मुस्लिम पर्सनल लॉ के नियम निश्चित तौर पर काफी अलग हैं। इसमें कई बार संशोधन को लेकर विवाद भी खड़ा हुआ है। हाल ही में एक याचिका सुप्रीम कोर्ट में आई है जिसमें सवाल उठाया गया है कि क्या मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत 15 साल की लड़की का निकाह किया जा सकता है। कई राज्यों की हाईकोर्ट में इस पर अलग-अलग निर्णय दिए गए हैं। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट से अपील की गई है कि इसपर स्पष्ट और सर्वमान्य फैसला दिया जाए। अब सुप्रीम कोर्ट इस मामले पर विचार करेगा।
CJI ने क्या कहा?
सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि इस मसले पर विभिन्न हाईकोर्ट के अलग अलग फैसले आ रहे हैं। इसके चलते भ्रम की स्थिति बन रही है। इन फैसलों के खिलाफ अलग-अलग याचिकाएं दाखिल हो रही है। बेहतर होगा कि सुप्रीम कोर्ट इससे जुड़ी सभी याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई कर इस पर स्पष्टता दे। इस पर CJI डीवाई चंद्रचूड ने कहा कि वास्तव में एक ही प्रकरण पर अलग-अलग निर्णय भले ही वह कितनी भी विषम परिस्थिति में दिया गया हो भ्रम पैदा करने वाला होता है। इस पर स्पष्टता की जरूरत है और हम जल्द इस पर विचार करेंगे।
बता दें कि राष्ट्रीय महिला आयोग और राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग ने पंजाब हरियाणा हाईकोर्ट के उस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है, जिसमे हाईकोर्ट ने 15 साल की मुस्लिम लड़की की शादी को वैध करार दिया था।
देश में शादी की न्यूनतम आयु 18 वर्ष
भारत में 15 साल की लड़की नाबालिग की श्रेणी में आती है। विवाह के लिए लड़की की न्यूनतम आयु देश में 18 वर्ष निर्धारित की गई है। ऐसे में सामान्य तौर पर 18 साल से कम उम्र में विवाह गैरकानूनी होता है। इसके अंतर्गत सजा का भी प्रावधान है।
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