श्रीनगर: जरीफा जान कश्मीर घाटी की एक अनूठी सूफी कवयित्री हैं, जो अपनी कविताओं को संरक्षित करने के लिए कोड का इस्तेमाल करती हैं। 65 वर्षीय जरीफा ने कहा कि उन्होंने 30 के दशक के अंत में कविताएं लिखनी शुरू कर दी थी। एक दिन वह पास की एक नहर से पानी लाने गई थी। इस दौरान वह ऐसी स्थिति में पहुंच गई जिसमें उसे दुनिया और आस पास के बारे में कुछ भी पता नहीं था। उन्होंने इस दौरान अपना पानी का बर्तन भी खो दिया। वह पूरी तरह से अपने अंदर अलग व्यक्तिव को महसूस करने लगी। सोच में पड़ी जरीफा के मुंह से कुछ शब्द निकले और यहां से उनकी शायरी की शुरूआत हुईं।
कविता को लिखित रूप में सहेज कर रखती थीं दिवंगत बेटी
उत्तरी कश्मीर के बांदीपोरा जिले की जरीफा कहती हैं कि शुरू में उनकी दिवंगत बेटी उनकी कविता को लिखित रूप में सहेज कर रखती थीं, लेकिन उनकी मृत्यु के बाद उनसे यह माध्यम छिन गया। मुझे लगा जैसे मुझसे सब कुछ छीन लिया गया है। मैं उस सदमे को कभी नहीं भूलूंगी।
यूनिक कोडेड भाषा की कवयित्री बन गईं जरीफा
जरीफा के अनुसार, उन्हें यह महसूस करने में कई साल लग गए कि वह कविता लिख रही हैं। चूंकि वह पढ़-लिख नहीं सकती, इसलिए उन्होंने उन्हें कुछ चिन्हों के रूप में सहेजना शुरू कर दिया। इस तरह वह एक यूनिक कोडेड भाषा की कवयित्री बन गईं, जिसे कोई और नहीं समझ सकता था। मुझे नहीं पता कि मेरे दिमाग में यह विचार आया या नहीं, लेकिन कागज पर बनाए गए इन चिन्हों को देखकर मुझे समझ में आया कि मैंने क्या लिखा है।
बेटे शफात को है अपनी मां पर गर्व
जरीफा के बेटे शफात ने कहा, मुझे विश्वास नहीं हो रहा है कि अशिक्षित होने के बावजूद, मेरी मां न केवल इतनी अच्छी कविता लिख रही है, बल्कि अपनी कविता को संरक्षित करने के लिए कोडिंग भाषा की रचनाकार भी बन गई है। शफात ने आगे कहा कि वह अपनी मां की शायरी को एक किताब के रूप में सहेज कर रखना चाहते हैं, ताकि उनकी बातें दुनिया तक पहुंच सके।
Latest India News