ज्ञानवापी मामले में मुस्लिम संगठनों ने की प्रेस कॉन्फ्रेंस, अदालत के फैसले पर सवाल; सुप्रीम कोर्ट जाएंगे
नई दिल्ली में देश के कई प्रमुख मुस्लिम संगठनों ने आज एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की। ये प्रेस कॉन्फ्रेंस मुख्य रूप से ज्ञानवापी मामले में कोर्ट के फैसले के बाद की गई है। साथ ही इसमें कोर्ट के फैसले को लेकर काफी देर तक चर्चा की गई।
नई दिल्ली: वाराणसी के ज्ञानवापी विवाद मामले में मुस्लिम संगठनों ने आज दिल्ली में एक प्रेस कॉन्फ्रेस आयोजित की। इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में AIMPLB के अध्यक्ष सैफुल्लाह रहमानी, मौलाना अरशद मदनी और महमूद मदनी मौजूद रहे। वहीं इस बैठक में मुस्लिम संगठन के सदस्यों ने कोर्ट के फैसले पर सवाल उठाए हैं। इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में मुस्लिम संगठनों ने कोर्ट के फैसले पर सवाल खड़े किए हैं। साथ ही कहा है कि इससे ना सिर्फ देश के 20 करोड़ मुसलमानों को बल्कि देश के सेकुलर हिंदुओं और सिखों को भी सदमा लगा है।
इस्लाम खुद नहीं देता इसकी इजाजत
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के अध्यक्ष सैफुल्लाह रहमानी ने इस मौके पर कहा कि ज्ञानवापी मामले ने 20 करोड़ मुसलमानों के साथ ही सेकुलर लोगों को बड़ा सदमा पहुंचाया है। उन्होंने कहा कि आज मुसलमानों के साथ सेकुलर हिन्दू और सिख सभी लोग दुखी हैं। सब लोगों को धक्का लगा है। ये जो बात कही जाती है कि मुसलमानों ने मंदिर गिराकर मस्जिद बनाई, ये बात बिल्कुल गलत है। इस्लाम खुद इसकी इजाजत नहीं देता, दुनिया की पहली मस्जिद मोहम्मद साहब ने पैसे देकर खरीदी थी, तब मस्जिद बनाई थी। उन्होंने कहा कि इस्लाम के कानून के मुताबिक अगर किसी जमीन पर बिना इजाजत नमाज पढ़ने लगें तो इसकी इजाजत नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट जाएंगे मुस्लिम संगठन
आगे उन्होंने कहा कि अदालतों के फैसले मायूस करने वाले हैं। ज्ञानवापी मामले में दूसरे पक्ष को अपनी बात रखने का मौका अदालत में नहीं दिया गया। अक्लियतों को लग रहा है कि ऐसा तो नहीं कि अदालतों में बहुसंख्यकों के लिए अलग कानून है। राम मंदिर में भी यही फैसला हुआ। वहां कभी भी मंदिर तोड़कर मस्जिद नहीं बनाई गई। हमारी अदालतें भी इस राह पर चल रही हैं कि लोगों का भरोसा टूट जाए। हमें इस बात पर अफसोस है कि जब सभी धर्मों के लोगों ने मिलकर शहादत दी, अब सबको बराबर नहीं देखा जा रहा है। 1991 का जो कानून है उसे हम अपने देश को झगड़े से बचा सकते हैं। अगर इस कानून को अमल में नहीं लाया जाएगा तो कई फसाद होंगे। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में भी 1991 के कानून के महत्व को समझा और उसे मजबूत किया। हमारी सरकार से गुजारिश है कि इंसाफ का एक ही पैमाना होना चाहिए। उन्होंने कहा कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ हम सुप्रीम कोर्ट के पास जाएंगे, राष्ट्रपति से मिलने का वक्त मांगेंगे।
आस्था की बुनियाद पर दिया फैसला
वहीं मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि आजादी के बाद अब तक मुसलमान किस तरह की मुश्किल में घिरा है। मौजूदा समय में जिस तरह से अलग-अलग मुद्दों को उठाया गया है, इससे ऐसा लगता है कि कानून की हिफाजत करने वाली अदालतों में ऐसी लचक पैदा हुई है, जिससे मजहबी मकामात पर कब्जा करने वालों की हिम्मत बढ़ी है। हम तो 1991 के कानून में बाबरी मस्जिद को अलग करने से ही खफा थे, लेकिन यहां तो दूसरी मस्जिदों को भी कानून के बावजूद निशाना बनाया जा रहा है। बाबरी मस्जिद के फैसले ने इन लोगों के लिए रास्ता खोल दिया, जिनमें कानून के हिसाब से नहीं बल्कि आस्था की बुनियाद पर फैसला दिया। अदालत देख रही है कि बहुसंख्यक समाज क्या चाहता है वही फैसला हो जाता है, कानून के हिसाब से फैसला नहीं होता।
इबादतगाहों को छीनने का कर रहे काम
वहीं जमात-ए-इस्लामी हिंद के उपाध्यक्ष मलिक मोहतासिम ने कहा कि इस समय अदालत, अधिकारी और नेता मिलकर काम कर रहे हैं। इबादतगाहों को छीनने का काम कर रहे हैं। मुसलमान कब तक सब्र करेगा, एक वक्त आएगा कि मुसलमान अपनी कयादत भी नहीं मानेंगे और अगर ऐसा हुआ तो देश का नुकसान होगा।
हमारे साथ दुश्मनों जैसा हो रहा सुलूक
वहीं महमूद मदनी ने कहा कि इंडिया के ज्यूडिशियल सिस्टम के ऊपर बड़ा प्रश्न चिन्ह लग गया है। जिस तरह से जज ने जाते-जाते (रिटायरमेंट से ठीक पहले) एक तरफा तरीके से फैसला दिया, इसका इनाम मिल जाएगा। उपर की अदालतें टेक्निकल वजहों से सुनवाई को तैयार नहीं तो हम लोग कहां जाएंगे। उन्होंने कहा कि बात इस हद तक नहीं बढ़नी चाहिए कि बात बिगड़े। देश को आगे बढ़ाना सबकी जिम्मेदारी है, हमारे साथ दुश्मनों जैसा सुलूक किया जा रहा है, हमें इस तरह से बदनाम कर दिया गया है। इंसाफ बनाए रखना सबकी जिम्मेदारी है। जिसकी लाठी उसकी भैंस नहीं होना चाहिए क्योंकि लाठी हाथ बदलती है।
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