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Rajat Sharma's Blog| जाति जनगणना : RSS ने प्रस्ताव क्यों रखा?

अखिलेश यादव हों, तेजस्वी यादव हों या राहुल गांधी, सारे नेता यही तर्क देते हैं कि जाति जनगणना इसलिए जरूरी है ताकि सभी जातियों की सामाजिक और आर्थिक स्थिति का पता लगा सके, उसके आधार पर फैसले हो सकें। लेकिन जब वही बात RSS ने कही तो ये बात आरक्षण विरोधी हो गई।

Rajat Sharma, India TV- India TV Hindi Image Source : INDIA TV इंडिया टीवी के चेयरमैन एवं एडिटर-इन-चीफ रजत शर्मा।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने पहली बार जाति जनगणना का समर्थन किया है। इस हिमायत से RSS ने विरोधी दलों को चौंका दिया। RSS ने जातियों की संख्या गिने जाने के सवाल पर खुलकर अपनी राय जाहिर की। कहा कि संघ जाति जनगणना कराने को जरूरी मानता है। केरल के पालक्काड़ में तीन दिन चली RSS की समन्वय बैठक में इस मुद्दे पर काफी विचार विमर्श हुआ और तय हुआ कि RSS जाति जनगणना का समर्थन करेगा। RSS के प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर ने कहा कि जो जातियां या वर्ग विकास के क्रम में पिछड़ गए हैं, उनके लिए योजनाएं बनाने से पहले सरकार के पास इस तरह के वर्गों की संख्या की जानकारी होना जरूरी है, इसलिए RSS जाति जनगणना के पक्ष में हैं। 

हालांकि सुनील आंबेकर ने इसमें एक शर्त भी लगाई। उन्होंने कहा कि जाति जनगणना हो, लेकिन इस पर सियासत न हो क्योंकि ये मुद्दा सामाजिक बराबरी का है, इसका इस्तेमाल समाज में दूरियां बढ़ाने के लिए नहीं किया जाना चाहिए। RSS की जिस बैठक में जाति जनगणना पर बात हुई, उसमें बीजेपी के अध्यक्ष जे.पी. नड्डा भी मौजूद थे लेकिन अब इस बात की संभावना है कि मोदी सरकार जल्दी जातिगत जनगणना के बारे में फैसला करेगी। हालांकि इसका स्वरूप क्या होगा? इसके आंकड़े सार्वजनिक किए जाएंगे या नहीं? ये सवाल अभी बने हुए हैं। 

जाति जनगणना की मांग को सियासी मुद्दा बना रहे राहुल गांधी, तेजस्वी यादव, अखिलेश यादव जैसे नेता अब क्या करेंगे? RSS के राष्ट्रीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर ने कहा है कि संघ का मानना है कि विकास की मुख्यधारा में पीछे रह गए वर्गों के लिए यदि सरकार कुछ योजनाएं बनाना चाहती है तो इसके लिए इन वर्गों की संख्या पता होना चाहिए। इसलिए जाति जनगणना जरूरी है लेकिन इसके आंकड़ों पर राजनीति नहीं होनी चाहिए। ये राजनीति का नहीं, सामाजिक मुद्दा है। इसका सियासी इस्तेमाल नहीं होना चाहिए लेकिन जाति जनगणना को सियासी मुद्दा बनने से कैसे रोका जाएगा? ये तो सुनील आंबेकर नहीं बताया। 

ये सवाल इसलिए बनता है क्योंकि जाति जनगणना पहले ही राजनीति का मुद्दा बन चुका है। लोकसभा चुनाव में विपक्ष ने इसे ज़ोर-शोर से उठाया। शुरुआत बिहार से हुई थी जहां तेजस्वी यादव ने बार बार ये इल्जाम लगाया कि जब वो सरकार में थे तो राज्य में जाति जनगणना करवा कर उन्होंने नीतीश कुमार को संख्या के आधार पर आरक्षण में वृद्धि के लिए मजबूर कर दिया लेकिन जब से नीतीश कुमार बीजेपी के साथ चले गए तब से ये मामला लटक गया। जैसे ही RSS ने जाति जनगणना के समर्थन की बात कही तो सबसे पहले तेजस्वी यादव ने कहा कि लालू यादव ने जिस तरह से पिछड़ी जातियों में जागरूकता पैदा की, उसी का नतीजा है कि अब सबको अपना स्टैंड बदलना पड़ रहा है। तेजस्वी ने कहा कि RSS और BJP आरक्षण विरोधी है, ये लोग संविधान बदलना चाहते हैं, इसलिए इनकी बात पर यकीन नहीं है क्योंकि ये लोग कहते कुछ हैं और करते कुछ और ही हैं। इनके गुप्त एजेंडा का पता लगाना मुश्किल है। अब 10 सितंबर से तेजस्वी यादव बिहार में आभार यात्रा निकालने वाले हैं जिसमें इस मुद्दे को लेकर बीजेपी और जेडीयू को घेरने का उनका प्लान है। 

RSS की राय सामने आने के बाद समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा कि जाति जनगणना से ही सबका विकास होगा लेकिन बीजेपी समाज के वंचित वर्ग को आरक्षण नहीं देना चाहती। कांग्रेस ने सुनील आंबेकर के बयान  पर प्रतिक्रिया देते हुए सोशल मीडिया पर कहा कि जात‍ि जनगणना से समाज की एकता और अखंडता को खतरा हो सकता है, ये कहना ही जाति जनगणना की मांग का खुला विरोध है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खर्गे ने पूछा कि “RSS स्पष्ट रूप से देश को बताए कि वो जातिगत जनगणना के पक्ष में है या विरोध में है? देश के संविधान के बजाय मनुस्मृति के पक्ष में होने वाले संघ परिवार को क्या दलित, आदिवासी, पिछड़े वर्ग व ग़रीब-वंचित समाज की भागीदारी की चिंता है या नहीं?” 

RSS ने वही स्टैंड लिया है, जो चिराग पासवान की पार्टी का है कि जाति जनगणना हो लेकिन इसके आंकड़े जारी न किए जाएं। आंकड़े सिर्फ सरकार के पास रहें जिससे उन जातियों के लिए योजनाएं बनाने में आसानी हो जो विकास के क्रम में पीछे रह गई हैं या जिन्हें आरक्षण का फायदा अब तक नहीं मिला है। अखिलेश यादव हों, तेजस्वी यादव हों या राहुल गांधी, सारे नेता यही तर्क देते हैं कि जाति जनगणना इसलिए जरूरी है ताकि सभी जातियों की सामाजिक और आर्थिक स्थिति का पता लगा सके, उसके आधार पर फैसले हो सकें। लेकिन जब वही बात RSS ने कही तो ये बात आरक्षण विरोधी हो गई। हकीकत ये है कि विरोधी दलों के नेताओं की रणनीति बिल्कुल साफ है। वो पहले जाति जनगणना की मांग करेंगे, फिर आंकड़े सार्वजनिक करने की मांग होगी, फिर “जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी”  का नारा लगाएंगे, आरक्षण की सीमा को बढ़ाने की मांग करेंगे, तमिलनाडु के आरक्षण का हवाला दिया जाएगा। कुल मिलाकर मंसूबा अपनी सियासत चमकाने का है। वोट बैंक का है। इसीलिए जब RSS ने कहा कि जाति जनगणना तो हो, लेकिन इस पर सियासत न हो, तो जाति जनगणना की मांग करने वाले सभी विरोधी दलों के नेताओं को आग लग गई। क्योंकि इस तरह का स्टैंड लेकर संघ ने उनकी रणनीति को बेपर्दा कर दिया। (रजत शर्मा)

देखें: ‘आज की बात, रजत शर्मा के साथ’ 02 सितंबर, 2024 का पूरा एपिसोड

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