A
Hindi News भारत राष्ट्रीय ‘प्रोटोकॉल आपका विशेषाधिकार नहीं’, हाई कोर्ट जज के रेलवे से जवाब मांगने पर CJI ने लिखी चिट्ठी

‘प्रोटोकॉल आपका विशेषाधिकार नहीं’, हाई कोर्ट जज के रेलवे से जवाब मांगने पर CJI ने लिखी चिट्ठी

इलाहाबाद हाई कोर्ट के एक जज ने ट्रेन में 'असुविधा' होने पर भारतीय रेलवे के अफसरों पर नाराजगी जताई थी और उत्तर मध्य रेलवे के महाप्रबंधक को एक पत्र भेजा था।

D Y Chandrachud, D Y Chandrachud High Court, High Court Railways- India TV Hindi Image Source : FILE भारत के मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़।

नई दिल्ली: भारत के मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ ने सभी हाई कोर्ट्स के मुख्य न्यायाधीशों को पत्र लिखकर कहा है कि जजों को उपलब्ध कराई जाने वाली प्रोटोकॉल सुविधाओं का उपयोग इस तरह से नहीं किया जाना चाहिए जिससे दूसरों को असुविधा हो या न्यायपालिका की सार्वजनिक आलोचना हो। CJI की यह सलाह तब आई जब इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज गौतम चौधरी ने नई दिल्ली से प्रयागराज तक अपनी पत्‍नी के साथ ट्रेन यात्रा के दौरान हुई ‘असुविधा’ के लिए रेलवे अधिकारियों को फटकार लगाई।

इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज ने रेलवे से मांगा था स्पष्टीकरण
14 जुलाई को इलाहाबाद हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार (प्रोटोकॉल) की ओर से उत्तर-मध्य रेलवे, प्रयागराज के महाप्रबंधक को लिखे पत्र में आरोप लगाया गया है कि जज को 8 जुलाई को ट्रेन यात्रा के दौरान असुविधा का सामना करना पड़ा। CJI ने बगैर हाई कोर्ट या जज का नाम लिए जिस पत्र का हवाला दिया था, उसमें लिखा है, ‘ट्रेन 3 घंटे से ज्यादा लेट थी। TTE को बार-बार सूचित करने के बावजूद कोच में कोई भी GRP कर्मी नहीं मिला, जो उनकी जरूरतें पूरी कर सके। इसके अलावा, बार-बार कॉल करने के बावजूद जलपान देने लिए कोई पैंट्री कार कर्मचारी भी नहीं आया। इसके अलावा, जब पेंट्री कार मैनेजर राज त्रिपाठी को फोन किया गया, तो कॉल नहीं उठाई गई।’

‘न्यायपालिका के भीतर आत्म-चिंतन और परामर्श आवश्यक है’
यह कहते हुए कि इस घटना से जज को बहुत असुविधा हुई, पत्र में कहा गया कि जज ने इच्छा जताई थी कि ‘रेलवे के दोषी अधिकारियों, जीआरपी कार्मिक और पेंट्री कार प्रबंधक से उनके आचरण और कर्तव्य के प्रति लापरवाही के कारण उनके आधिपत्य को हुई असुविधा के संबंध में स्पष्टीकरण मांगा जा सकता है।’ CJI ने सभी उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों को भेजे गए अपने संदेश में कहा है कि न्यायपालिका के भीतर आत्म-चिंतन और परामर्श आवश्यक है। उन्होंने लिखा, ‘हाई कोर्ट को और ज्यादा शर्मिंदगी से बचाने के लिए मैंने उस पत्र के अंश से पहचान हटा दी है।’

‘अधिकारी जाहिर तौर पर जज के निर्देश का पालन कर रहा था’
CJI ने आगे कहा है कि हाई कोर्ट के एक जज के पास रेलवे कर्मियों पर अनुशासनात्मक क्षेत्राधिकार नहीं है, और इसलिए हाई कोर्ट के एक अधिकारी के पास रेलवे कर्मियों से स्पष्टीकरण मांगने का कोई औचित्य नहीं था। उन्होंने लिखा, ‘जाहिर तौर पर उपरोक्त पत्र में हाई कोर्ट का अधिकारी इस मामले में जज के निर्देश का पालन कर रहा था।’ 
उन्होंने कहा कि जजों को उपलब्ध कराई गई प्रोटोकॉल 'सुविधाओं' का उपयोग ऐसे विशेषाधिकार के तौर पर नहीं किया जाना चाहिए जो उन्हें समाज से अलग करता है। (IANS)

Latest India News