Jawaharlal Nehru Death Anniversary: जवाहरलाल नेहरू की जीप पर जब डकैतों ने किया कब्जा, फिर क्या हुआ कि डाकू ने दे डाले पैसे
आज जवाहरलाल नेहरू की पुण्यतिथि है। आज ही के दिन जवाहरलाल नेहरू का निधन साल 1964 में हुआ था। ऐसे में आज हम आपको जवाहरलाल नेहरू की सबसे अनोखी और अनुसनी कहानी सुनाने जा रहा है, जब डकैतों ने नेहरू की जीप पर कब्जा कर लिया था।
देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू का निधन 27 मई 1964 को हुआ था। जवाहर लाल नेहरू न केवल भारत के पहले प्रधानमंत्री थे, बल्कि आज भारत जिस स्थिति में खड़ा है, उसके निर्माणकर्ता भी थे। नेहरू दूरगामी सोच रखने वाले कुशल राजनेता था। जाहिर सी बात है कोई व्यक्ति पूरी तरह सही नहीं होता। इतिहास में कुछ गलतियां नेहरू से भी हुईं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि उन्होंने भारत के लिए कुछ नहीं किया। दरअसल भारत जिस वक्त आजाद हुआ, उस समय हमारे पासे खाने तक को अनाज नहीं थे। उस समय नेहरू ने प्रधानमंत्री की कुर्सी संभाली। कई चुनौतियां थी, बावजूद नेहरू ने सभी चुनौतियों का सामना किया। साधारण शब्दों में कहें तो आज के भारत की नींव जवाहर लाल नेहरू ने ही रखी थी। ऐसे में जब आज उनकी पुण्यतिथि पर हम आपको नेहरू से जुड़ी एक कमाल की कहानी बताने जा रहे हैं।
डकैतों ने रोकी नेहरू की जीप
दरअसल ये कहानी तब कि है जब नेहरू चंबल के दौरे पर जा रहे थे। इस समय चंबल का पूरा इलाका संयुक्त प्रांत में आता था। यह बात आजादी से पहले की है। इस दौरान नेहरू देश के अलग-अलग हिस्सों में भ्रमण करते और अंग्रेजी शासन के खिलाफ भारतीयों को एकजुट करने का काम कर रहे थे। यह साल था 1937 का। अपनी जीप से नेहरू चंबल के रास्ते से लौट रहे थे। इस दौरान उनकी जीप पर बीहड़ के डकैतों ने कब्जा कर लिया। पंडित नेहरू चंबल के बीहड़ों और यहां के डकैतों से अनजान नहीं थे। बता दें कि नेहरू की गाड़ी रोकने वाले डकैतों की संख्या 8-10 थी। सभी डकैत उनकी गाड़ी के आगे आकर खड़े हो गए। हालांकि डाकुओं को इस बात का जरा भी अंदाजा नहीं था कि उन्होंने किसकी गाड़ी पर कब्जा किया।
डकैतों को हुई गलतफहमी, नेहरू को समझे धन्ना सेठ
डकैतों को लग रहा था कि जीप जा रहा शख्स को मोटी मालदार पार्टी है। दरअसल उस समय जीप केवल रईसों के पास होती थी। इसी कारण डाकुओं के मन में यह शंका उत्पन्न हुई। इसी दौरान वहां की झाड़ियों से आवाज आता है कि कौन है... आवाज देने वाला शख्स, डाकुओं का सरदार था। डकैत उसे कहते हैं कोई सेठ है। यह सुनकर जब डकैतों का सरदार बाहर आया। लेकिन अबतक नेहरू और उनेक साथ जीप में सवार लोग ये समझ चुके थे कि डकैतों ने उन्हें कोई मालदार सेठ समझ लिया है। इस मिथक को तोड़ना जरूरी थी। इसलिए जवाहर लाल नेहरू खुद जीप से उतरकर डकैतों के सरदार के पास चले गए।
नेहरू को जब डकैत ने दिए पैसे
डकैतों के सरदार से मिलकर जवाहर लाल नेहरू ने कहा कि मैं पंडित जवाहर लाल नेहरू हूं। यह सुनकर बीहड़ में सन्नाटा फैल गया। इसके बाद सरदार की आंखे जो लूटपाट करने को लेकर लहलाहित थी, उनमें ग्लानि तैरने लगी। जवाहर लाल नेहरू ने उस डकैत से पूछा कि जल्दी बताओं हमें क्या करना है, क्योंकि हमें दूर जाना है। इसके बाद बागियों के सरदार ने अपने कोट की जेब में हाथ डाला और मुट्ठी भरकर नोट निकाले और नेहरू को दे दिए। इस दौरान डाकुओं के सरदार ने कहा कि आपका बहुत नाम सुना था। आज दर्शन भी हो गए। सुराज (स्वराज) के काज के लिए हमारी छोटी सी भेंट स्वीकार करें। इसके बाद चंबल में यह खबर आग की तरह फैली थी कि जवाहर लाल नेहरू की मुलाकात एक डकैत से हुई थी।