जम्मू कश्मीर: श्रीनगर से 180 किलोमीटर दूर भारत और पाकिस्तान के बीच खींची गई लाइन ऑफ कंट्रोल पर पीओके से महज 700 मीटर की दूरी पर शारदा मंदिर स्थित है। जिस जगह ये मंदिर बनाया गया है, इसके पास में किशन गंगा नदी गुजरती है, जो दोनों देशों को अलग करती है। 1947 में इसी जगह पर कबाली हमले के दौरान पूरी बस्ती और बाजार जलाए गए थे।
शारदा पीठ का बेस कैंप जहां से यात्रियों का काफिला शारदा पीठ के लिए रवाना होता था, उसे भी यहां जला दिया गया था। लेकिन अब 75 सालों के बाद यहां एक बड़ा इतिहास रचा जा रहा है। इस मंदिर में बुधवार को पूजा अर्चना और हवन किया जा रहा है, जिसमें बड़ी संख्या में कश्मीरी पंडित और मुस्लिम समुदाय के लोग शामिल हो रहे हैं।
75 सालों के बाद शारदा माता का इस जगह पर फिर से बसना न सिर्फ हिंदू समुदाय के लिए बल्कि एलओसी के पास रहने वाले मुस्लिम समुदाय के लोगों के लिए भी खुशी का दिन है। सभी लोग इस मंदिर के दोबारा बनने से बेहद उत्साहित नजर आ रहे हैं।
इंडिया टीवी से बात करते हुए अब्दुल हमीद ने कहा, कल का दिन तीतवाल के लोगों के लिए एक अहम दिन होगा। शारदा माता अपने घर वापस आई हैं, इससे हिंदू मुस्लिम भाईचारा दोबारा कायम होगा।
बता दें कि इस मंदिर का निर्माण सेव शारदा कमेटी ने साल 2022 में शुरू किया था। इस मंदिर के पास में और मस्जिद भी हैं। शारदा माता के नाम से बनाए गए इस मंदिर की मूर्ति संगेरी कर्नाटक से लाई गई है, और बुधवार को इस मंदिर में 75 सालों के बाद एक बार फिर पूजा अर्चना की जाएगी और इस मंदिर को श्रद्धालुओं के लिए खोल दिया जाएगा। मंदिर को फिर उसी परंपरा के तौर पर इस्तेमाल किया जाएगा, जैसेकि 1947 से पहले किया जाता था।
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