Kargil Vijay Diwas : करगिल विजय दिवस के 23 साल पूरे, जानें इस युद्ध से जुड़े कई राज
Kargil Vijay Diwas 2022: इसकी शुरुआत हुई थी 8 मई 1999 से जब पाकिस्तानी फौजियों और कश्मीरी आतंकियों को कारगिल की चोटी पर देखा गया था।
Highlights
- जम्मू में बालिदान स्तम्भ पर शहीद सैनिकों को दी गई श्रद्धांजलि
- कारगिल को चोटियों पर पाक सैनिकों ने जमाया था कब्जा
- भारतीय सैनिकों ने बेहद मुश्किल लड़ाई में जीत हासिल की थी
Kargil Vijay Diwas: आज करगिल विजय दिवस (Kargil Vijay Diwas) के 23 साल पूरे हो रहे हैं। इस मौके पर देशभर में वीर सूपतों को नमन किया जा रहा है। जम्मू में करगिल विजय दिवस के अवसर पर करगिल युद्ध में अपनी जान गंवाने वाले सैनिकों को बलिदान स्तम्भ पर श्रद्धांजलि अर्पित की गई। यह युद्ध अपने आप में कई राज छुपाए हुए है। आज हम आपको करगिल युद्ध से जुड़े कुछ अहम राज बताने जा रहे हैं, जिन्हें जानकर आप हैरान हो जाएंगे। करगिल युद्ध 1999 में हुआ था। इसकी शुरुआत हुई थी 8 मई 1999 से जब पाकिस्तानी फौजियों को करगिल की चोटी पर देखा गया था। भारतीय सेना ने पाकिस्तानी फौज का जमकर मुकाबला किया और ऊंची चोटियों से उन्हें भागने को मजबूर कर दिया था।
पाकिस्तान ने पहले यह दावा किया था कि करगिल की चोटियों पर पाकिस्तानी सेना नहीं बल्कि मुजाहिद्दीन कब्जा जमाए हुए हैं। लेकिन बाद में पाकिस्तान का यह दावा झूठा साबित हुआ। करगिल की लड़ाई में पाकिस्तानी सेना के रेगुलर सैनिक शामिल थे। पाकिस्तान के सैनिकों ने करगिल में घुसपैठ की थी। बाद में पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई के पूर्व अधिकारी शाहिद अजीज ने यह राज उजागर किया था।
युद्ध से पहले मुशर्रफ ने पार किया था एलओसी
यह जानकारी भी सामने आई कि करगिल सेक्टर में 1999 में भारतीय और पाकिस्तानी सैनिकों के बीच लड़ाई शुरू होने से कुछ सप्ताह पहले जनरल परवेज मुशर्रफ ने एक हेलिकॉप्टर से नियंत्रण रेखा पार की थी। मुशर्रफ ने भारतीय सीमा में करीब 11 किमी अंदर रात भी बिताई थी। जानकारी के मुताबिक मुशर्रफ के साथ 80 ब्रिगेड के तत्कालीन कमांडर ब्रिगेडियर मसूद असलम भी थे। दोनों ने जिकरिया मुस्तकार नामक स्थान पर रात बिताई थी।
परमाणु हथियार तक इस्तेमाल करने की तैयारी
1998 में पाकिस्तान ने परमाणु परीक्षण करके अपनी ताकत का अहसास करा दिया था। इससे उसका मनोबल बढ़ हुआ था। कई लोगों का कहना है कि कारगिल की लड़ाई उम्मीद से ज्यादा खतरनाक थी। हालात को देखते हुए मुशर्रफ ने परमाणु हथियार तक इस्तेमाल करने की तैयारी कर ली थी।
यह जानकारी भी सामने आई कि पाकिस्तानी सेना करगिल युद्ध को 1998 से अंजाम देने की फिराक में थी। इस काम के लिए पाक सेना ने अपने 5000 जवानों को करगिल पर चढ़ाई करने के लिए भेजा था।
पाक एयरफोर्स तक को इस ऑपरेशन की नहीं थी खबर
करगिल के पूरे प्लान को मुशर्रफ ने गुप्त रखा था। पाकिस्तानी एयर फोर्स के चीफ को पहले इस ऑपरेशन की खबर नहीं दी गई थी। जब इस बारे में पाकिस्तानी एयर फोर्स के चीफ को बताया गया तब उन्होंने इस मिशन में आर्मी का साथ देने से मना कर दिया था।
करगिल युद्ध पाक के लिए आपदा-नवाज शरीफ
बाद में पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ इस बात को माना था कि करगिल का युद्ध पाकिस्तानी सेना के लिए एक आपदा साबित हुआ था। पाकिस्तान ने इस युद्ध में अपने 2700 से ज्यादा सैनिकों को खो दिया था। पाकिस्तान को करगिल युद्ध में1965 और 1971 की लड़ाई से भी ज्यादा नुकसान हुआ था।
भारतीय वायुसेना ने मिग-27 का किया था इस्तेमाल
भारतीय वायुसेना ने करगिल की चोटियों पर कब्जा जमाए पाक सैनिकों के खिलाफ मिग-27 का इस्तेमाल किया था। मिग-27 की मदद से इस युद्ध में उन जगहों पर बम गिराए गए जहां पाक सैनिकों ने कब्जा जमा लिया था। इस विमान से पाक के कई ठिकानों पर आर-77 मिसाइलें दागी गईं थीं।
मुश्किल हालात में भारतीय वायुसेना के विमानों ने भरी उड़ान
8 मई को करगिल युद्ध शुरू होने के बाद 11 मई से भारतीय वायुसेना भी इस ऑपरेशन में शामिल हो गई थी। वायुसेना ने इंडियन आर्मी की मदद करना शुरू कर दिया था। करगिल की लड़ाई का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इस युद्ध में वायुसेना के करीब 300 विमान उड़ान भरते थे। करगिल की ऊंचाई समुद्र तल से 16हजार से 18हजार फीट है। ऐसे में विमानों को करीब 20 हजार फीट की ऊंचाई पर उड़ना पड़ता है। इतनी ऊंचाई पर हवा का घनत्व 30% से कम होता है। ऐसी हालात में पायलट का दम घुट सकता है और विमान दुर्घटनाग्रस्त होने की आशंका भी बनी रहती है।
करगिल युद्ध में करीब ढाई लाख गोले दागे गए
करगिल युद्ध में तोपखाने (आर्टिलरी) से 2,50,000 गोले और रॉकेट दागे गए थे। 300 से ज्यादा तोपों, मोर्टार और रॉकेट लॉन्चरों ने रोज करीब 5,000 बम फायर किए थे। लड़ाई के अहम 17 दिनों में हर रोज आर्टिलरी बैटरी से औसतन एक मिनट में एक राउंड फायर किया गया था। दूसरे विश्व युद्ध के बाद यह पहली ऐसी लड़ाई थी, जिसमें किसी एक देश ने दुश्मन देश की सेना पर इतनी अधिक बमबारी की थी।