रुपये में बर्थ सर्टिफिकेट और बीस रुपये में इनकम सर्टिफिकेट बन जाता था। इसी सेंटर पर बांग्लादेशी घुसपैठियों के नकली बर्थ सर्टिफिकेट, पढ़ाई लिखाई के सर्टिफिकेट और इनकम सर्टिफिकेट तैयार हो जाते थे। इसके बाद इन्हीं नकली जस्तावेज के आधार पर असली आधार और पैन कार्ड बन जाता था।
सिर्फ दिल्ली नहीं, असम से लेकर केरल तक और बंगाल से लेकर महाराष्ट्र तक बांग्लादेशी घुसपैठियों के खिलाफ मंगलवार को जबरदस्त एक्शन हुआ, चौंकाने वाले खुलासे हुए। जिस बात ने सबसे ज्यादा परेशान किया, वो ये है कि बांग्लादेश के जिस आतंकवादी को असम पुलिस ने केरल से गिरफ्तार किया, उसके तार अल कायदा से जुड़े हैं। वो अंसारुल्लाह बांग्ला टीम (ABT) का सक्रिय सदस्य था। इस संगठन पर भारत, ब्रिटेन, अमेरिका और बांग्लादेश में प्रतिबंध है लेकिन ये बांग्लादेशी घुसपैठिया भारत में अंसारुल्लाह के लिए स्लीपर सेल का नेटवर्क तैयार कर रहा था।
इसी तरह महाराष्ट्र में मंगलवार को जो बांग्लादेशी पकड़े गए, वे वोटर बन चुके थे। आश्चर्य की बात ये है कि लोकसभा, विधानसभा चुनावों में उन्होंने वोट भी डाले लेकिन किसी को कानों कान खबर नहीं हुई। मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस ने कहा कि महाराष्ट्र में बांग्लादेशी घुसपैठियों की पहचान के लिए मुहिम चलाई जाएगी, डिटेंशन सेंटर बनेंगे और बांग्लादेशियों को जल्दी से जल्दी डिपोर्ट किया जाएगा। लेकिन सवाल ये है कि क्या बांग्लादेशियों को पकड़ना इतना आसान है? अगर पकड़ भी लिया तो उनको डिपोर्ट करना कितना मुश्किल होगा?
दिल्ली में बांग्लादेशियों का सवाल सिर्फ कानूनी और तकनीकी ही नहीं है, ये पूरी तरह राजनीतिक है। बांग्लादेश से आए मुसलमान पहले कांग्रेस का वोटबैंक थे। अब वे आम आदमी पार्टी के साथ हैं। दिल्ली में जब इनकी तलाश शुरू हुई, वोटर सूची से नाम कटने शुरू हुए तो आम आदमी पार्टी के चीफ अरविंद केजरीवाल ने कई सवाल पूछे। पूछा कि जो बांग्लादेशी सीमा पार कर बंगाल, बिहार, झारखंड गोते हुए दिल्ली आए, उन्हें गृह मंत्रालय क्यों नहीं रोक पाया।
आमतौर पर देश में जब जब बांग्लादेशी घुसपैठियों की चर्चा होती है तो इसे वोट बैंक की नजर से देखा जाता है। लेकिन ये मसला बहुत बड़ा और गंभीर है। आप ये सुनकर हैरान हो जाएंगे कि बीस साल पहले 2004 में सरकार ने संसद में बताया था कि देश में बांग्लादेशी घुसपैठियों की तादाद करीब दो करोड़ है। उस वक्त सिर्फ दिल्ली में 6 लाख बांग्लादेशी घुसपैठियों के होने की बात कही गई थी।
फिर 2013 में यूपीए की सरकार ने भी इसी तरह के आंकडे दिए थे लेकिन कभी भी बांग्लादेशी घुसपैठियों की पहचान करने, उन्हें पकड़ कर वापस भेजने की गंभीर कोशिश नहीं हुई। पिछले कुछ सालों में ये मुद्दा उठा है, अब कार्रवाई हो रही है। लेकिन मुश्किल ये है कि बांग्लादेशी जितनी आसानी से हमारे देश में घुस आते हैं, उन्हें वापस निकालना उतना ही कठिन है, क्योंकि किसी को विदेशी साबित करना जांच एजेंसियों का काम है। घुसपैठियों के पास दस्तावेज तो होते नहीं जिससे उन्हें आसानी से घुसपैठिया साबित किया जाए। इस चक्कर में सालों साल केस चलता रहता है।
मुंबई में पिछले तीन साल में 686 बांग्लादेशी पकड़े गए लेकिन सिर्फ 222 को डिपोर्ट किया जा सका। बाकी केस अभी भी अदालतों में चल रहे हैं। बांग्लादेशी घुसपैठिए यहां आकर बस जाते हैं और भारत के लोगों का हक मारते हैं। इनमें से बहुत से आपराधिक गतिविधियों में शामिल होते हैं। चूंकि उनका कोई रिकॉर्ड पुलिस के पास नहीं होता, इसलिए आसानी से पकड़े नहीं जाते। कुल मिलाकर ये लोग समाज और पुलिस दोनों के लिए मुसीबत बनते हैं। इसलिए मुझे लगता है कि घुसपैठियों के मुद्दे पर सिय़ासत करने के बजाए सभी पार्टियों के नेताओं को साथ आना चाहिए। घुसपैठियों को बाहर निकालने में सरकार और जांच एजेंसियों का समर्थन करना चाहिए। (रजत शर्मा)
देखें: ‘आज की बात, रजत शर्मा के साथ’ 24 दिसंबर, 2024 का पूरा एपिसोड