Rajat Sharma's Blog | उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, हरियाणा में हार के कारणों पर बीजेपी में मंथन
उत्तर प्रदेश मे बीजेपी की सीटें कम क्यों हुईं, इसका विश्लेषण चुनाव विशेषज्ञ कई बार कर चुके हैं। ज्यादातर लोग मानते हैं कि बीजेपी ने टिकट बांटते समय जातिगत समीकरणों का ध्यान नहीं रखा।
उत्तर प्रदेश में खराब प्रदर्शन की वजह तलाशने के लिए बीजेपी में पिछले 48 घंटों से मंथन हो रहा है। इस मंथन में क्या सामने आया? लखनऊ बीजेपी ऑफिस में गुरुवार से अलग-अलग अंचलों के उम्मीदवारों और संगठन के पदाधिकारियों के साथ बैठकें चल रही हैं। गुरुवार को अवध के नेताओं की बैठक थी। शुक्रवार को कानपुर-बुंदेलखंड क्षेत्र के उम्मीदवारों और पदाधिकारियों से पार्टी ने रिपोर्ट ली। कानपुर-बुंदेलखंड रीजन की 10 सीटों में बीजेपी सिर्फ 4 सीट ही जीत पाई है, जबकि अवध क्षेत्र की 16 सीटों में बीजेपी को सिर्फ 7 सीटों पर ही जीत मिली है। यूपी बीजेपी के अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी और यूपी बीजेपी संगठन के दूसरे नेता इस मीटिंग में शामिल रहे। पहले उन पदाधिकारियों से बात की गई जिन्हें लोकसभा सीट की जिम्मेदारी संगठन ने दी थी। उसके बाद हारे हुए उम्मीदवारों से अकेले में बात की गई। हारे हुए उम्मीदवारों ने पार्टी के सामने खुलकर अपनी बात कही। बांदा से चुनाव हारे बीजेपी उम्मीदवार आरके सिंह पटेल ने कहा कि विपक्ष ने संविधान, आरक्षण वाला जो नैरेटिव खड़ा किया, जनता ने उस पर भरोसा कर लिया। पटेल ने इसकी वजह भी बताई। उन्होंने कहा कि केवल विपक्ष अगर ये बातें कहता तो जनता शायद इस पर विश्वास न भी करती लेकिन बीजेपी के कई स्थानीय नेताओं ने विपक्ष के लिए खुलकर कैंपेन किया,उनके एजेंडे पर मुहर लगाई, पार्टी के साथ विश्वासघात किया।
अपनों से ही धोखे का आरोप मोहनलालगंज के बीजेपी उम्मीदवार कौशल किशोर भी लगा रहे हैं। कौशल किशोर 2014 और 2019 में मोहनलालगंज से चुनाव जीतते रहे। केंद्र सरकार में मंत्री भी रहे लेकिन इस बार वह भी अपनी सीट नहीं बचा पाए। कौशल किशोर ने कहा कि विपक्ष के संविधान और आरक्षण खत्म करने वाला नैरेटिव जनता पर चिपक गया। बीजेपी लीडरशिप अपनी बात समझाने में कामयाब नहीं हो पाई। उस पर पार्टी के अंदर के ही लोगों ने उन्हें चुनाव हरवाने का काम किया। यूपी बीजेपी के उपाध्यक्ष विजय पाठक ने कहा कि पार्टी इस हार से हताश नहीं है। इसी संगठन ने बीजेपी को यूपी में 10 से 73 तक पहुंचाया था। हार की वजह जानकर, उन्हें दूर करके पार्टी फिर से उत्तर प्रदेश में मजबूत होगी। बीजेपी ने 80 नेताओं की टास्क फोर्स बनाई गई है। दो सदस्यों वाली एक टीम 2 लोकसभा सीटों पर जाकर रिपोर्ट तैयार करेगी। हार की वजह तलाशने के लिए यूपी बीजेपी का संगठन तीन तरह की रिपोर्ट तैयार कर रहा है। पहली रिपोर्ट उम्मीदवार के फीडबैक के आधार पर, दूसरी लोकसभा सीटों पर गई टीम की रिपोर्ट और तीसरी मंडल स्तर पर तैयार करवाई गई रिपोर्ट। इन तीनों रिपोर्ट के आधार पर एक फाइनल रिपोर्ट तैयार होगी जिसे केंद्रीय नेतृत्व को भेजा जाएगा। पार्टी ने साफ संकेत दिया है कि चुनाव में भितरघात करने वालों पर सख्त एक्शन लिया जाएगा। मीटिंग के बाद यूपी बीजेपी के अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी ने कहा कि यूपी की जनता ने जो फैसला दिया है उसे पार्टी स्वीकार करती है, गलतियों को सुधारा जाएगा।
बीजेपी की सहयोगी पार्टी के नेताओं को भी इस बात की शिकायत है कि बीजेपी की लोकल यूनिट्स ने ठीक से काम नहीं किया, गठबंधन धर्म का पालन नहीं किया। बलिया में दो दिन पहले ओमप्रकाश राजभर ने कहा कि बीजेपी के नेता-कार्यकर्ताओं उनके उम्मीदवार को हराने का काम किया। बीजेपी के नेता दिखावा करते रहे। उन्होंने मोदी-योगी के निर्देश को भी नकार दिया। वे सामने से तो समर्थन का दावा करते रहे लेकिन पीछे से विपक्ष के उम्मीदवार का सपोर्ट किया। हालांकि आज ओम प्रकाश राजभर अपने बयान से पलट गए। उन्होंने कहा कि जो भी खबर चलाई जा रही है वो फेक न्यूज़ है। उन्होंने ऐसा कुछ नहीं कहा, वो एनडीए के साथ हैं। उन्हें मोदी-योगी पर पूरा भरोसा है। ये सारी अफवाह विपक्ष ने फैलाई है। उत्तर प्रदेश मे बीजेपी की सीटें कम क्यों हुईं, इसका विश्लेषण चुनाव विशेषज्ञ कई बार कर चुके हैं। ज्यादातर लोग मानते हैं कि बीजेपी ने टिकट बांटते समय जातिगत समीकरणों का ध्यान नहीं रखा। अखिलेश यादव ने सिर्फ परिवार के 5 यादव लड़ाए, सिर्फ 4 मुसलमानों को टिकट दिया, और बाकी सीटों पर जाति के आधार पर वोट लेने वाले उम्मीदवारों को टिकट दिए। ये रणनीति काम कर गई। लेकिन आज जो विश्लेषण सामने आया, वह बीजेपी के अपने हारने वाले उम्मीदवारों का विश्लेषण है, इसीलिए महत्वपूर्ण है। मोटे तौर पर तीन बातें सामने आईं। एक तो यूपी में बीजेपी ने बीजेपी को हराया। पार्टी के अपने नेताओं ने अपने उम्मीदवारों को हरवाया। सबने सोचा 400 पार तो जाने वाले हैं, मोदी के नाम पर जीतने ही वाले हैं, एक दो सीटों पर हार गए तो क्या फर्क पड़ेगा। सबने अपने-अपने प्रतिद्वंदियों का हिसाब चुकता किया। नतीजा ये हुआ कि पार्टी की सीटें घटकर 33 पर आ गईं।
400 पार के नारे का एक और नुकसान ये हुआ कि इसे राहुल और अखिलेश ने आरक्षण हटाने की मंशा से जोड़ दिया। बीजेपी के खिलाफ ये नैरेटिव चलाया। ये फेक था, गलत था, लेकिन बीजेपी इसे काउंटर करने में नाकाम रही। बीजेपी के अंदर के विश्लेषण का एक और पहलू ये है कि योगी आदित्यनाथ ने कम से कम 35 उम्मीदवारों के टिकट बदलने की सिफारिश की थी, लेकिन उसे किसी ने नहीं माना। बीजेपी ने 34 से ज्यादा ऐसे उम्मीदवारों को टिकट दिया जो लगातार तीसरी बार या उससे भी ज्यादा बार चुनाव मैदान में उतरे थे। इनमे से 20 चुनाव हार गए। बीजेपी को सबसे बड़ा सेटबैक लगा अयोध्या की सीट हारने का, और पार्टी के इंटरनल डिस्कशन में ये बात बार-बार आई कि जहां भव्य राम मंदिर बना, वह सीट बीजेपी कैसे हार गई? इसका विश्लेषण कोई सीक्रेट नहीं है। ये इन तीनों बातों पर आधारित है जो मैंने अभी-अभी आपको बताई। लल्लू सिंह को बदलने की बात की गई थी। अयोध्या के सारे नेता लल्लू सिंह के खिलाफ थे, आपसी झगड़े थे। जातिगत समीकरण बीजेपी के कैंडिडेट के, पूरी तरह खिलाफ थे। और इन सबके ऊपर, आरक्षण को हटाने का नैरेटिव। सबने मिलकर अयोध्या की सीट भी हरवा दी। तो ये कह सकते हैं कि बीजेपी का जो ओवरऑल एनालिसिस है। अयोध्या की सीट उसका एक बड़ा उदाहरण है। अब बीजेपी के लिए बड़ा चैलेंज तीन साल बाद होने वाले विधानसभा चुनाव हैं। अखिलेश यादव और उनकी पार्टी उत्साहित है। समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं में जोश है, बीजेपी इसे कैसे काउंटर करेगी? इस पर योगी आदित्यनाथ को मंथन करना रहेगा>
महाराष्ट्र
महाराष्ट्र में भी बीजेपी को इस बार लोकसभा चुनाव में बड़ा झटका लगा है। 2019 में महाराष्ट्र में 23 सीटें जीतने वाली बीजेपी को इस बार चुनाव में सिर्फ 9 सीटें मिली हैं। इसलिए बीजेपी वहां पर भी हार की वजह तलाशने में जुट गई है। आज मुंबई में बीजेपी की प्रदेश कार्यकारिणी की बैठक हुई जिसमें महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री और बीजेपी के नेता देवेंद्र फडणवीस, प्रदेश अध्यक्ष चंद्रशेखर बावनकुले, केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल और अन्य नेता शामिल हुए। बावनकुले ने कहा कि महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा वोट शेयर बीजेपी को मिला है। कई जगह जीत-हार का अंतर बहुत कम वोटों का था लेकिन ये सच है कि महाराष्ट्र में बीजेपी को काफी कम सीटें मिली हैं और उसकी वजह सिर्फ एक ही है, कांग्रेस और महाविकास अघाड़ी के दूसरे दलों ने लोगों में झूठ फैलाया। कहा कि बीजेपी संविधान बदल देगी, दलितों-आदिवासियों का हक छीन लेगी, ये झूठ लोगों के दिमाग में बैठ गया और बीजेपी को इसी का नुकसान हुआ। महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव में तो बस 4 महीने का समय बचा है। बीजेपी के सामने सबसे बड़ा सवाल है कि क्या विधानसभा चुनाव शिंदे गुट और एनसीपी के साथ मिलकर लड़े या अलग लड़े? सवाल ये भी है कि अगर बीजेपी महायुति बनाकर चुनाव लड़ेगी तो सीटों का बंटवारा क्या होगा?क्योंकि खबर है कि बीजेपी ने उन 106 सीटों पर सर्वे कराना शुरु कर दिया है जहां उसे पिछले चुनावों में जीत मिली थी। अलायंस पार्टनर एकनाथ शिंदे बीजेपी के 400 पार वाले नारे पर सवाल उठा चुके हैं। एनसीपी भी केन्द्र की सरकार में शामिल नहीं हुई है। ये सब इस बात की तरफ इशारा कर रहे हैं कि आने वाले दो-तीन महीने महाराष्ट्र की सियासत में काफी एक्शन पैक्ड होंगे और कई नए चुनावी समीकरण देखने को मिल सकते हैं।
हरियाणा
महाराष्ट्र के साथ-साथ इस साल हरियाणा में भी विधानसभा चुनाव होना है। हरियाणा में भी बीजेपी को 2019 के मुकाबले इस बार आधी सीटें मिलीं। हरियाणा की 10 लोकसभा सीटों में से 5 कांग्रेस ने जीतीं। इनमें अंबाला और सिरसा की सीटें भी शामिल हैं, जो दलितों के लिए आरक्षित हैं। सिरसा की सीट 2019 में बीजेपी की सुनीता दुग्गल ने जीती थीं। सुनीता IRS ऑफ़िसर थीं। 2014 में वो नौकरी छोड़कर बीजेपी में शामिल हुईं और 2019 में चुनाव लड़कर संसद पहुंच गई थीं। हालांकि, इस बार बीजेपी ने उनको टिकट नहीं दिया। सिरसा में इस बार बीजेपी ने सुनीता दुग्गल की जगह कांग्रेस छोड़कर आए अशोक तंवर को टिकट दिया था। अशोक तंवर, कांग्रेस की कुमारी शैलजा से चुनाव हार गए। आज बीजेपी के नेताओं ने रोहतक में चुनाव के नतीजों का एनालिसिस किया। सबसे बड़ा सवाल यही था कि आखिर अंबाला और सिरसा की रिज़र्व सीटें बीजेपी के हाथ से कैसे निकल गईं। रिव्यू मीटिंग में शामिल हरियाणा सरकार के मंत्री विश्वम्भर वाल्मीकि ने माना कि BJP से उम्मीदवारों के चयन में गड़बड़ी हुई थी। इस लोकसभा चुनाव में हरियाणा की दस सीटों पर बीजेपी का वोट परसेंट करीब 10 परसेंट तक घट गया है। ये बीजेपी के लिए अच्छे संकेत नहीं है, क्योंकि चुनाव में सिर्फ चार-पांच महीने का वक्त रह गया है। 9 साल तक मुख्यमंत्री का पद संभालने वाले मनोहर लाल खट्टर केंद्र में मंत्री बन चुके हैं। हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी को कुर्सी संभाले 4 ही महीने हुए हैं। बीजेपी का गठबंधन भी जेजेपी से टूट चुका है। हरियाणा के जाट वोटर का झुकाव भी कांग्रेस की तरफ दिख रहा है। एक साथ इतने मोर्चं पर लड़ना बीजेपी के लिए कड़ी चुनौती है। (रजत शर्मा)
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