Professor Saibaba acquitted : बंबई हाईकोर्ट ने माओवादियों से कथित संबंधों से जुड़े मामले में दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) के पूर्व प्रोफेसर जी एन साईबाबा को गिरफ्तारी के करीब आठ साल बाद शुक्रवार को बरी कर दिया और उन्हें जेल से तत्काल रिहा करने का आदेश दिया। अदालत ने कहा कि गैर कानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के प्रावधानों के तहत मामले में आरोपी के खिलाफ अभियोग चलाने की मंजूरी देने का आदेश ‘‘कानून की दृष्टि से गलत एवं अवैध’’ था।
गढ़चिरौली सेशन कोर्ट ने दोषी ठहराया था
जस्टिस रोहित देव और जस्टिस अनिल पानसरे की नागपुर खंडपीठ ने साईबाबा को दोषी करार देने और आजीवन कारावास की सजा सुनाने के निचली अदालत के 2017 के आदेश को चुनौती देने वाली उनकी याचिका स्वीकार कर ली। साईबाबा शारीरिक अक्षमता के कारण व्हीलचेयर की मदद लेते हैं। उन्हें नागपुर केंद्रीय कारागार में रखा गया है। उन्हें फरवरी 2014 में गिरफ्तार किया गया था। महाराष्ट्र के गढ़चिरौली जिले की एक सत्र अदालत ने मार्च 2017 में साईबाबा, एक पत्रकार और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के एक छात्र सहित अन्य को माओवादियों से कथित संबंधों और देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने की गतिविधियों में शामिल होने का दोषी ठहराया था। उसने साईबाबा और अन्य को गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) और भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के विभिन्न प्रावधानों के तहत दोषी करार दिया था।
यूपीएपी के तहत अभियोग चलाने की दी गई थी मंजूरी
मामले में पहले गिरफ्तार किए गए पांच आरोपियों के खिलाफ 2014 में यूपीएपी के तहत अभियोग चलाने को मंजूरी दी गई थी और साईबाबा के खिलाफ इसकी अनुमति 2015 में दी गई। पीठ ने टिप्पणी की कि जब 2014 में निचली अदालत ने अभियोजन पक्ष के आरोप पत्र का संज्ञान लिया था, तो उस समय साईबाबा के खिलाफ यूएपीए के तहत अभियोजन चलाने की मंजूरी नहीं दी गई थी। हाईकोर्ट ने कहा कि यूएपीए के तहत वैध मंजूरी न होने के कारण निचली अदालत की कार्यवाही ‘‘अमान्य’’ है और इसलिए निचली अदालत का आदेश दरकिनार किए जाने और रद्द किए जाने के लायक है।
आतंकवाद राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए एक बड़ा खतरा-कोर्ट
अदालत ने माना कि आतंकवाद राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए एक बड़ा खतरा है और आतंकवाद के घृणित कृत्य सामूहिक सामाजिक आक्रोश पैदा करते हैं। आदेश में कहा गया, ‘‘सरकार को आतंकवाद के खिलाफ दृढसंकल्प होकर युद्ध छेड़ना चाहिए और अपने पास मौजूद हर वैध हथियार को इसके खिलाफ लड़ाई में इस्तेमाल करना चाहिए, लेकिन एक सभ्य लोकतांत्रिक समाज कानूनी रूप से प्रदान किए गए प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों का कथित खतरे के नाम पर त्याग नहीं कर सकता और ये उपाय कानून की उचित प्रक्रिया का अहम पहलू हैं।’’
पांच अन्य लोग भी बरी
अदालत ने साईबाबा के अलावा महेश किरीमन टिर्की, पांडु पोरा नारोते (दोनों किसान), हेम केशवदत्त मिश्रा (छात्र) और प्रशांत सांगलीकर (पत्रकार) को भी बरी कर दिया है। उन्हें आजीवन कारावास की सजा दी गई थी। इसके अलावा विजय टिर्की (श्रमिक) को भी बरी कर दिया गया। उसे 10 साल कारावास की सजा दी गई थी। नारोते की मामले में सुनवाई लंबित होने के दौरान मौत हो गई। पीठ ने आदेश दिया कि यदि याचिकाकर्ता किसी अन्य मामले में आरोपी नहीं हैं तो उन्हें जेल से तत्काल रिहा किया जाए।
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