IPC Section 124A: केंद्र सरकार ने सोमवार को उच्चतम न्यायालय से अनुरोध किया कि वह राजद्रोह के दंडनीय कानून की संवैधानिक वैधता का अध्ययन करने में समय नहीं लगाए क्योंकि उसने (केंद्र ने) इस प्रावधान पर पुनर्विचार करने का फैसला किया है जो सक्षम मंच के समक्ष ही हो सकता है। केंद्र ने यह भी कहा कि वह ‘इस महान देश की संप्रभुता और अखंडता की’ रक्षा करते हुए नागरिक स्वतंत्रताओं के बारे में अनेक विचारों और चिंताओं से अवगत है।
"मानवाधिकारों के सम्मान के पक्षधर हैं मोदी"
गृह मंत्रालय ने एक हलफनामे में औपनिवेशिक चीजों से छुटकारा पाने के संदर्भ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विचारों का उल्लेख करते हुए कहा कि वह नागरिक स्वतंत्रताओं और मानवाधिकारों के सम्मान के पक्षधर रहे हैं और इसी भावना से 1500 अप्रचलित हो चुके कानूनों को समाप्त कर दिया गया है। प्रधान न्यायाधीश एन वी रमण और न्यायमूर्ति सूर्यकांत तथा न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ ने पांच मई को कहा था कि वह इस कानूनी प्रश्न पर दलीलों पर सुनवाई 10 मई को करेगी कि राजद्रोह पर औपनिवेशिक काल के दंडनीय कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं को केदारनाथ सिंह मामले में पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ के 1962 के फैसले पर पुनर्विचार करने के लिए बड़ी पीठ को भेजा जाए या नहीं।
केंद्र सरकार ने क्या कहा
गृह मंत्रालय के अवर सचिव मृत्युंजय कुमार नारायण द्वारा दाखिल हलफनामे के अनुसार इस विषय पर अनेक विधिवेत्ताओं, शिक्षाविदों, विद्वानों तथा आम जनता ने सार्वजनिक रूप से विविध विचार व्यक्त किये हैं। हलफनामे में कहा गया, ‘‘इस महान देश की संप्रभुता और अखंडता को बनाये रखने तथा उसके संरक्षण की प्रतिबद्धता के साथ ही यह सरकार राजद्रोह के विषय पर व्यक्त किये जा रहे अनेक विचारों से पूरी तरह अवगत है तथा उसने नागरिक स्वतंत्रताओं और मानवाधिकारों की चिंताओं पर भी विचार किया है।’’
इसमें कहा गया कि सरकार ने भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 124ए के प्रावधानों का पुन: अध्ययन और पुनर्विचार करने का फैसला किया है जो सक्षम मंच पर ही हो सकता है। हलफनामे में कहा गया, ‘‘इसके मद्देनजर, बहुत सम्मान के साथ यह बात कही जा रही है कि माननीय न्यायालय एक बार फिर भादंसं की धारा 124ए की वैधता का अध्ययन करने में समय नहीं लगाए और एक उचित मंच पर भारत सरकार द्वारा की जाने वाली पुनर्विचार की प्रक्रिया की कृपया प्रतीक्षा की जाए जहां संवैधानिक रूप से इस तरह के पुनर्विचार की अनुमति है।’’
केंद्र ने पहले किया था कानून का बचाव
पहले दाखिल एक और लिखित दलील में केंद्र ने राजद्रोह कानून को और इसकी वैधता को बरकरार रखने के एक संविधान पीठ के 1962 के निर्णय का बचाव करते हुए कहा था कि ये प्रावधान करीब छह दशक तक खरे उतरे हैं और इसके दुरुपयोग की घटनाएं कभी इनके पुनर्विचार को उचित ठहराने वाली नहीं हो सकतीं। उच्चतम न्यायालय राजद्रोह के कानून की वैधता को चुनौती देने वाली अनेक याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है।
क्या है देशद्रोह कानून (IPC धारा 124A)
भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 124 A के तहत अगर कोई सरकार विरोधी बातें लिखता या बोलता है या राष्ट्रीय चिन्हों का अपमान करने के साथ संविधान को नीचा दिखाने की कोशिश करता है, जब कोई व्यक्ति बोले गए या लिखित शब्दों, संकेतों या दृश्य प्रतिनिधित्व द्वारा या किसी और तरह से घृणा या अवमानना या उत्तेजित करने का प्रयास करता है या भारत में क़ानून द्वारा स्थापित सरकार के प्रति असंतोष को भड़काने का प्रयास करता है तो वह राजद्रोह का आरोपी है। इस धारा के तहत दोषी को तीन साल से लेकर उम्रकैद तक की सजा हो सकती है।
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