Citizenship Amendment Act: नागरिकता संशोधन कानून शुरू से ही विवादों में रहा है। मोदी सरकार ने नागरिकता संशोधन कानून को 10 जनवरी 2020 को अमलीजामा पहनाया। इस कानून से पाकिस्तान, अफगानिस्तान और अन्य देशों में रह रहे हिंदू, सिख, बौद्ध, पारसी और यहूदी को भारतीय नागरिकता मिल सकती है। घुसपैठियों को देश से बाहर करने की दिशा में सबसे मोदी सरकार ने पहले असम में एनआरसी (NRC) यानी नैशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजंस पर काम किया।
लेकिन एनआरसी को लेकर यह विवाद हुआ कि बड़ी संख्या में ऐसे लोगों को भी नागरिकता की लिस्ट से बाहर रखा गया है जो देश के असल निवासी हैं। ऐसे लोगों के समाधान के लिए सरकार ने नागरिकता संशोधन कानून, 2019 बनाया है जिसको लेकर देशभर में विरोध देखने को मिला था।
क्या है नागरिकता संशोधन कानून (CAA) 2019?
नागरिकता संशोधन कानून 2019 में अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और क्रिस्चन धर्मों के प्रवासियों के लिए नागरिकता के नियम को आसान बनाया कर दिया गया है। पहले किसी व्यक्ति को भारत की नागरिकता हासिल करने के लिए कम से कम पिछले 11 साल तक यहां रहना अनिवार्य था। लेकिन CAA के तहत इस नियम को बदलकर नागरिकता हासिल करने की अवधि को एक साल से लेकर 6 साल किया गया है।
CAA से किस धर्म के लोगों को फायदा?
इस कानून के तहत अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान में छह धर्मों के बीते एक से छह सालों में भारत आकर बसे लोगों को नागरिकता मिल सकेगी। इसे ऐसे भी समझा जा सकता है कि भारत के तीन मुस्लिम बहुसंख्यक पड़ोसी देशों से आए गैर मुस्लिम प्रवासियों (हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और क्रिस्चन) को नागरिकता देने के नियम को आसान बनाया गया है।
मोदी सरकार ने कैसे कराया CAA पास
इस विधेयक को गृह मंत्री ने 19 जुलाई, 2016 को लोकसभा में पेश किया था और 12 अगस्त, 2016 को इसे संयुक्त संसदीय कमिटी के पास भेजा गया था। कमिटी ने 7 जनवरी, 2019 को अपनी रिपोर्ट सौंपी। उसके बाद अगले दिन यानी 8 जनवरी, 2019 को विधेयक को लोकसभा में पास किया गया। लेकिन उस समय राज्य सभा में यह विधेयक पेश नहीं हो पाया था। इस विधेयक को शीतकालीन सत्र में सरकार ने फिर से नए सिरे पेश किया गया। सीएए को लोकसभा ने 9 दिसंबर, 2019 को और राज्यसभा ने 11 दिसंबर को पारित किया था और 12 दिसंबर को राष्ट्रपति ने इसे मंजूरी दी थी।
कानून पर मोदी सरकार का रुख
नागरिकता संशोधन कानून को लेकर मोदी सरकार ने स्पष्ट किया कि पाकिस्तान, अफ़गानिस्तान और बांग्लादेश इस्लामिक गणराज्य हैं जहां मुसलमान बहुसंख्यक हैं इसलिये उन्हें उत्पीड़ित अल्पसंख्यक नहीं माना जा सकता है। सरकार के अनुसार, इस विधेयक का उद्देश्य किसी की नागरिकता लेने के बजाय उन्हें सहायता देना है।
सरकार का कहना है कि यह विधेयक उन सभी लोगों के लिये एक वरदान के रूप में है, जो विभाजन के शिकार हुए हैं और अब ये तीन देश लोकतांत्रिक इस्लामी गणराज्यों में परिवर्तित हो गए हैं। सरकार ने इस विधेयक को लाने के कारणों के रूप में पाकिस्तान और बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों के अधिकारों एवं सम्मान की रक्षा करने में धार्मिक विभाजन तथा बाद में नेहरू-लियाकत संधि की 1950 की विफलता पर भारत के विभाजन का हवाला दिया है।
क्यों हुआ CAA का व्यापक विरोध?
विपक्षी पार्टियों का कहना है कि यह विधेयक मुसलमानों के खिलाफ है और भारतीय संविधान के अनुच्छेद-14 (समानता का अधिकार) का उल्लंघन करता है। इस कानून का विरोध यह कहकर किया जा रहा है कि एक धर्मनिरपेक्ष देश किसी के साथ धर्म के आधार पर भेदभाव कैसे कर सकता है? भारत के पूर्वोत्तर राज्यों असम, मेघालय, मणिपुर, मिज़ोरम, त्रिपुरा, नगालैंड और अरुणाचल प्रदेश में भी इस कानून का ज़ोर-शोर से विरोध देखने को मिला था क्योंकि ये राज्य बांग्लादेश की सीमा के बेहद क़रीब हैं।
विपक्ष ने ये भी तर्क दिया कि भारत में कई अन्य शरणार्थी हैं जिनमें श्रीलंका, तमिल और म्यांमार से आए हिंदू रोहिंग्या शामिल हैं लेकिन उन्हें कानून के तहत शामिल नहीं किया गया है। अवैध प्रवासियों और सताए गए लोगों के बीच अंतर करना सरकार के लिये मुश्किल होगा।
साथ ही सीएए उन धार्मिक उत्पीड़न की घटनाओं पर प्रकाश डालता है जो इन तीन देशों में हुए हैं जो उन देशों के साथ हमारे द्विपक्षीय संबंधों पर बुरा असर डाल सकता है। विपक्ष का कहना है कि यह कानून किसी भी कानून का उल्लंघन करने पर OCI पंजीकरण को रद्द करने की अनुमति देता है।
Latest India News