Hemant Soren: झारखंड में एक तरफ ईडी की छापेमारी और दुसरी तरफ मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की परेशानी इन देखने को मिल रही है। झारखंड के मुख्यमंत्री की पद कभी भी हेमंत सोरेन की छिन सकती है। 'लाभ के पद' के मामले में चुनाव आयोग (ईसीआई) द्वारा मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को बर्खास्त किए जाने की खबरें सुर्खियों में है। चुनाव आयोग ने कथित तौर पर सोरेन के खिलाफ आरोपों पर राज्यपाल रमेश बैस को अपनी सिफारिशें भेजी हैं। सोरेन ने कथित तौर पर 2021 में खनन मंत्री का पोर्टफोलियो रखते हुए खुद को एक खनन पट्टा आवंटित किया था। यानी मुख्यमंत्री रहते हुए हेमंत सोरने मुख्यमंत्री पद के साथ किसी अन्य जगहों से राशि की कमाई की थी। जो कि बिल्कुल गलत है। आज हम जानेंगे कि आखिर Office of Profit यानी लाभ का पद क्या है।
'लाभ का पद' क्या है?
लाभ पद का मतलब आसान भाषा में समझे कि जब कोई व्यक्ति सरकार की तरफ से सुविधा या लाभ उठा रहा है तो ऐसे में सदन का सदस्य नहीं बन सकता है। यानी एक व्यक्ति दो जगह से लाभ नहीं ले सकता है। व्यक्ति को उस सरकारी लाभ से रिश्ता तोड़ना पड़ेगा तब जाकर वो सदन के लिए योग्य घोषित होगा। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 102(1) और 191(1) के तहत एक सांसद या विधायक को केंद्र या राज्य सरकार के तहत लाभ का कोई पद धारण नहीं कर सकता है। अनुच्छेद 102(1) के मुताबिक, "किसी व्यक्ति को केवल इस कारण से भारत सरकार या किसी राज्य की सरकार के अधीन लाभ का पद धारण करने वाला नहीं माना जाएगा कि वह एक मंत्री या सदस्य है।" इसे जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 में भी प्रतिबंधित किया गया है।
कांग्रेस के कार्यकाल में आई थी ये कानून
जब अटल बिहारी सरकार चली गई और 2005 में यूपीए-1 की सरकार बनी तो उसी दौरान 16 मई 2006 को इस बिल को लोकसभा में पेश किया गया था। इस बिल में राष्ट्रीय सलाहकार परिषद समेत 45 पदों को लाभ के पद में शामिल नहीं किया गया था।
सोनिया गांधी के लिए बना था मुसीबत
कानून बनने के साथ ही सोनिया गांधी के लिए ये मुसीबत बनकर सामने आया। उस समय सोनिया गांधी रायबरेली से सांसद थी। इसके साथ ही साथ वो पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सरकार में राष्ट्रीय सलाहकार परिषद की अध्यक्ष भी थी, इसी कारण से उन्हें लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा देना पड़ा था। वही लाभ पद का शिकार राज्यसभा जया बच्चन भी हो चुकी है। आपको बता दें कि उस समय उत्तर प्रदेश विकास निगम की अध्यक्ष भी थी। जिसके कारण उनकी सदस्यता चली गई थी।
अंग्रेजों से लिए गए कानून
अधिनियम में यह है कि यदि विधायक लाभ का पद धारण करते हैं, तो वे पक्षपाती हो सकते हैं और अपने संवैधानिक कर्तव्यों का निष्पक्ष रूप से निर्वहन नहीं कर सकते हैं। निर्वाचित प्रतिनिधि के कर्तव्यों और हितों के बीच कोई टकराव नहीं होना चाहिए। विधायिका और कार्यपालिका के बीच शक्तियों के पृथक्करण का संविधान का मूल सिद्धांत यहां लागू होता है। इस कानून की उत्पत्ति अंग्रेजों से हुई है, हम कह सकते हैं। इस कानून का प्रयोग 1701 में भी देखा गया था। जब कोई भी व्यक्ति जिसके पास राजा के अधीन कोई पद या लाभ का स्थान है, या क्राउन से पेंशन प्राप्त करता है, हाउस ऑफ कॉमन्स के सदस्य के रूप में सेवा करने में सक्षम नहीं होगा। पूर्व में भी नियमों के उल्लंघन के कई मामले सामने आ चुके हैं। 2018 में, दिल्ली विधानसभा के 20 विधायकों को चुनाव आयोग ने लाभ का पद धारण करने के लिए अयोग्य घोषित कर दिया था। राज्यपाल ने अभी तक चुनाव आयोग की सिफारिशों को सार्वजनिक नहीं किया है, लेकिन उम्मीद है कि जल्द ही इसे किया जाएगा।
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