21 मार्च लोकतंत्र की जीत का दिन है। जी हां, आज ही के दिन 1977 में 21 महीनों के आपातकाल का खात्मा हुआ था। जून 1975 के बाद के 21 महिनों के आपातकाल (Emergency) के समय को काले दौर के रूप में मनाया जाता है। आपातकाल में जिस तरह से लोगों के मौलिक अधिकारों का हनन किया गया था, उसे भारत में लोकतंत्र की हत्या की तरह देखा गया। इसका जवाब लोगों ने चुनाव में इंदिरा गांधी और संजय गांधी को हराकर दिया था।
आपातकाल में काले कानून लागू हुए
आपातकाल के दौरान कई तरह के काले कानून लागू किए गए। लाखों लोगों को गिरफ्तार किया गया। लोगों की जबरन नसबंदी कराई गई। प्रेस की आज़ादी छीन ली गई। सरकार का विरोध करने पर मीसा और डीआईआर जैसे कानूनों का उपयोग कर लोगों को जेल में बंद कर दिया गया।
क्यों लगाया गया आपातकाल?
1971 में हुआ लोकसभा चुनाव आपातकाल का वजह बना । तब इंदिरा गांधी ने रायबरेली सीट से राजनारायण को हरा दिया था। परन्तु राजनारायण ने हार नहीं मानी और चुनाव में धांधली का आरोप लगाते हुए हाईकोर्ट में फैसले को चैलेंज किया। 12 जून 1975 को इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा ने इंदिरा गांधी का चुनाव निरस्त कर 6 साल तक चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी। कोर्ट के फैसले के बाद इंदिरा गांधी पर विपक्ष ने इस्तीफे का दबाव बनाया पर उन्होंने इससे इनकार कर दिया। तब जयप्रकाश नारायण ने इंदिरा गांधी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। आपातकाल के ज़रिए उसी विरोध को शांत करने की कोशिश हुई थी।
21 मार्च 1977 को लोकतंत्र की जीत हुई
'जनता पार्टी' ने 1977 के चुनाव में कांग्रेस के आपातकालीन जुल्मों को मुद्दा बनाया। इसका इतना प्रभाव पड़ा कि जनता और प्रेस पूरी तरह सरकार के खिलाफ हो गए। जयप्रकाश नारायण लोकतंत्र के प्रतीक बन चुके थे। इसका नतीजा यह हुआ कि कांग्रेस को जबर्दस्त हार का सामना करना पड़ा। इंदिरा गांधी और संजय गांधी तक चुनाव हार गए थे। इस चुनाव परिणाम को देखकर दुनिया दंग रह गई थी। यकीन ही नहीं हुआ कि भारत में अब भी लोकतंत्र जिंदा है। परन्तु इमरजेंसी की आग में झुलस चुके देश के लोगों ने अपना फैसला सुना दिया था।
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