जोशीमठ जैसी बदहाली से दुनिया को बचाएगा NASA-ISRO सिंथेटिक एपर्चर रडार सैटेलाइट मिशन! चीन को चिंता
अंतरिक्ष क्षेत्र में भारत की बढ़ती उपलब्धियों को देखते हुए अमेरिका ने भी हाथ मिला लिया है। भारत और अमेरिका एक ऐसे अंतरिक्ष मिशन पर सहमत हुए हैं कि जिसके बारे में सुनते ही चीन में चिंता छा गई है। भारत और अमेरिका की प्रमुख अंतरिक्ष एजेंसी नासा और इसरो ने मिलकर इसी वर्ष "NASA-ISRO सिंथेटिक एपर्चर रडार सैटेलाइट" छोड़ेंगे।
NASA-ISRO Space Mission: अंतरिक्ष क्षेत्र में भारत की बढ़ती उपलब्धियों को देखते हुए अमेरिका ने भी हाथ मिला लिया है। भारत और अमेरिका एक ऐसे अंतरिक्ष मिशन पर सहमत हुए हैं कि जिसके बारे में सुनते ही चीन में चिंता छा गई है। दरअसल भारत और अमेरिका की प्रमुख अंतरिक्ष एजेंसी नासा और इसरो ने मिलकर इसी वर्ष "NASA-ISRo सिंथेटिक एपर्चर रडार सैटेलाइट" छोड़ने का ऐलान किया है। दोनों संस्थाओं के वैज्ञानिकों ने मिशन को सफलतापूर्वक अंजाम देने के लिए काम भी शुरू कर दिया है। इससे सिर्फ भारत और अमेरिका में ही नहीं, बल्कि विश्व के अंतरिक्ष में एक नई इबारत लिखी जाने वाली है, जिसका फायदा पूरे विश्व को होगा। आइए अब आपको बताते हैं कि भारत और अमेरिका के इस मिशन से क्या होने वाला है?
जोशीमठ जैसी बदहाली से बचेगी दुनिया
भारत और अमेरिका के इस अंतरिक्ष मिशन से एक साथ कई लक्ष्य हासिल होंगे। इस मिशन को अंजाम दे दिए जाने के बाद दुनिया को अब उत्तराखंड के "जोशी मठ" जैसी बदहाली से बचाया जा सकेगा। दरअसल वर्ष 2023 के अंत तक अंतरिक्ष में भारत और अमेरिका की ओर से छोड़ी जाने वाली NASA-ISRo सिंथेटिक एपर्चर रडार सैटेलाइट दुनिया को प्राकृतिक खतरों, समुद्र स्तर में वृद्धि और भूजल के बारे में जानकारी देगी। साथ ही यह आरोही और अवरोही दर्रों पर 12 दिन की नियमितता के साथ विश्व स्तर पर पृथ्वी की भूमि और बर्फ से ढकी सतहों का भी निरीक्षण करेगा। इससे पता लगाया जा सकेगा कि भूमि और बर्फ से ढकी सतहों के नीचे पृथ्वी में क्या हलचल चल रही है। ऐसे में दुनिया को "जोशी मठ" जैसी तबाही से बचाना आसान हो जाएगा। यह सैटेलाइट धरती के बदलते पारिस्थितिकी तंत्र, इसकी गतिशील सतहों और बर्फ का द्रव्यमान भी मापेगी। कई तरह के अन्य अनुप्रयोगों में भी मदद करेगी।
हर छठवें दिन पृथ्वी का नमूना लेगी सैटेलाइट
भारत और अमेरिका की यह NASA-ISRo सिंथेटिक एपर्चर रडार सैटेलाइट लगभग हर छठवें दिन धरती के अलग-अलग हिस्सों में पृथ्वी का नमूना लेगी। इसके बाद अध्ययन करके खतरों की भविष्यवाणी की जा सकेगी। ऐसे में किसी दूसरे स्थान को जोशी मठ बनने से रोका जा सकेगा। इस मिशन के कामयाब होने के बाद भारत और अमेरिका अंतिरक्ष में विभिन्न वजहों से होने वाले मलबे का प्रबंधन भी करेंगे। केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री जितेंद्र सिंह के अनुसार एक दिन पहले ही भारत में अमेरिका के नेशनल साइंस फाउंडेशन के निदेशक सेथुरमन पंचनाथन के नेतृत्व में आए प्रतिनिधि मंडल के दौरान दोनों देशों के बीच अंतरिक्ष में सहयोग बढ़ाने पर चर्चा की है।
इन क्षेत्रों में भी भारत-अमेरिका मिलकर करेंगे काम
हाल ही में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के सर्वर पर हुए साइबर अटैक से सबक लेते हुए भारत ने इस क्षेत्र में भी अमेरिका के साथ मिलकर काम करने की योजना बनाई है। एम्स पर हुए सबसे बड़े साइबर अटैक में चीनी हैकरों का हाथ होने की आशंका है। भारत के बाद अभी दो दिन पहले अमेरिका में भी सबसे बड़ा साइबर अटैक हुआ है, जहां हवा में उड़ते-उड़ते ही अमेरिका का एयरनेटवर्क जाम हो गया था। सिग्नल बंद हो जाने से 100 से अधिक विमानों के दुर्घटनाग्रस्त होने की आशंका बढ़ गई थी। हालांकि अमेरिका इससे निपटने में सफल रहा। इस साइबर अटैक में भी चीनी हाथ होने से इंकार नहीं किया जा सकता।
ऐसे में भारत और अमेरिका अब साइबर सुरक्षा से लेकर, क्वांटम, सेमीकंडक्टर, स्वच्छ ऊर्चा, उन्नत वायरलेस, भूविज्ञान, खगोल भौतिकी और रक्षा जैसे क्षेत्रों में गहन सहयोग पर आगे बढ़ रहे हैं। इसके साथ ही अमेरिका जैव अर्थव्यवस्था,स्मार्ट कृषि और 6जी प्रौद्योगिकी में सहयोग के लिए भी तत्पर है। दोनों देशों की इस साझेदारी के बारे में जानकर चीन में हलचल पैदा हो गई है।