लोकसभा चुनाव के लिए 19 अप्रैल से वोटिंग शुरू हो जाएगी और 7 चरणों का मतदान 1 जून कर चलेगा। निर्वाचन आयोग की ओर से पूरी कोशिश है कि पात्र मतदाता अपने मताधिकार का उपयोग करने के लिए बूथ तक जरूर जाएं और वोट जरूर करें। इसके लिए चुनाव आयोग कई तरह के जागरुकता अभियान भी चलाता है। लेकिन संविधान हर एक वोटर को मतदान ना करने का भी अधिकार देता है। लेकिन ज्यादातर मतदाताओं को पीठासीन अधिकारी के समक्ष पहचान सत्यापित करने के बाद भी ‘मतदान से इनकार’ के अपने अधिकार की जानकारी नहीं होती है।
NOTA से अलग होता है ये अधिकार
यहां साफ कर दें कि ये अधिकार ‘नोटा’ (उपरोक्त में से किसी को वोट नहीं) से अलग है और ‘चुनाव कराने की नियमावली, 1961 के नियम 49-ओ’ के तहत इसका इस्तेमाल किया जा सकता है। इस प्रावधान में बताया गया है कि कोई वोटर मतदान केंद्र पर पहुंचने के बाद भी मतदान से दूरी बना सकता है। जहां एक ओर ‘नोटा’ विकल्प मतदाताओं को किसी भी प्रत्याशी में विश्वास नहीं जताने का अधिकार देता है, वहीं ‘मतदान से इनकार’ का विकल्प उसे मतदान प्रक्रिया से ही दूर रहने का मौका देता है।
क्या है ये नियम?
बता दें कि नियम ‘49-ओ’ खंड पीठासीन अधिकारी को निर्देश देता है कि जब कोई मतदाता अपनी पहचान सत्यापित होने के बाद भी बूथ के अंदर मतदान करने से इनकार कर देता है, तो अधिकारी फॉर्म 17ए में इस संबंध में टिप्पणी डालेंगे और मतदाता के हस्ताक्षर कराएंगे या अंगूठे का निशान लगवाएंगे। निर्वाचन आयोग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘‘यह कोई नया अधिकार नहीं है। यह पिछले कुछ समय से है। हालांकि, मतदाताओं को इस बारे में बहुत कम जानकारी है। अधिकतर लोगों को इस विकल्प के बारे में पता ही नहीं है।’’
क्या चुनाव परिणाम पर पड़ेगा असर?
अधिकारी ने स्पष्ट किया कि मतदान से परहेज करने से निश्चित रूप से चुनाव परिणाम को प्रभावित करने में कोई भूमिका नहीं होगी और जो उम्मीदवार सबसे अधिक संख्या में वैध वोट हासिल करेगा, भले ही उसकी जीत का अंतर कुछ भी हो, उसे निर्वाचित घोषित किया जाएगा। क्या आयोग मतदाताओं को इस विकल्प के बारे में जागरुक करेगा, इस पर अधिकारी ने कहा, ‘‘इस समय ऐसी कोई योजना नहीं है।’’
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