24वें विजय दिवस पर कर्नल CS उन्नी ने बताई भारतीय सेना की वीरता की कहानी, पढ़ें उनकी जुबानी
आज यानी 26 जुलाई का दिन हमारे लिए काफी खास है। इसी दिन हमारे वीर जवानों ने पाकिस्तान के नापाक मंसूबों पर पानी फेर दिया था। इस दिन को हम कारगिल दिवस के रूप में मनाते हैं।
इंडियन आर्मी की जाबांजी, शौर्य,पराक्रम और बहादुरी को पूरी दुनिया मानती है। इंडियन आर्मी के दम पर भारत ने ऐसी लड़ाईयां लड़ी हैं, जो आज इतिहास में सुनहरे अक्षरों में दर्ज है और कारगिल का युद्ध उनमें से एक है। जब भी कारगिल की बात होगी तब हमारे वीरे जवानों के वीरता की बात जरूर की जाएगी। कारगिल युद्ध के 24वें विजय दिवस पर इंडिया टीवी से असम रेजिमेंट से रिटायर कर्नल CS उन्नी ने बातचीत की। इंडिया टीवी से बातचीत में कर्नल CS उन्नी ने कहा कि वो उस समय वो लेफ़्टिनेंट कर्नल थे और UP के लखनऊ में पोस्टेड थे। 3 मई 1999 को हमारे पेट्रोलिंग पार्टी ने पता चला कि पाकिस्तान के कई फ़ौजी कारगिल के आसपास कई जगहों पर जमने की कोशिश कर रहे हैं, जिसके बाद हमें वहां भेजने का ऑर्डर आया। इसके बाद हम क़रीब 10,000 जवान कारगिल के लिए रवाना हो गए।
अंडरग्राउंड बेस बनाकर रहते थे
कर्नल CS उन्नी ने आगे कहा कि मुझे एयर लिफ्ट कर वहां पहुंचाया गया। मेरी जिम्मेदारी थी कि लॉजिस्टिक और प्लानिंग ठीक तरीक़े से हो। जंग के समय हम अंडरग्राउंड बेस बनाकर रहते थे और इनपुट के हिसाब से प्लानिंग कर लॉजिस्टिक पहुंचाते थे। हम अपने इनपुट के हिसाब सोचते थे कि प्लानिंग कैसे की जाए और लॉजिस्टिक कैसे और कहां पहुंचाया जाए।। उन्नी ने आगे बताया उस समय कुछ लोगों को मनाली से लेह के रास्ते कारगिल भेजा गया तो कुछ लोगों को जम्मू श्रीनगर कारगिल पहुंचे।
हथियार पहुंचाने के लिए नहीं थी गाड़ियां
कर्नल CS उन्नी ने आगे कहा, “मुझे याद है आर्म्स एमुनिशन ट्रांसपोर्ट करने के लिए हमारे पास गाड़ियां नहीं थी। हमें ट्रांसपोर्ट करने में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता था, इसके बाद हमने सोचा कि क्यों न सिविलियन की मदद ली जाए, जिसके बाद हमारे लोग टोल पर खड़े रहते थे और जो ख़ाली ट्रक दिखाई देता था, उसे अपने साथ ले लेते थे और ऐसा कर हमने 100 सिविलियन के ट्रक अपने साथ लिए ज़रूरी चीज़ें कारगिल तक पहुंचने के लिए इस्तेमाल किया। इसके बाद कि कहानी तो सारी दुनिया को पता है कि कैसे हमने पाकिस्तान को धूल चटा दी।
3 मई 1999 को शुरू हुई थी जंग
इस जंग की शुरुआत 3 मई 1999 को हुई थी, पाकिस्तान ने कारगिल की ऊंची पाड़ियों पर 5 हजार से ज्यादा जवानों के साथ घुसपैठ कर कब्जा कर लिया था। इसके बाद इंडियन आर्मी ने पाकिस्तानी सैनिकों को खदेडने के लिए 'ऑपरेशन विजय' चलाया। बीबीसी की रिपोर्ट की मानें तो, पाकिस्तानी सैनिकों ने कारगिल में अपने कई ठिकाने बना लिए थे। पाकिस्तानी 6 नॉर्दर्न लाइट इंफैंट्री के कैप्टन इफ्तेखार और लांस हवलदार अब्दुल हकीम थे। इन्ही के पास हमारे कुछ भारतीय चरवाहे अपने भेड़-बकरियों को चरा रहे थे, उन्हें देखकर पाकिस्तानी सैनिकों ने पहले लगा कि उन्हें बंदी बना लें, फिर उन्हें ख्याल आया कि अगर इन्हें बंदी बनाकर साथ रखा तो उनका राशन जल्दी खत्म हो जाएगा इसलिए उन्होंने चरवाहों को छोड़ दिया।
2 माह तक चला था 'ऑपरेशन विजय'
कुछ देर बाद ही चरवाहे इंडियन आर्मी के साथ वापस आ गए और पास के इलाके का मुआयना कर वापस चले गए, फिर थोड़ी देर बाद ही इंडियन आर्मी का लामा हेलीकॉप्टर उस इलाके में आया। ये हेलीकॉप्टर इतना नीचे था कि कैप्टन इफ्तेखार का बैज भी साफ दिखाई दे रहा था। इसके बाद हेलीकॉप्टर से ताबड़तोड़ गोलियां बरसाईं गई और पाकिस्तानी सैनिकों को मार गिराया गया और इस तरह भारत ने हारी हुई बाजी पलट दी। ये युद्ध 60 दिनों तक चला। इस युद्ध में कई भारतीय सैनिक भी शहीद हुए। 26 जुलाई की सुबह भारत की जीत लेकर आई और कारगिल की चोटियों पर तिरंगा लहराने लगा।