Explained: क्या है PFI जिस पर सरकार ने लगाया बैन? SIMI और अल कायदा से जुड़ा रिश्ता! लिस्ट में देखिए सभी प्रतिबंधित संगठनों के नाम
PFI Banned in India: अधिसूचना में कहा गया है कि संगठन देश के खिलाफ असंतोष उत्पन्न करने के इरादे से ‘राष्ट्र विरोधी भावनाओं को बढ़ावा देने और समाज के एक विशेष वर्ग को कट्टरपंथी बनाने’ की लगातार कोशिश कर रहा है।
Highlights
- भारत सरकार ने पीएफआई पर लगाया बैन
- आतंकी गतिविधियों में लिप्त रहने का आरोप
- मंगलवार रात एक अधिसूचना जारी की गई
PFI Banned in India: देश में इस वक्त 'पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया' यानी पीएफआई खबरों में बना हुआ है। सरकार ने कथित रूप से आतंकी गतिविधियों में लिप्त रहने के कारण इस पर प्रतिबंध लगा दिया है। केंद्रीय गृह मंत्रालय की ओर से मंगलवार रात जारी एक अधिसूचना के अनुसार, केंद्र सरकार का मानना है कि पीएफआई और उसके सहयोगी ऐसे विनाशकारी कृत्यों में शामिल रहे हैं, जिससे जन व्यवस्था प्रभावित हुई है, देश के संवैधानिक ढांचे को कमजोर किया जा रहा है और आतंक-आधारित शासन को प्रोत्साहित किया जा रहा है। साथ ही उसे लागू करने की कोशिश की जा रही है।
अधिसूचना में कहा गया है कि संगठन देश के खिलाफ असंतोष उत्पन्न करने के इरादे से ‘राष्ट्र विरोधी भावनाओं को बढ़ावा देने और समाज के एक विशेष वर्ग को कट्टरपंथी बनाने’ की लगातार कोशिश कर रहा है। गृह मंत्रालय ने कहा, ‘उक्त कारणों के चलते केंद्र सरकार का दृढ़ता से यह मानना है कि पीएफआई की गतिविधियों को देखते हुए उसे और उसके सहयोगियों या मोर्चों को तत्काल प्रभाव से गैरकानूनी संगठन घोषित करना जरूरी है।’ अब सबसे बड़ा सवाल ये है कि इसकी शुरुआत आखिर कहां से हुई? इसके साथ ही हम इस सवाल का जवाब भी तलाशने की कोशिश करेंगे कि इसका प्रतिबंधित संगठन 'स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया' यानी सिमी से क्या रिश्ता है।
पीएफआई क्या है?
पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया को पीएफआई भी कहा जाता है, जिसका गठन 22 नवंबर, 2006 को केरल के कोझीकोड में हुआ था। तभी से ये संगठन विवादों में घिरा रहा है। देश में जब नागरिकता संशोधन कानून यानी सीएए के खिलाफ विरोध प्रदर्शन हिंसक हो गए थे, तब उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने गृह मंत्रालय से इसपर प्रतिबंध लगाने की मांग की थी। इसे पीएफआई ने तानाशाही वाला कदम बताया था।
कैसे हुआ पीएफआई का गठन?
पीएफआई का गठन तीन संगठनों- 'कर्नाटक फोरम फॉर डिग्निटी' यानी केडीएफ, तमिलनाडु के मनीथा नीथी पसाराई और नेशनल डेवलपमेंट फ्रंट को मिलाकर किया गया था। इसकी शाखाएं भारत के विभिन्न प्रांतों में मौजूद हैं। हालांकि बाद में कुछ और संगठन भी पीएफआई में ही शामिल हो गए। जिसमें गोवा का 'सिटिजंस फोरम', राजस्थान की 'कम्युनिटी सोशल एंड एजुकेशनल सोसाइटी', पश्चिम बंगाल की 'नागरिक अधिकार सुरक्षा समिति', मणिपुर का 'लिलोंग सोशल फोरम' और आंध्र प्रदेश की 'एसोसिएशन ऑफ सोशल जस्टिस' शामिल हैं।
चार सालों के भीतर ही आरोपों से घिरी
पीएफआई पर उसके गठन के महज चार साल के भीतर ही गंभीर आरोप लगने लगे। सबसे पहला आरोप 4 जुलाई, 2010 की घटना को लेकर लगा। जो केरल के तोडुपुजा में हुई थी। यहां एक कॉलेज प्रोफेसर टीजे थॉमस को उनके घर से बाहर रोककर उनके हाथ की कलाई काटी गई थी। दरअसल उन्होंने कथित तौर पर कॉलेज के प्रश्न पत्र पर कुछ आपत्तिजनक लिख दिया था, जिसे लेकर उनपर आपराधिक मामला दर्ज किया गया। जिसके बाद उनकी कलाई काटी गई थी। इस मामले में जो लोग गिरफ्तार हुए थे, उन्हें पीएफआई का सदस्य बताया गया। बाद में उनपर आरोपों से इनकार कर इसे साजिश बताया गया।
ठीक इसी समय केरल की पुलिस ने पीएफआई के कई ठिकानों पर छापेमारी की। जिसमें उसे आपत्तिजनक दस्तावेज और हथियार मिलने का दावा किया गया। इसमें सबका ध्यान जिस बात पर गया, वो था सिमी से पीएफआई के जुड़े होने का दावा। कहानी यहीं खत्म नहीं होती। बल्कि केरल पुलिस ने ये भी दावा किया था कि पीएफआई के कार्यकर्ताओं पर छापेमारी के दौरान चरमपंथी संगठन 'अल कायदा' की प्रचार सामग्री भी बरामद की गई थी। इसके बाद साल 2018 में झारखंड सरकार ने इस संगठन पर प्रतिबंध लगाया, लेकिन उस आदेश को हाई कोर्ट ने खारिज कर दिया था। हालांकि यहां की सरकार ने बीते साल फरवरी महीने में एक बार फिर पीएफआई पर प्रतिबंध लगा दिया है।
इसके पीछे का कारण बताते हुए झारखंड सरकार ने अपने बयान में कहा कि पीएफआई का रिश्ता कई चरमपंथी संगठनों से है और इसके कार्यकर्ताओं के खिलाफ अलग-अलग पुलिस स्टेशनों में मामले दर्ज हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, सरकारी सूत्रों से ये जानकारी भी सामने आई कि साल 2012 में पूर्वोत्तर राज्य असम में दंगों के बाद जो नफरत भरे मैसेज सामने आए, उनमें भी पीएफआई का ही हाथ था। यहां तक कि हैरानी की बात ये है कि 13 अगस्त, 2012 को 60 करोड़ नफरत भरे एसएमएस भेजे गए थे। पीएफआई ने इस आरोप को खारिज कर दिया था। उसने कहा कि वह 'सोशलिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया' यानी एसडीपीआई से जुड़ी हुई है। इसलिए 2006 में विलय के बाद उसने इसी के संस्थापक अध्यक्ष ई अबू बकर को पीएफआई का चेयरमैन बनाया था।
यूपी सरकार ने सीएए के साथ ही एनआरसी के खिलाफ राज्य में हुई हिंसा के लिए पीएफआई पर शक जताया था और केंद्र सरकार से इसपर प्रतिबंध लगाने की सिफारिश की थी। इसपर फिर केंद्र सरकार की तरफ से भी कहा गया कि उत्तर प्रदेश और दिल्ली में हुई हिंसा में भी इसी संगठन का हाथ हो सकता है। हालांकि पीएफआई ने इसके बाद कहा कि पूरे देश में सीएए के खिलाफ विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं और केवल बीजेपी शासित राज्यों में ही प्रदर्शनों से निपटने के लिए 'दमनकारी तरीके' इस्तेमाल हो रहे हैं। संगठन ने अपनी गतिविधियों को लोकतांत्रिक बताते हुए इसे योगी सरकार की पुलिस का एक और तानाशाही वाला कदम बताया था।
सिमी से क्या है रिश्ता?
पीएफआई का नाम कई बार प्रतिबंधित कट्टरपंथी इस्लामी संगठन सिमी से जुड़ चुका है। इनके रिश्ते की बात तभी से कही जा रही है, जब से पीएफआई का गठन हुआ है। कहा तो ये भी जाता है कि पीएफआई सिमी का दूसरा रूप है। भारत सरकार ने जिन संगठनों को आतंकवादी घोषित कर प्रतिबंधित किया है, उनमें सिमी भी शामिल है। जिसपर साल 2001 में प्रतिबंध लगाया गया था। सिमी का बात करें, तो उसके रिश्ते दूसरे इस्लामी चरमपंथी संगठन 'इंडियन मुजाहिदीन' से होने की बातें कही जाती हैं। भारत सरकार उसपर भी प्रतिबंध लगा चुकी है।
पीएफआई और सिमी के बीच रिश्ते का एक बड़ा कारण ये भी है कि सिमी के कई पूर्व सदस्य आज के वक्त में पीएफआई में सक्रिय हैं, जिनमें प्रोफेसर कोया जैसे लोग भी शामिल हैं। हालांकि उन्होंने कहा था कि उनका और सिमी का रिश्ता 1981 में ही खत्म हो गया था। उन्होंने 1993 में एनडीएफ की स्थापना की थी। एनडीएफ की बात करें, तो ये उन तीन संगठनों में से एक है, जिसने शुरुआती समय में मिलकर पीएफआई को तैयार किया था। बहुत से लोगों का कहना है कि पीएफआई का गठन इसलिए हुआ क्योंकि सरकार ने सिमी पर प्रतिबंध लगा दिया था। और इसी वजह से सिमी के पूर्व सदस्यों ने एक नए नाम से नई संस्था शुरू कर दी। पीएफआई को सिमी पर प्रतिबंध लगने के छह साल बाद 2007 में गठित किया गया था।
पीएफआई के अपराधों का काला चिट्ठा
पीएफआई कट्टरपंथी इस्लामिक संगठन है, जो हिंसा, अपराध, गैर कानूनी गतिविधियों और आतंकवाद से जुड़े तमाम मामलों में शामिल रही है। इसकी देश के 17 से अधिक राज्यों में फ्रंट ऑर्गेनाइजेशन हैं। पीएफआई ने अपने कैडरों को ऐसे कार्यों को करने के लिए प्रोत्साहित किया है, जो विभिन्न धार्मिक समूहों और देश के धर्मनिरपेक्ष ढांचे की शांति और एकता को बिगाड़ने का काम करते हैं। इसी वजह इसे गैर कानूनी गतिविधि निवारण अधिनियम के तहत प्रतिबंधित किया गया है। पीएफआई और उनकी फ्रंट ऑर्गेनाइजेशनों के खिलाफ एनआईए और पुलिस ने 1300 से अधिक मामले दर्ज किए हैं। इसका अंतरराष्ट्रीय आतंकी संगठनों से भी नाम जुड़ा है। खासतौर पर केरल में। यहां पीएफआई के कार्यकर्ता इस्लामिक स्टेट यानी आईएसआईएस में शामिल हुए हैं और उन्होंने सीरिया, इराक और अफगानिस्तान में आतंकी गतिविधियों में शिरकत की है। इनमें से कई मारे भी गए हैं।
वहीं एनआईए और राज्य की पुलिस ने आईएसआईएस से जुड़े होने के कारण पीएफआई के कई सदस्यों को गिरफ्तार किया है। पीएफआई का नाम जमात-उल-मुजाहिद्दीन बांग्लादेश/जेएमबी से भी जुड़ा है। इससे जुड़े लोग भी गिरफ्तार किए गए हैं। पीएफआई के लोगों ने 15 नवंबर 2021 में केरल के आरएसएस कार्यकर्ता साजिथ की हत्या कर दी थी। इन्होंने 2019 में तमिलनाडु में इनकी गतिविधियों पर सवाल उठाने वाले हिंदू नेता वी रामालिंगम की हत्या की थी। संगठन पर हिंदू नेताओं की हत्या के और भी कई आरोप हैं, जिनमें नंदू (केरल, 2021), अभिमन्यु (केरल, 2018), बिबिन (केरल, 2017), शरथ (कर्नाटक, 2017), आर रुद्रेश (कर्नाटक, 2016), प्रवीण पुजारी (कर्नाटक, 2016) और शशि कुमार (तमिलनाडु, 2016) शामिल हैं। पीएफआई के कार्यकर्ताओं ने 2010 में कथित ईशनिंदा के लिए टीजे जोसेफ (एक प्रोफेसर) का हाथ भी बेरहमी से काट दिया था।
अल कायदा और आईएसआईएस के वीडियो
इन मामलों में आरोपी बने पीएफआई के कैडरों से अल कायदा और आईएसआईएस के ट्रेनिंग वीडियो भी मिले थे, जिनमें बेरहमी से हत्या किए जाने के दृश्य थे। इस तरह की गतिविधियों ने जनता के अलावा अन्य धार्मिक समुदायों के सदस्यों में भय और आतंक की भावना पैदा की थी। केरल में जून 2021 में कोल्लम जिले के पदम वन क्षेत्र से विस्फोटक और जिहादी कंटेंट बरामद किया गया था। वन क्षेत्र का उपयोग पीएफआई द्वारा सैन्य प्रशिक्षण स्थल के रूप में किया जा रहा था। केरल पुलिस ने कन्नूर जिले के नारथ में अप्रैल, 2013 में हथियार प्रशिक्षण स्थल से हथियार और विस्फोटक सामग्री बरामद की थी। एनआईए द्वारा मामले की जांच की गई और 2016 में 41 पीएफआई कैडरों को अदालत में दोषी ठहराया गया। पीएफआई ने गुप्त रूप से ट्रनिंग एक्सरसाइज और मिलिट्री ड्रिल जैसे अभ्यास आयोजित किए, जहां प्रतिभागियों को कुछ धार्मिक समूहों के खिलाफ बल प्रयोग करने के लिए प्रशिक्षित किया गया था, जिन्हें संगठन इस्लाम का दुश्मन बताता है।
पीएफआई ने वैसे तो हमेशा एक सामाजिक संगठन होने का दावा किया है, लेकिन वह कर्नाटक के बेल्लारे शहर में प्रवीण नेट्टारू (एक हिंदू कार्यकर्ता) की 26 जुलाई को हुई हत्या में शामिल पाई गई थी। प्रवीण नेट्टारू की बाइक सवार हमलावरों ने चाकू मारकर हत्या कर दी है। अब तक गिरफ्तार किए गए दस आरोपित सभी पीएफआई के सदस्य हैं। स्थानीय पुलिस की जांच में पीएफआई कैडरों द्वारा की गई निर्मम हत्या की चौंकाने वाली कहानी सामने आई थी। हत्या की योजना पीएफआई और सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (एसडीपीआई, पीएफआई का राजनीतिक मोर्चा) के सदस्यों ने बनाई थी।
पीएफआई को देश-विदेश से संदिग्ध रूप से फंड मिल रहा था। पीएफआई और उसके सहयोगियों ने बड़ी संख्या में बैंक खाते खोले और भारत और विदेशों में स्थित अपने समर्थकों से पैसा प्राप्त किया। पीएफआई के 100 से अधिक बैंक अकाउंट खाताधारकों के वित्तीय प्रोफाइल से मेल नहीं खाए थे, जो एजेंसियों के संज्ञान में आए हैं। परिणामस्वरूप, आईटी अधिनियम की धारा 12ए और 12एए के तहत पीएफआई का रजिस्ट्रेशन स्टेटस वापस ले लिया गया है।
तेलंगाना में एक गुप्त फिजिकल ट्रेनिंग सेंटर ने पीएफआई की हिंसक प्रकृति का खुलासा किया है। एक पीएफआई के फिजिकल एजुकेशन इन्सट्रक्टर अब्दुल खादर ने निजामाबाद में अपने मार्शल आर्ट प्रशिक्षण केंद्र में 200 से अधिक पीएफआई कैडरों को प्रशिक्षित किया था। पुलिस ने 27 लोगों के खिलाफ आईपीसी और यूएपीए की विभिन्न धाराओं के तहत मामला (क्र.सं. 141/2022 दिनांक 4 जुलाई निजामाबाद VI टाउन पुलिस स्टेशन में) दर्ज किया। आरोपियों से पूछताछ में पता चला कि पीएफआई ने मुस्लिम युवाओं की पहचान की, खासकर गरीब या मध्यम वर्ग से ताल्लुक रखने वालों की, जिन्हें बाद में हिंदुत्व विरोधी विचारधारा के साथ जोड़ा गया और प्रशिक्षण दिया गया। प्रशिक्षण में तलवारों और नन-चक्स का इस्तेमाल शामिल था।
- बब्बर खालसा इंटरनेशनल
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- खालिस्तान जिंदाबाद फोर्स
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