#BoycottMarriage जमकर हो रहा ट्रेंड, Marital Rape को लेकर बहस तेज, जानिए भारत में क्या हैं कानून, और क्या है ताजा मामला?
Marital Rape: ताजा बहस मैरिटल रेप को लेकर हो रही है। आईपीसी या भारतीय दंड संहिता रेप की परिभाषा तो तय करते हैं लेकिन उसमें शादी के बाद 'पति द्वारा ब्लात्कार' या फिर मैरिटल रेप का कोई जिक्र नहीं किया गया है।
Highlights
- देश में मैरिटल रेप को लेकर बहस तेज
- सुप्रीम कोर्ट में 16 तारीख से होगी सुनवाई
- दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले को दी गई चुनौती
Marital Rape: सोशल मीडिया पर मैरिटल रेप को लेकर बहस तेज हो गई है। बीते दिन से लगातार #BoycottMarriage, #marrigestrike और #MaritalRape जैसे हैशटैग ट्विटर पर ट्रेंड हो रहे हैं। जिसमें पुरुषों की मांग है कि मैरिटल रेप पर कानून नहीं बनना चाहिए। लेकिन इस पर अभी बहस क्यों हो रही है? हमारे देश में इस पर पहले से कौन से कानून हैं? इन सभी बातों के बारे में विस्तार से जान लेते हैं।
रेप और मैरिटल रेप में क्या अंतर है?
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रेप क्या है?
भारतीय कानून के अनुसार आईपीसी की धारा 375 के तहत, अगर कोई व्यक्ति इन छह परिस्थितियों में यौन संभोग करता है, यानी शारीरिक संबंध बनाता है, तो उसे रेप माना जाएगा।
पहला- महिला की इच्छा के विरुद्ध
दूसरा- महिला की मर्जी के बिना
तीसरा- महिला की मर्जी से करना, लेकिन महिला की ये सहमति उसे मौत या फिर नुकसान पहुंचाने या फिर उसके करीबी व्यक्ति के साथ ऐसा करने का खौफ दिखाकर हासिल की गई हो।
चौथा- महिला की मर्जी से, लेकिन महिला ने यह सहमति व्यक्ति की ब्याहता होने के भ्रम में दी हो।
पांचवां- महिला की मर्जी से, मगर जब महिला सहमित दे रही हो, तब उसकी मानसिक स्थिति ठीक न हो या फिर उस पर नशीले पदार्थ का प्रभाव हो या लड़की सहमति देने के नतीजों को समझने की स्थिति में न हो।
छठा- महिला अगर 16 साल से कम उम्र की है। तो चाहे उसकी मर्जी से या बिना सहमति से शारीरिक संबंध बनाना।
अपवाद- हालांकि अगर महिला शादीशुदा है और उसकी उम्र बेशक 15 साल से कम है, तो पति के द्वारा शारीरिक संबंध बनाना रेप नहीं कहलाएगा।
मैरिटल रेप क्या है?
ताजा बहस मैरिटल रेप को लेकर हो रही है। आईपीसी या भारतीय दंड संहिता रेप की परिभाषा तो तय करते हैं लेकिन उसमें शादी के बाद 'पति द्वारा ब्लात्कार' या फिर मैरिटल रेप का कोई जिक्र नहीं किया गया है। वहीं धारा 376 में रेप के लिए सजा का प्रावधान है और इस धारा में पत्नी से रेप पर पति के लिए सजा का प्रावधान भी है, लेकिन शर्त है कि पत्नी की उम्र 12 साल से कम ही हो। अगर पति अपनी 12 साल से कम उम्र की पत्नी के साथ रेप करता है, तो उसे जुर्माना और दो साल की जेल या फिर दोनों सजाएं भी मिल सकती हैं।
हिंदू मैरिज एक्ट या घरेलू हिंसा कानून क्या कहते हैं?
हिंदू विवाह अधिनियम पति और पत्नी के लिए एक दूसरे हेतु कुछ जिम्मेदारियां तय करता है। जिसमें शारीरिक संबंध बनाने का अधिकार भी शामिल है। कानून में ये माना गया है कि शारीरिक संबंध बनाने के लिए इनकार करना क्रूरता है और इस आधार पर तलाक तक मांगा जा सकता है।
अब बात करते हैं घरेलू हिंसा कानून की। तो घर के भीतर महिलाओं के साथ होने वाले यौन शोषण के लिए 2005 में घरेलू हिंसा कानून लाया गया था। जिसमें घर के भीतर महिलाओं के साथ होने वाले यौन शोषण में उन्हें संरक्षण देने की बात कही गई है। इसमें घर के भीतर के यौन शोषण को परिभाषित किया गया है।
ताजा मामाल क्या है और अभी क्यों बहस हो रही है?
हमारे देश का सुप्रीम कोर्ट अब ये तय करेगा कि पत्नी के साथ जबरन शारीरिक संबंध बनाना रेप है या नहीं है। इस मामले में 16 सितंबर को सुनवाई होगी। मैरिटल रेप पर मई महीने में दिल्ली हाई कोर्ट ने एक विभाजित फैसला सुनाया था, जिसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है। हाई कोर्ट के दो जजों की बेंच ने 11 मई को मामले पर अलग-अलग फैसले दिए थे। फिलहाल भारतीय कानून में मैरिटल रेप को अपराध की श्रेणी से बाहर रखा गया है। लेकिन इसे लंबे वक्त से अपराध घोषित होने की मांग हो रही है। इसके लिए कई संगठन आगे आए हैं। याचिकाकर्ता ने पहले दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी। जिसमें आईपीसी की धारा 375 (दुष्कर्म) के तहत मैरिटल रेप को अपवाद माने जाने को लेकर संवैधानिक तौर पर चुनौती दी गई। इस मुद्दे पर कोर्ट के जज एकमत नहीं थे।
दिल्ली हाई कोर्ट ने इसी वजह से मामला 3 जजों की बेंच को ट्रांसफर करने का फैसला लिया। हुआ ये कि दो जजों की बेंच में, एक जज राजीव शकघर मैरिटल रेप को अपराध की श्रेणी में रखने के पक्ष में थे। उन्होंने कहा था कि पत्नी से उसकी इच्छा के विरुद्ध शारीरिक संबंध बनाने पर पति के ऊपर क्रिमिनल केस होना चाहिए। वहीं जस्टिस हरिशंकर इस पर एकमत नहीं थे। उन्होंने इस विचार पर सहमति नहीं जताई। वहीं हाई कोर्ट ने सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद 21 फरवरी को फैसला सुरक्षित रख लिया था।
केंद्र सरकार की बात करें, तो उसने पहले मौजूदा कानून को सही ठहराया था लेकिन बाद में बदलाव की वकालत की। केंद्र सरकार ने 2017 में मैरिटल रेप को लेकर दिल्ली हाई कोर्ट में कहा था कि इसे अपराध घोषित नहीं किया जा सकता और अगर ऐसा होता है कि विवाह जैसी पवित्र संस्था अस्थिर हो जाएगी। सरकार ने ये तर्क भी दिया कि ये पतियों को परेशान करने के लिए आसान हथियार बन सकता है।