Rajat Sharma’s Blog: चंद्रयान-3: चांद के करीब
इस बार कोई गड़बड़ी नहीं होगी, ISRO के वैज्ञानिकों को पूरा भरोसा है। विक्रम लैंडर की चांद पर सॉफ्ट और सेफ लैंडिंग होगी।
हमारा चन्द्रयान-3 चांद के और करीब पहुंच गया। मून मिशन पर निकले चन्द्रयान ने आखिरी चरण सफलतापूर्वक पूरा कर लिया। वैज्ञानिकों ने चन्द्रयान के प्रोपल्सन मॉड्यूल और लैंडर मॉड्यूल को अलग कर दिया। अब सिर्फ चांद पर तिंरगे के पहुंचने का इंतजार है। हालांकि इसमें छह दिन का वक्त और लगेगा। अभी लैंडर मॉड्यूल चांद से तीस किलोमीटर की दूरी पर चक्कर लगाएगा और 23 अगस्त को लैंडर चांद पर उतरेगा। ISRO के वैज्ञानिकों को पूरा भरोसा है कि इस बार कोई गड़बड़ी नहीं होगी। विक्रम लैंडर की चांद पर सॉफ्ट और सेफ लैंडिंग होगी। पिछली बार जो कमियां रह गईं थीं, उन्हें पूरी तरह से दुरूस्त कर दिया गया है। इसलिए इस बार किसी तरह की अनहोनी की गुंजाइश न के बराबर है। हालांकि कुछ लोग कह सकते हैं कि पिछली बार चन्द्रयान 2 भी इस चरण तक पूरी तरह ठीक था, इसलिए अभी से बहुत ज्यादा उत्साहित होने की जरूरत नहीं हैं। लेकिन वैज्ञानिकों का कहना है कि अभी तक चंद्रयान 3 के जो फ्लाइट पैरामीटर्स हैं, जिस तरह से कमांड पर एक्शन सौ परशेंट एक्यूरेसी के साथ हो रहा है, जो ऑर्बिटल मूवमेंट है, जो स्पीड है, उस गति पर वैज्ञानिकों का जिस तरह का नियंत्रण है, उसके बाद पूरे यकीन के साथ कहा जा सकता है कि 23 अगस्त को भारत चांद के दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचने वाला पहला देश हो जाएगा। ये बहुत बड़ी उपलब्धि होगी। अन्तरिक्ष विज्ञान में हमारे वैज्ञानिकों का लोहा पूरी दुनिया मानती है। अमेरिका, रूस, फ्रांस, ब्रिटेन, जर्मनी, इटली समेत दुनिया के पचास से ज्यादा देशों के उपग्रह भारत से अंतरिक्ष में छोड़े जाते हैं। दुनिया हमारे रॉकेट्स पर भरोसा करती है। लेकिन इसके बाद भी आजादी के 75 साल के बाद भी भारत चांद तक नहीं पहुंच पाया। लेकिन अब आजादी के अमृत महोत्सव के मौके पर चन्द्रयान 3 के जरिए ये कमी भी पूरी हो जाएगी। अमेरिका, रूस और चीन के बाद भारत दुनिया का चौथा देश होगा जिसका झंडा चांद पर पहुंचेगा। चांद के दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचने वाला भारत पहला देश होगा। इसलिए ये उपलब्धि और ज्यादा बड़ी हो जाती है। हालांकि इसरो के वैज्ञानिक ने कहा है कि अगर इस बार चन्द्रयान-3 के इंजन भी फेल जाते हैं, तो भी लैंडिंग सुनिश्चित होगी, सफल होगी। मुझे तो तो पूरा यकीन है कि हमारे वैज्ञानिकों की मेहनत जरूर कामयाब होगी और पूरे देश को इस मिशन की सफलता के लिए कामना करनी चाहिए।
पाकिस्तान में ईसाइयों पर ज़ुल्म
पाकिस्तान के पंजाब सूबे में पिछले दो दिन से ईसाइयों पर लगातार हमले हो रहे हैं। फ़ैसलाबाद में कट्टरपंथी मुसलमानों की भीड़ ने ईसाइयों की बस्ती पर हमला बोला। चर्चों और घरों में तोड़-फोड़ की और आग लगा दी। ये घटना फ़ैसलाबाद के जड़ांवाला क़स्बे में हुई। कट्टरपंथियों ने पांच गिर्जाघरों को पूरी तरह से तबाह कर दिया। ईसा मसीह की मूर्तियां खंडित कर दीं, सलीबों को तोड़ डाला। इसके बाद दंगाइयों ने चर्चों में रखी बाइबिल को जला दिया और इसके बाद चर्चों को आग लगा दी। हमलावरों ने जड़ांवाला में भी 21 चर्चों पर भी हमला बोला, तोड़-फोड़ की, इसके बाद भीड़ ने ईसाई बस्तियों का रुख़ किया। ईसाइयों के घर में घुसकर लूट-पाट की, उनके घरों को भी आग लगा दी। हालात ये हो गए कि कट्टरपंथियों की भीड़ ने ईसाइयों के क़ब्रिस्तान को भी नहीं छोड़ा। ईसाइयों पर ये जुल्म ईशनिंदा का इल्जाम लगाकर किया गया। पहले ये अफवाह फैलाई गई कि जड़ांवाला के रहने वाले ईसाइयों ने इस्लाम और कुरान की बेअदबी की है। इसके बाद मस्जिदों से एलान किया गया कि इस्लाम की बेअदबी करने वाले ईसाइयों को सबक सिखाया जाए। मस्जिदों से एलान हुआ तो हज़ारों की भीड़ इकट्ठा हो गई। इन लोगों को पंजाब सूबे के कट्टरपंथी संगठन तहरीक-ए-लब्बैक के मुल्लाओं ने भड़काया। कट्टरपंथियों का गिरोह सर तन से जुदा के नारे लगाते हुए ईसाइयों के मुहल्ले की तरफ़ बढ़ने लगा। पाकिस्तान में चर्चों पर हुए इस हमले एक सोची-समझी साज़िश है। कुछ लोकल मौलवियों ने जान-बूझकर क़ुरान की बेअदबी की अफ़वाह फैलाई, जिससे ईसाइयों को इलाके से भगाया जा सके। और फिर उनकी ज़मीनों और मकानों पर क़ब्ज़ा किया जा सके। पाकिस्तान में अक्सर ईशनिंदा क़ानून का बहाना लेकर अल्पसंख्यकों पर हमले होते रहे हैं। इसका मक़सद कभी तो निजी दुश्मनी का बदला लेना और कभी किसी की संपत्ति पर क़ब्ज़ा करना होता है। इसमें दो कट्टरपंथी संगठनों तहरीक ए लब्बैक और अहले सुन्नत का सबसे बड़ा रोल है। ये दोनों ही संगठन पाकिस्तानी फौज के क़रीबी कहे जाते हैं। पाकिस्तान में अल्पसंख्य़कों पर इस तरह के हमले कोई पहली बार नहीं हुए हैं। हिन्दुओं, सिखों, ईसाइयों पर अक्सर इस तरह जुल्म होते हैं और अक्सर इस्लाम की तौहीन को बहाना बनाया जाता है। हिंसा का मकसद होता है अल्पसंख्यकों को डराना, दबाना और उनकी जायदाद पर कब्जा करना। कुछ दिन पहले इसी तरह का आरोप लगाकर सिंध में प्राचीन हिन्दू मंदिर पर हमला किया गया था। बाद में पता चला कि हमले का मकसद मंदिर को तोड़कर वहां मॉल बनाना था।। उससे पहले इसी तरह एक पुराने गुरूद्वारे की जमीन पर कब्जे के लिए हमला किया गया था। पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों पर इस तरह के जुल्म आम बात हैं। कभी कभी जब हिंसा के वीडियो दुनिया के सामने आ जाते हैं तो पाकिस्तान सरकार दिखावे के लिए थोड़ा बहुत एक्शन लेती है। लेकिन अपराधियों को सजा कभी नहीं मिलती और न अल्पसंख्यकों को उनकी जायदाद वापस मिलती है।। इसलिए अब दुनिया के तमाम देशों को एक मिलकर पाकिस्तान की सरकार पर दबाव बनाना चाहिए, वहां रहने वाले हिन्दू, सिख और ईसाइयों की सुरक्षा की गारंटी की मांग करनी चाहिए।
चुनाव : राजस्थान, एमपी, छत्तीसगढ़
मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनावों से करीब तीन महीने पहले बीजेपी ने इन दोनों राज्यों में उम्मीदवारों के नामों की पहली लिस्ट जारी कर दी। बीजेपी ने मध्य प्रदेश की 39 सीटों और छत्तीसगढ़ की 21 सीटों के लिए उम्मीदवारों के नाम घोषित कर दिए हैं। बीजेपी ने जिन सीटों पर उम्मीदवारों के नाम का एलान किया है, वो कमजोर सीटें मानी जाती हैं। मध्य प्रदेश की जिन 39 सीटों पर बीजेपी ने उम्मीदवार तय किए हैं, उन सभी सीटों पर 2018 के चुनाव में बीजेपी हारी थी। इनमें से 38 सीटें कांग्रेस ने जीतीं थी और एक सीट BSP के खाते में गई थी। इनमें ज्यादातर सीटें अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए आरक्षित हैं। बीजेपी ने गोहद सीट से ज्योतिरादित्य सिंधिया के करीबी रणवीर जाटव को टिकट नहीं दिया। पिछले चुनाव में रणवीर जाटव ने कांग्रेस के टिकट पर ये सीट जीती थी। उन्होंने बीजेपी के लाल सिंह आर्य को हराया था लेकिन बाद में रणवीर जाटव ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल हो गए थे, लेकिन उपचुनाव हार गए थे। इसलिए इस बार बीजेपी ने गोहद सीट से रणवीर जाटव की जगह लाल सिंह आर्य को ही उम्मीदवार बनाया है। मध्य प्रदेश को लेकर बीजेपी की रणनीति साफ है। शिवराज सिंह चौहान एक बार फिर मुख्यमंत्री पद के दावेदार होंगे। एंटी इंकम्बेंसी फैक्टर का खास ध्यान रखा जाएगा। नेताओं के चहेतों से ज्यादा, जीत सकने वाले उम्मीदवारों को टिकट दिया जाएगा। एमपी में पांच सीटें ऐसी हैं जिनपर बीजेपी 1990 के बाद कभी नहीं जीती।। 33 सीटें ऐसी हैं जहां बीजेपी लगातार 2 बार चुनाव हारी है और 19 सीटें ऐसी हैं जहां पिछली बार चुनाव हारी थी। सबसे पहले इन्ही सीटों पर फोकस किया जाएगा।। इसी तरह छ्त्तीसगढ़ में भी बीजेपी ने उन सीटों पर फोकस किया है जहां पिछली बार बीजेपी का परफॉर्मेंस अच्छा नहीं था। लेकिन छत्तीसगढ़ में सबसे अहम सीट है पाटन, जहां से मुख्यमंत्री भूपेश बघेल चुनाव लड़ते हैं। बीजेपी ने इस बार पाटन से भूपेश बघेल के खिलाफ उनके ही रिश्तेदार विजय बघेल को उतारा है। विजय बघेल फिलहाल दुर्ग से MP हैं। भूपेश बघेल से जब बीजेपी की लिस्ट के बारे में पूछा गया तो उन्होने कहा कि बीजेपी की लिस्ट कुछ खास नहीं है, छत्तीसगढ़ में माहौल उनके पक्ष में हैं। इस बार कांग्रेस को पिछले चुनाव से ज्यादा सीटें मिलेंगी। छत्तीसगढ़ की 90 सीटों में पिछली बार कांग्रेस को 68 सीटों पर जीत मिली थी जबकि बीजेपी को सिर्फ 15 सीटें हासिल हुई थीं। छत्तीसगढ़ में बीजेपी चाहे जो भी दावा करे, सब जानते हैं कि यहां कांग्रेस मजबूत स्थिति में है। यहां बीजेपी के लिए चुनौती बड़ी है क्योंकि भूपेश बघेल ने अच्छी सरकार चलाई है। उनका आत्मविश्वास चरम सीमा पर है। कांग्रेस ने अपने आपसी झगड़ों पर काबू पा लिया है लेकिन बीजेपी में अभी भी आपसी झगड़े हैं । इसीलिए छत्तीसगढ़ में कांग्रेस को टक्कर देना बीजेपी के लिए टेढ़ी खीर साबित होगा। राजस्थान में भी बीजेपी उम्मीदवारों के नाम जल्द से जल्द तय कर देना चाहती है लेकिन पार्टी के नेताओं के बीच दूरियां एक बड़ी दिक्कत है। गुरुवार को राजस्थान बीजेपी की कोर कमेटी की मीटिंग हुई। इस बैठक में 3 केंद्रीय मंत्री प्रल्हाद जोशी, गजेंद्र सिंह शेखावत और कैलाश चौधरी मौजूद थे। लेकिन बसुन्धरा राजे की गैरमौजूदगी चर्चा का विषय बन गई। वसुंधरा राजे कोर कमेटी की बैठक में नहीं पहुंची। पता ये चला कि वसुंधरा राजे को मीटिंग में आमंत्रित किया गया था लेकिन वो नहीं आईं। इस मीटिंग के बाद बीजेपी ने मैनिफेस्टो कमेटी और इलेक्शन मैनेजमेंट कमेटी बनाई, पर दोनों में वसुंधरा राजे को शामिल नहीं किया गया। अर्जुन राम मेघवाल मेनिफेस्टो कमेटी के अध्यक्ष बने, इलेक्शन मैनेजमेंट कमेटी में नारायण पंचारिया को संयोजक बनाया गया है। चर्चा इस बात की है कि पार्टी बसुन्धरा को बड़ी जिम्मेदारी दे सकती है। वसुंधरा को कैंपेन कमेटी का संयोजक बनाया जा सकता है। ये बात सही है कि राजस्थान में वसुंधरा राजे बीजेपी की सबसे ताकतवर नेता हैं। ये भी सही है कि वसुंधरा राजे चुनाव लड़ने और लड़वाने की कला में माहिर हैं। वही बीजेपी को चुनाव जिता सकती हैं, बीजेपी उन्हीं को मुख्यमंत्री के उम्मीदवार के तौर पर प्रोजेक्ट करना चाहती है लेकिन राजस्थान में बीजेपी की सबसे बड़ी समस्या है, बड़े बड़े नेताओं की आपसी लड़ाई। वसुंधरा राजे एक तरफ और बाकी सारे नेता दूसरी तरफ। अगर इस आपसी टकराव पर काबू नहीं पाया गया तो बीजेपी जीती जिताई बाजी हार सकती है।
शरद पवार के सामने रास्ता कठिन है
NCP में टूट के बाद महाराष्ट्र में शरद पवार ने पहला बड़ा शक्ति प्रदर्शन किया। बीड में पवार ने रैली की, रैली में जबरदस्त भीड़ जुटी। शरद पवार चुन-चुनकर उन्ही इलाकों में सभाएं करने वाले हैं जहां के NCP विधायक अजित पवार के साथ गए हैं। बीड महाराष्ट्र सरकार में मंत्री धनंजय मुंडे का इलाका है। धनंजय अजित पवार के साथ हैं। दिलचस्प बात ये है कि शरद पवार के बीड पहुंचने पर धनंजय मुंडे के समर्थकों ने शरद पवार के स्वागत के पोस्टर लगाए, इस पोस्टर में शरद पवार के साथ अजित पवार की भी तस्वीर थी। शरद पवार ने अपने भाषण में न तो अजित पवार का नाम लिया, न धनंजय मुंडे का, लेकिन इशारों इशारों में अपनी बात कह दी। पवार ने कहा- “यहां का एक नेता पार्टी छोड़कर गया। मैंने पता करने की कोशिश की। उनसे पूछा कि क्या हुआ। अब तक तो सब ठीक था अब उसे क्या हुआ। मुझे बताया गया कि उसे किसी ने बताया कि अब पवार साहब की उम्र हो गई और अगर भविष्य के बारे में सोचना है तो दूसरा नेता चुनना होगा। मैं सिर्फ उनसे इतना पूछना चाहता हूं कि मेरी उम्र का जिक्र आप कर रहे हैं। आप लोगों ने अभी मुझे देखा ही कितना है। इसके बाद शरद पवार ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और देवेंद्र फडणवीस पर सीधा हमला किया। पवार ने कहा – “प्रधानमंत्री ने लाल किले से भाषण किया। उन्होंने कहा कि मैं दोबारा आउंगा। मैं उन्हे बताना चाहता हूं कि महाराष्ट्र के एक मुख्यमंत्री थे देवेंद्र फडणवीस। उन्होंने कहा था कि मैं दोबारा आउंगा। वो दोबारा आए लेकिन मुख्यमंत्री नहीं बने उससे नीचे के पद पर आ गए। अब पीएम भी वही कह रहे हैं। अगर वो दोबारा आएंगे तो कौन से पद पर आएंगे इस बारे में उन्हें सोचना चाहिए।” शरद पवार ने एक दिन पहले भी यही बात कह कर फडणवीस को चिढ़ाने की कोशिश की थी। बीड में भी उन्होंने वही बात दोहराई। देवेंद्र फडणवीस ने इसका जवाब दिया। शिरडी में देवेंद्र फडणवीस ने कहा – “मैने पिछली बार कहा था कि मैं फिर आउंगा उसकी दहशत आज तक कायम है, आज भी लोग दहशत में हैं, एक राष्ट्रीय नेता ने कहा कि फडणवीस की तरह मोदी बोल रहे हैं पर फडणवीस कैसे वापस आए। मैने जब कहा था कि फिर आउंगा तो लोगों ने चुनकर भेजा था पर कुछ लोगों ने बेईमानी की इसलिए फिर से सत्ता में नहीं आ सका। पर याद रखो जिन्होंने हमसे बेईमानी की उनकी पूरी पार्टी ही लेकर हम सत्ता में आए, इसलिए किसी को मेरी बातों पर शक नहीं करना चाहिए”। फ़डनवीस जब ये बात बोल रहे थे उस वक्त मंच पर मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और अजित पवार दोनों मौजूद थे। महाराष्ट्र बीजेपी अध्यक्ष चंद्रशेखर बावनकुले ने कहा कि भले ही शरद पवार अभी बीजेपी का विरोध कर रहे हैं लेकिन वो दिन दूर नहीं जब शरद पवार भी मोदी के साथ साथ खड़े दिखाई देंगे। हकीकत य़ही है कि अजित पवार समेत पार्टी के कई नेता शरद पवार का साथ छोड़ चुके हैं। जमानत पर जेल से बाहर आए NCP के नेता नवाब मलिक को भी अजीत पवार का गुट अपने पाले में लाने की कोशिश में लगा है। अजित पवार समेत कई बड़े नेता उनसे मिल चुके हैं। अब शरद पवार ने भी एकनाथ खडसे को नवाब मलिक के पास भेजा है। शरद पवार की कोशिश है कि किसी तरह पार्टी का नाम और सिंबल को बचाया जाए। ये मामला अभी चुनाव आयोग में है। चुनाव आयोग ने 17 तारीख तक दोनों खेमों से जवाब मांगा था। मेरी जानकारी ये है कि शरद पवार गुट ने चुनाव आयोग से 4 हफ्ते का वक्त मांगा है और उन कागजों की जानकारी भी मांगी है जो अजित पवार कैंप ने अपने दावे के पक्ष में चुनाव आयोग को दिए हैं। पवार के सामने दूसरी बडी चुनौती MVA की पार्टियों का भरोसा जीतने की भी है। अजित पवार के साथ गुप्त मीटिंग के बाद महाविकास अघाड़ी में शरद पवार के रूख को लेकर शक है। लोगों को लग सकता है कि शरद पवार कितने बेबस, कितने परेशान होंगे कि वो 82 साल की उम्र में गली गली घूमने के लिए मजबूर हो गए, लेकिन सच ये है कि शरद पवार फाइटर हैं, उम्र साथ नहीं देती, स्वास्थ्य ठीक नहीं है, बोलने में दिक्कत होती है, उनकी बात आसानी से समझ नहीं आती, पर उन्हें लड़ने में मज़ा आता है। जितनी बड़ी चुनौती सामने होती है, वो उतने ही जोश से लड़ते हैं। पर इस बार बदनसीबी ये है कि पवार साहब बीजेपी से लड़ने निकले थे, पर सामने अपना ही भतीजा आ गया। पहले मुकाबला चाचा भतीजे के बीच होगा और उससे भी बड़ा दुर्भाग्य ये कि जिन लोगों के लिए इस उम्र में शरद पवार मोदी से लड़ने उतरे हैं वो भी उन्हें शक की निगाह से देखते है। इसीलिए शरद पवार का रास्ता कठिन है। पर मुश्किल रास्तों पर चलना उन्हें अच्छा लगता है, उनको सक्रिय बनाए रखता है..। (रजत शर्मा)