जानें क्या है कार्बन और ओएसएल डेटिंग, हजारों साल पुरानी वस्तुओं की उम्र का जिससे चल जाता है पता
Gyanvapi-Carbon & OSL dating: क्या आपने कभी कार्बन डेटिंग और ओएसएल डेटिंग के बारे में सुना है?...यह क्या होती है और कैसे इसके जरिये हजारों साल पुरानी वस्तुओं की उम्र का वास्तविक पता चल जाता है?...वाराणसी के ज्ञानवापी मस्जिद में मिले शिवलिंग की कार्बन डेटिंग कराने की मांग वाली याचिका को कोर्ट ने क्यों खारिज कर दिया था?.
Gyanvapi-Carbon & OSL dating: क्या आपने कभी कार्बन डेटिंग और ओएसएल डेटिंग के बारे में सुना है?...यह क्या होती है और कैसे इसके जरिये हजारों साल पुरानी वस्तुओं की उम्र का वास्तविक पता चल जाता है?...वाराणसी के ज्ञानवापी मस्जिद में मिले शिवलिंग की कार्बन डेटिंग कराने की मांग वाली याचिका को कोर्ट ने क्यों खारिज कर दिया था?...मुस्लिम पक्ष ने क्या कहकर और क्यों शिवलिंग की कार्बन डेटिंग कराए जाने का विरोध किया था ?....क्या कार्बन डेटिंग से क्या वाकई शिवलिंग की उम्र का पता लगाया जा सकता है?..आइए इस बारे में आपको सबकुछ बताते हैं।
डॉ. बीरबल साहनी पुरावनस्पति विज्ञान संस्थान (बीएसआइपी), लखनऊ के वैज्ञानिकों के अनुसार कार्बन डेटिंग से सिर्फ उसकी उम्र का पता लगाया जा सकता है, जो कभी भूतकाल में जीवित रहे हों। मसलन, इंसानों, जीवों, पेड़-पौधों, कीटों इत्यादि के उम्र का पता कार्बन डेटिंग से लगाया जा सकता। यानि कार्बन डेटिंग से सिर्फ सजीव वस्तुओं की उम्र का ही पताया लगाया जा सकता है, भले ही वह वर्तमान में निर्जीव हो चुके हों। मगर जो हमेशा निर्जीव हो, उसकी उम्र का पता कार्बन डेटिंग से नहीं लगाया जा सकता। जैसे पत्थर, कोयला, कांच इत्यादि। आइए अब आपको बताते हैं कि कार्बन डेटिंग है क्या?
कैसे की जाती है कार्बन डेटिंग
वैज्ञानिकों के अनुसार कार्बन एक विशेष प्रकार का समस्थानिक (आइसोटोप) होता है। इसका उपयोग ऐसे कार्बनिक पदार्थों की उम्र का पता लगाने में किया जाता है, जो भूतकाल में कभी जीवित यानि सजीव थे। क्योंकि सभी सजीवों में किसी ने किसी रूप में कार्बन मौजूद होता है। ऐसे कार्बनिक पदार्थों या जीवों की मौत के बाद उनके शरीर में मौजूद कार्बन 12 या कार्बन-14 के अनुपात अथवा अवशेष बदलना शुरू हो जाते हैं। कार्बन-14 रेडियोधर्मी पदार्थ है, जो धीरे-धीरे समय बीतने के साथ सजीव शरीर में कम होने लगता है। इसे कार्बन समस्थानिक आइसोटोप सी-14 कहा जाता है। इसके जरिये कार्बनिक पदार्थों वाले सजीवों की मृत्यु का समय बताया जा सकता है। इससे उसकी अनुमानित उम्र का पता चल जाता है। इसे कार्बन डेटिंग कहते हैं। इसके जरिये 40 हजार से 50 हजार वर्ष तक पुरानी आयु वाले जीवों का पता लगाया जा सकता है। क्योंकि इसके बाद कार्बन का भी पूर्ण क्षरण हो जाता है। मगर निर्जीवों में कार्बन नहीं होने से उनकी कार्बन डेटिंग नहीं हो सकती।
कार्बन डेटिंग से नहीं पता चलेगी शिवलिंग की उम्र?
बीएसआइपी के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. नीरज राय के अनुसार कार्बन डेटिंग से सिर्फ कार्बनिक पदार्थों की मौजूदगी वाले सजीवों की उम्र का ही पता लगाया जा सकता है। शिवलिंग निर्जीव (पत्थर का बना) पदार्थ है। इसलिए इसकी कार्बन डेटिंग नहीं हो सकती। मगर शिवलिंग की स्थापना करते वक्त, उसके नीचे जो फूल, चावल, दूध इत्याधि चढ़ाया गया होगा, वहां से मिट्टी का नमूना लेकर कार्बन डेटिंग की जा सकती है। इससे शिवलिंग की भी अनुमानित उम्र का पता लगाया जा सकता है।
OSLडेटिंग से पता चल सकती है शिवलिंग की वास्तविक उम्र
बीएसआइपी के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. नीरज राय कहते हैं कि शिवलिंग की कार्बन डेटिंग नहीं हो सकती। क्योंकि यह निर्जीव वस्तु है। मगर इसकी OSLडेटिंग हो सकती है। यानि ऑप्टिकल स्टीमुलेटिंग ल्यूमिनेसेंस (OSL) से शिवलिंग की उम्र का पता लगाया जा सकता है। इसके जरिये यह पता लगाया जा सकता है कि शिवलिंग के लिए इस्तेमाल किया गया पत्थर, कब और कहां से लाया गया। इस पत्थर की उम्र क्या है और इसकी स्थापना कब की गई।
ऐसे होती है OSLडेटिंग
इसमें जो कोई भी पत्थर एक्सपोज हुआ है लाइट से तो प्रकाश की किरणें उसमें पेनिट्रेट कराई जाती हैं। उसमें जब अंदर ड्रिल किया जाता है तो जिस पत्थर से काटकर लाया गया, उसकी उम्र का पता चल जाएगा। इसके साथ ही यह भी पता चल जाएगा कि यह शिवलिंग कितना पुराना है। मगर इसके लिए शिवलिंग के अंदर ड्रिल करना पड़ेगा। ऐसे में शिवलिंग को नुकसान पहुंच सकता है। इसलिए इसका दूसरा तरीका है कि यदि वह शिवलिंग है तो उस पर कभी न कभी दूध या जल जरूर चढ़ाया गया होगा। ऐसे में शिवलिंग के एक टुकड़े का छोटा सा नमूना लेकर यह पता लगा सकते हैं कि दूध या जल कब पहली बार चढ़ाया गया था। इससे भी ज्ञानवापी के शिवलिंग की उम्र का पता लगाया जा सकता है। ऑप्टिकल डेटिंग समय की एक माप प्रदान करती है। क्योंकि किसी भी निर्जीव वस्तु के अंदर का कुछ भाग रोशनी या गर्मी से सुरक्षित रह जाता है। वही ल्यूमिनेसेंस सिग्नल को प्रभावी ढंग से रीसेट करता है। इससे संबंधित वस्तु की उम्र पता चल जाती है।
1950 के दशक में विकसित हुई तकनीकि
वैज्ञानिकों के अनुसार थर्मोल्यूमिनेसेंस के रूप में OSLडेटिंग की यह तकनीक मूल रूप से 1950 और 1960 के दशक में विकसित की गई। 1970 के दशक में आगामी शोध में यह बात सामने आई कि समुद्री और अन्य तलछट जो घंटों से लेकर दिनों तक सूर्य के प्रकाश के संपर्क में थे, थर्मोल्यूमिनेशन डेटिंग से उनकी उम्र का पता लग सकता है। पिछले 15 वर्षों में एकल विभाज्य और अनाज विश्लेषण के आगमन के साथ ल्यूमिनेसेंस डेटिंग में महत्वपूर्ण प्रगति हुई है। इसे नीले / हरे डायोड के साथ संबद्ध प्रोटोकॉल के साथ करते हैं जो प्रयोगशाला प्रेरित संवेदनशीलता परिवर्तनों के लिए प्रभावी रूप से क्षतिपूर्ति कर सकते हैं। यह सटीक उम्र प्रस्तुत करते हैं।
अनाज और पत्थर की उम्र का लग सकता है पता
OSLडेटिंग या थर्मोल्यूमिनेसेंस डेटिंग से अनाज, पत्थर, बालू, मिट्टी के बर्तन इत्यादि की उम्र का भी पता लगाया जा सकता है। इस नई तकनीकि से सभी निर्जीव वस्तुओं की उम्र का पता लगाना आसान हो गया है। पुरातत्व को खुदाई में मिलने वाले बर्तनों इत्यादि की उम्र का पता भी ओएसएल डेटिंग के जरिये ही लगाया जा रहा है। इससे समुद्री चट्टानों और उसके अंदर दबे अन्य निर्जीव वस्तुओं की उम्र का भी पता लगाया जा सकता है।