कोहिमा/ नयी दिल्ली: नगालैंड में सुरक्षा बलों की गोलीबारी में 14 नागरिकों की मौत के बाद राज्य से आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल पावर्स एक्ट (AFSPA) हटाने की मांग जोर पकड़ रही है। इसी क्रम में राज्य मंत्रिमंडल ने केंद्र से AFSPA को निरस्त किये जाने की मांग करने को लेकर एक आपात बैठक की। मुख्यमंत्री नेफ्यू रियो के नेतृत्व में हुई इस बैठक में हत्या के विरोध में हॉर्नबिल उत्सव को समाप्त करने का फैसला किया। साथ ही राज्य सरकार ने AFSPA कानून रद्द करने की मांग करते हुए केंद्र को चिट्ठी लिखने का भी फैसला किया है।
AFSPA को निरस्त करने की मांग नयी दिल्ली में संसद में भी उठी। नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) की सांसद एवं संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार में मंत्री रह चुकी अगाथा संगमा ने कहा कि यह ऐसा बड़ा मुद्दा है, जिससे हर कोई अवगत है, लेकिन इसे नजरअंदाज किया जा रहा क्योंकि हर कोई उस पर चर्चा करने में असहज महसूस करता है। उन्होंने कहा कि इसका समाधान करने की जरूरत है। एनपीपी की नेता ने पूर्वोत्तर में पहले की कुछ घटनाओं का उल्लेख किया और कहा, ‘‘कई नेताओं ने यह मुद्दा उठाया है। अब समय आ गया है कि AFSPA को हटाया जाए।’’
नगालैंड में उग्रवाद शुरू होने के बाद सशस्त्र बलों को गिरफ्तारी और हिरासत में लेने की शक्तियां देने के लिए आफस्पा (AFSPA ) को 1958 में लागू किया गया था। आलोचकों का कहना रहा है कि सशस्त्र बलों को पूरी छूट होने के बावजूद यह विवादास्पद कानून उग्रवाद पर काबू पाने में नाकाम रहा है, कभी-कभी यह मानवाधिकारों के हनन का कारण भी बना है। संगमा ने कहा कि नगालैंड में 14 असैन्य नागरिकों की हत्या ने मालोम नरसंहार की यादें ताजा कर दी, जिसमें इंफाल (मणिपुर) में 10 से अधिक असैन्य नागरिकों की गोली मार कर हत्या कर दी गई थी तथा इस वजह से 28 वर्षीय इरोम शर्मिला को 16 साल लंबे अनशन पर रहना पड़ा।
कैबिनेट की बैठक के दौरान नागरिकों के मारे जाने के बाद उठाए गए कदमों की जानकारी दी गयी। इसमें आईजीपी रैंक के अधिकारी की अध्यक्षता में विशेष जांच दल (एसआईटी) गठित करना और राज्य तथा केंद्र सरकारों द्वारा मृतकों के परिजनों को अनुग्रह राशि देना शामिल है। कैबिनेट ने एसआईटी को एक महीने के भीतर जांच पूरी करने का निर्देश दिया है। इस घटना में कुल 14 नागरिकों की मौत हुई है, जबकि दो गंभीर रूप से घायल हुए हैं, जिनका पड़ोसी राज्य असम में इलाज चल रहा है और छह अन्य का दीमापुर में इलाज चल रहा है। गौरतलब है कि गोलीबारी की घटनाएं चार दिसंबर को ओटिंग-तिरु में और पांच दिसंबर को मोन शहर में हुई।
दरअसल, 1958 में लागू किए गए आफस्पा (AFSPA) को हटाने की मांग लंबे अर्से से चल रही है। वर्ष 2005 में जस्टिस जीवन रेड्डी कमेटी ने इस कानून को हटाकर इसकी जगह अनलॉफुल एक्विटिविटीज (प्रीवेंशन) एक्ट 1967 में नॉर्थ ईस्ट के राज्यों को एक नए चैप्टर के रूप में शामिल करने की संस्तुति की थी और कहा था कि AFSPA के प्रावधानों को इसी में शामिल कर लिया जाए। लेकिन इसपर बात आगे नहीं बढ़ पाई। 2014 के बाद से केंद्र ने इन प्रावधानों पर विचार करना शुरू किया। जिन इलाकों में सुरक्षा के हालातों में सुधार हुए उन इलाकों में धीरे-धीरे इसे वापस लेने का काम शुरू हुआ। 2015 में त्रिपुरा से आफस्पा (AFSPA) को हटा लिया गया। 2018 में मेघालय से इस कानून को वापस लिया गया। इसके बाद अरुणाचल प्रदेश के कुछ हिस्सों को छोड़कर बाकी हिस्सों से आफस्पा (AFSPA) हटा लिया गया। इसी तरह मणिपुर के भी सात विधानसभा क्षेत्रों से इस कानून को वापस लिया गया।
इनपुट-एजेंसी/इकोनॉमिक टाइम्स
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