प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज नई संसद भवन में पूजा करने के बाद लोकसभा में स्पीकर की कुर्सी के ठीक बगल में पवित्र 'सेंगोल' स्थापित किया। नए संसद भवन में स्थापित किए जाने से पहले पीएम मोदी को ये ऐतिहासिक 'सेंगोल' को अधीनम द्वारा सौंपा गया था। बता दें कि नए संसद भवन में स्थापित किए जाने से पहले पीएम मोदी को ऐतिहासिक 'सेंगोल' को अधीनम्स द्वारा सौंपा गया था। पीएम मोदी ने अमृत काल के राष्ट्रीय प्रतीक के रूप में नए संसद भवन में सेंगोल को अपनाने का फैसला लिया।
वैदिक रीति से सेंगोल की हुई पारंपरिक 'पूजा'
बता दें कि यह वही सेंगोल है जिसे भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने 14 अगस्त की रात अपने आवास पर कई नेताओं की उपस्थिति में स्वीकार किया था। आज इस समारोह की शुरुआत वैदिक रीति से पारंपरिक 'पूजा' के साथ हुई, जो एक घंटे तक चली। पूजा के दौरान पीएम मोदी के साथ लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला भी मौजूद रहे।
ढाई हज़ार साल पुराना चोल साम्राज्य का राजदंड
ये पवित्र 'सेंगोल' एक राजदंड नहीं बल्कि भारत की वैभवशाली संस्कृति का प्रतीक है। ये भारत की पुरातन राजपद्धति ही नहीं, राजा की जवाबदेही का सूचक है। ये दंड राजा और प्रजा दोनों को उनके कर्तव्यों की याद दिलाता है। ये सेंगोल ढाई हज़ार साल पुराने चोल साम्राज्य में सत्ता हस्तांतरित करने के प्रतीक के रूप में उपोग किया जाता था। कल प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कांग्रेस पर जबदस्त निशाना साधते हुए कहा कि 1947 में अंग्रेजों से सत्ता के हस्तांतरण के प्रतीक ‘सेंगोल’ (राजदंड) को आजादी के बाद उचित सम्मान मिलना चाहिए था, लेकिन इसे प्रयागराज के आनंद भवन में ‘छड़ी’ के रूप में प्रदर्शित किया गया।
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