What is a Fatwa: फतवा के बारे में तो आपने अक्सर सुना होगा। आखिर फतवा जारी करने की जरूरत कब और क्यों होती है। फतवा कब और किस लिए जारी किया जा सकता है, क्या फतवा को हर मुसलमान को मानना जरूरी होता है, क्या फतवा का तिरस्कार करने वाले को कठोर सजा हो सकती है, क्या कोई भी मुसलमान फतवा जारी कर सकता है, फतवा और अपील में क्या अंतर होता है, क्या कोई फतवा अपील की तरह हो सकता है या फिर कोई अपील फतवा बन सकती है?..इत्यादि ऐसे सवाल हैं, जिनको हर कोई जानना चाहता है। इस्लामिक सेंटर ऑफ इंडिया के चेयरमैन मौलाना खालिद रशीद ने फतवा और अपील में अंतर बताया है। आइए आपको बताते हैं कि फतवा और अपील आखिर है क्या?
मौलाना खालिद रशीद कहते हैं कि फतवों को लेकर लोगों के मन में कई तरह की गलतफहमियां हैं। उन्होंने कहा कि दरअसल फतवा मज़हबी राय मांगने के लिए होता है। मगर कई लोग इसे दूसरा रूप दे देते हैं। जबकि फतवा मज़हबी राय है इसे सियासी एंगेल देना ठीक नही। कई बार कोई इमाम ने वोट या चुनाव के बारे में बयान दिया तो लोग इसे फतवा कहने लगते हैं जबकि ये एलान होता है मौलाना का। जो फतवा नही राय हो सकती है। मुल्क में अंग्रेज़ो के खिलाफ ज़रूर फतवे जारी हुए कि मुसलमान आज़ादी की लड़ाई में शामिल हों, लेकिन आज़ाद हिंदुस्तान में सियासी फतवा जारी नहीं किया। लोगों ने अपील की है उन अपीलों को फतवा कहना मुनासिब नहीं। इसलिए सभी को फतवा और अपील में फर्क को समझना होगा।
कौन जारी करता है फतवा या अपील
आम तौर पर फतवा या अपील जारी करने का अधिकार मुस्लिम धर्म संगठन से जुड़े पदाधिकारी, मस्जिद के मौलाना इत्यादि ही जारी कर सकते हैं। अक्सर विभिन्न मामलों में देश में फतवा जारी किए जाने की बातें सामने आती हैं। मुस्लिम धर्म के अनुसार हर किसी को फतवा मानना जरूरी होता है। फतवा का तिरस्कार करने पर कई बार लोगों को सजा भी दी जाती है। अक्सर देश में समय-समय पर अलग-अलग मामलों में मौलानाओं द्वारा फतवा जारी किया जाता है, जिसे वह अपनी जरूरत के अनुसार कभी अपील तो कभी फतवा का नाम देते हैं। कई बार फतवे को लेकर सियासत में बड़े विवाद खड़े हो गए हैं। इसलिए मौलाना रशीद ने फतवे और अपील में फर्क बताया है। हालांकि यह फतवा कब जरूरत के अनुसार अपील करार दे दी जाए और कब अपील को फतवा बता दिया जाए, इसकी कोई गारंटी नहीं है।
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