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Hindi News भारत राष्ट्रीय Kartavya Path के उद्घाटन के बाद उमड़े लोग, रेहड़ी-पटरी वालों में जगी आशा की किरण

Kartavya Path के उद्घाटन के बाद उमड़े लोग, रेहड़ी-पटरी वालों में जगी आशा की किरण

पानी-पूरी बेचने वाले राकेश का कहना है कि उन्होंने दूसरी जगह अपना धंधा शुरू किया, लेकिन इंडिया गेट जैसी कमाई और कहीं नहीं है।

Kartavya Path News, Kartavya Path, Kartavya Path Street Vendors, Kartavya Path Central Vista- India TV Hindi Image Source : PTI कर्तव्य पथ पर सैलानियों की संख्या तेजी से बढ़ने लगी है।

Highlights

  • कर्तव्य पथ के उद्घाटन के बाद रेहड़ी-पटरी वालों में अच्छी कमाई की आस जगी है।
  • पुलिस द्वारा लगाए गए बैरिकेड्स के भीतर सामान बेच पाएंगे रेहड़ी-पटरी वाले।
  • कई रेहड़ी-पटरी वालों ने कहा कि पिछले 2 सालों से उनकी कमाई काफी घटी है।

Kartavya Path News: कोविड-19 महामारी और सेंट्रल विस्टा एवेन्यू निर्माण के कारण ग्राहकों की कमी और अन्य परेशानियों से जूझ रहे रेहड़ी-पटरी वालों में कर्तव्य पथ के उद्घाटन के बाद धंधा पटरी पर लौटने को लेकर कुछ आशा जगी है। इंडिया गेट पर 1990 से आइसक्रीम बेच रहे रजिंदर सिंह और उनका परिवार पिछले कुछ साल से आर्थिक तंगी झेल रहा है। उन्होंने कहा, ‘कोविड-19 महामारी के कारण लागू पाबंदियां हटाए जाने के बावजूद धंधा मंदा है और हम सिर्फ 100 से 200 रुपये मुनाफा कमा पा रहे हैं।’

‘लोग फिर से बड़ी संख्या में आने लगे हैं’
रजिंदर ने कहा, ‘कोविड-19 से पहले धंधा काफी अच्छा चल रहा था और लोग आधी रात को भी (इंडिया गेट) आते थे, लेकिन पिछले कुछ दिनों में हमें आशा की नयी किरण नजर आई है, क्योंकि यहां लोग फिर से बड़ी संख्या में आने लगे हैं।’ हालांकि, रेहड़ी-पटरी और ठेले वालों को पुलिस द्वारा लगाए गए बैरिकेड्स के भीतर ही अपना सामान बेचने की इजाजत है। रजिंदर ने कहा, ‘लेकिन हमें बताया गया है कि हमें सोमवार से पहले की तरह सामान बेचने की इजाजत होगी।’

Image Source : PTIइंडिया गेट के आसपास रेहड़ी-पटरी वाले बड़ी संख्या में हैं।

‘हमें कई रात भूखे सोना पड़ता था’
रजिंदर के दोस्त देवी सरन का कहना है कि उनके पिता और चाचा 1956 से इंडिया गेट पर आइसक्रीम बेच रहे थे और उस दौरान वहां सिर्फ आइसक्रीम ही बिका करती थी। लेकिन, महामारी का सरन और उनके परिवार पर बहुत खराब असर पड़ा है और उन्हें दो जून की रोटी जुटाने में भी दिक्कत हो रही है। सरन ने कहा, ‘आशा करता हूं कि हम जिस तकलीफ से गुजरे, दूसरों को उसका सामना न करना पड़े। सब कुछ बंद पड़ा था और काम-धंधा शुरू होने के बावजूद हमें कई रात भूखे सोना पड़ता था।’

‘इंडिया गेट जैसी कमाई और कहीं नहीं’
पानी-पूरी बेचने वाले राकेश का कहना है कि उन्होंने दूसरी जगह अपना धंधा शुरू किया, लेकिन इंडिया गेट जैसी कमाई और कहीं नहीं है। उन्होंने कहा, ‘पिछले कुछ दिनों में कमाई बढ़ी है, लेकिन अभी भी स्थिति कोरोनाकाल के पहले जैसी नहीं है। अभी भी रात 8-9 बजे के बाद इंडिया गेट खाली हो जाता है।’ उनके पड़ोसी और भेल-पूरी बेचने वाले लक्ष्मण का कहना है कि उनकी कमाई घटकर दिन की महज 100 रुपये रह गई थी, लेकिन अब यह बढ़कर 200 रुपये हो गई है। उन्हें आशा है कि लोगों/ग्राहकों का आना-जाना बढ़ने से कमाई भी बढ़ेगी।

Image Source : PTIलोगों की भीड़ देखकर रेहड़ी-पटरी वालों को अच्छी कमाई की उम्मीद है।

‘6 बच्चों का पेट पालने में दिक्कत हो रही थी’
इंडिया गेट पर 1986 से पानी-पूरी बेच रहे नरपत सिंह ने कहा कि पिछले 20 महीने में उन्हें अपने 6 बच्चों का पेट पालने में दिक्कत हो रही थी, लेकिन आशा है कि आने वाले दिनों में हालात सुधरेंगे। उन्होंने याद किया, ‘पहले मैं दिनभर में 300 से 400 रुपये कमा लेता था, लेकिन पिछले दो साल में एक समय का भोजन जुटाना भी मुश्किल हो गया है।’ राष्ट्रपति भवन से इंडिया गेट तक कर्तव्य पथ सेंट्रल विस्टा एवेन्यू का हिस्सा है, जिसका उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरुवार को किया था।

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