International Day of Women and Girls in Science: विज्ञान में पुरुष-महिलाओं की भागीदारी में अंतर, सिर्फ 48% महिलाएं ही करती हैं विज्ञान में पीएचडी
आज विश्व स्तर पर 11 फरवरी को विज्ञान में महिलाओं एवं बालिकाओं का अंतरराष्ट्रीय दिवस मनाया जा रहा है। यह दिन दिवस विज्ञान और प्रौद्योगिकी में महिलाओं एवं बालिकाओं की महत्वपूर्ण भूमिका को चिन्हित करने के लिए मनाया जाता है।
Highlights
- दिसंबर 2015 में दिवस मनाने का प्रस्ताव अपनाया गया था, पहली बार 2016 में मनाया गया
- भारत में दुनिया में हर जगह की तरह, विज्ञान में पुरुषों और महिलाओं की संख्या में लैंगिक अंतर
- विज्ञान और प्रौद्योगिकी क्षेत्र में विश्व में 30 प्रतिशत महिलाओं की भागीदारी
International Day of Women and Girls in Science: आज विश्व स्तर पर 11 फरवरी को विज्ञान में महिलाओं एवं बालिकाओं का अंतरराष्ट्रीय दिवस मनाया जा रहा है। यह दिन दिवस विज्ञान और प्रौद्योगिकी में महिलाओं एवं बालिकाओं की महत्वपूर्ण भूमिका को चिन्हित करने के लिए मनाया जाता है। संयुक्त राष्ट्र द्वारा दिसंबर 2015 में, 11 फरवरी को विज्ञान में महिलाओं एवं बालिकाओं का अंतरराष्ट्रीय दिवस मनाने का प्रस्ताव अपनाया गया था। इसके बाद इस दिवस को पहली बार 2016 में मनाया गया था।
क्या है इस दिन को बनाने का उद्देश्य?
इस दिन को मनाए जाने का मकसद साइंस, टेक्नोलॉजी, इंजीनियरिंग और गणित (एसटीआर) के क्षेत्र में महिलाओं एवं बालिकाओं की समान सहभागिता और भागीदारी सुनिश्चित करना है। महिला वैज्ञानिकों का भी बहुत बड़ा योगदान रहा। हालांकि भारत में दुनिया में हर जगह की तरह, विज्ञान में पुरुषों और महिलाओं की संख्या में लैंगिक अंतर है। मानव संसाधन और विकास मंत्रालय के (एआईएसएचई) AISHE सर्वेक्षण में पाया कि विज्ञान में पीएचडी कार्यक्रम में दाखिला लेने वालों में से लगभग 48 प्रतिशत महिलाएं थीं।
साइंस एंड टेक्नोलॉजी में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने की जरूरत
महिला वैज्ञानिकों ने जरूर अपने प्रयासों से देश का मान बढ़ाया है, लेकिन फिर भी इस क्षेत्र में अभी महिलाओं के लिए और अवसर हैं। इस क्षेत्र में अभी महिलाओं की भागीदारी को और बढ़ाने की आवश्यकता है। यूनेस्को के अनुसार विज्ञान और प्रौद्योगिकी क्षेत्र में विश्व में 30 प्रतिशत महिलाओं की भागीदारी है। यूनेस्को के आंकड़ों के अनुसार, सभी छात्राओं में से 30 प्रतिशत छात्राएं उच्च शिक्षा में एसटीईएम (STEM) से संबंधित क्षेत्रों का चयन करती हैं। विश्व स्तर पर महिला छात्रों का नामांकन विशेष रूप से आईसीटी (3 प्रतिशत) प्राकृतिक विज्ञान, गणित और सांख्यिकी (5 प्रतिशत) में कम है। साथ ही इंजीनियरिंग, विनिर्माण और निर्माण (8 प्रतिशत) में लंबे समय से चली आ रही पूर्वाग्रह और लिंग रूढ़िवादिता लड़कियों को पीछे ढकेल रही है, जिस कारण महिलाएं विज्ञान से संबंधित क्षेत्रों से दूर हो रही हैं।
महिलाओं के लिए इस क्षेत्र में क्या हैं चुनौतियां?
हाल के अध्ययनों में पाया गया है कि एसटीईएम (STEM) क्षेत्रों में महिलाएं कम पब्लिश करती हैं, उन्हें अपने शोध के लिए कम भुगतान किया जाता है और पुरुषों की तुलना में उनके करियर में प्रगति नहीं होती। हमारे भविष्य को वैज्ञानिक और तकनीकी प्रगति द्वारा चिह्नित किया जाएगा, जो केवल तभी प्राप्त किया जा सकता है जब महिलाएं और लड़कियां निर्माता, मालिक और विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार का नेतृत्व करें। एसटीईएम (विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित) में लैंगिक अंतर को कम करना सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने और सभी लोगों के लिए काम करने वाले बुनियादी ढांचे, सेवाओं और समाधानों को प्राप्त करने के लिए महत्वपूर्ण है।
जानिए उन 7 भारतीय महिला वैज्ञानिकों के बारे में जिन्होंने इतिहास रचकर भारत का मान-बढ़ाया
1. टेसी थॉमस
टेसी थॉमस, जिन्हें भारत की 'मिसाइल वुमन' के नाम से भी जाना जाता है। वे वैमानिकी प्रणालियों की महानिदेशक और रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) में अग्नि- IV मिसाइल की पूर्व परियोजना निदेशक हैं। वह भारत में एक मिसाइल परियोजना का नेतृत्व करने वाली पहली महिला वैज्ञानिक हैं। 56 वर्षीय टेसी मिसाइल गाइडेंस में डॉक्टरेट हैं और तीन दशकों तक इस क्षेत्र में काम किया है। उन्होंने DRDO में मार्गदर्शन, प्रक्षेपवक्र सिमुलेशन और मिशन डिजाइन में योगदान दिया है। उसने लंबी दूरी की मिसाइल प्रणालियों के लिए मार्गदर्शन योजना तैयार की, जिसका उपयोग सभी अग्नि मिसाइलों में किया जाता है। उन्हें 2001 में अग्नि आत्मनिर्भरता पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। वह कई फैलोशिप और मानद डॉक्टरेट की प्राप्तकर्ता हैं।
2. रितु करिधल
चंद्रयान-2 मिशन के मिशन निदेशक के रूप में रितु करिधल को भारत की सबसे महत्वाकांक्षी चंद्र परियोजनाओं में से एक में भूमिका निभाने के लिए लाया गया था। वह विस्तार और शिल्प की आगे की स्वायत्तता प्रणाली के निष्पादन के लिए जिम्मेदार थी, जिसने अंतरिक्ष में उपग्रह के कार्यों को स्वतंत्र रूप से संचालित किया और खराबी के लिए उचित रूप से जवाब दिया।'रॉकेट वुमन ऑफ़ इंडिया' के नाम से मशहूर रितु साल 2007 में ISRO में शामिल हुई और भारत के मार्स ऑर्बिटर मिशन, मंगलयान के उप संचालन निदेशक भी थीं। 2007 में, उन्हें भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने इसरो यंग साइंटिस्ट अवार्ड से सम्मानित किया था।
3. मंगला मणि
इसरो की 'पोलर वुमन', मंगला मणि अंटार्कटिका के बर्फीले परिदृश्य में एक वर्ष से अधिक समय बिताने वाली इसरो की पहली महिला वैज्ञानिक हैं। 56 वर्षीय मंगला इस मिशन के लिए चुने जाने से पहले कभी बर्फबारी का अनुभव नहीं किया था। नवंबर 2016 में, वह 23 सदस्यीय टीम का हिस्सा थीं, जो अंटार्कटिका में भारत के अनुसंधान स्टेशन भारती में एक अभियान पर गई थीं। इसरो के ग्राउंड स्टेशन के संचालन और रखरखाव के लिए उन्होंने 403 दिन बिताए।
4. आनंदीबाई गोपालराव जोशी
आनंदीबाई गोपालराव जोशी भारत की पहली महिला फिजिशियन थीं। आनंदीबाई की शादी महज 9 साल की उम्र में हो गई थी। 14 साल की उम्र में आनंदीबाई मां बन गई थीं, लेकिन दवाई की कमी के कारण उनके बेटे की कम उम्र में ही मृत्यु हो गई थी। इसके बाद उन्होंने दवाइयों पर रिसर्च करने की सोची। आपको बता दें आनंदीबाई के पति उनसे उम्र में 20 साल बढ़े थे। आनंदीबाई के पति ने उन्हें विदेश जाकर मेडिसिन पढ़ने के लिए प्रेरित किया था। आनंदीबाई ने वुमन्स मेडिकल कॉलेज पेंसिलवेनिया से पढ़ाई की थी। परिस्थितियां विपरित होने के बावजूद आनंदीबाई ने कभी भी हार नहीं मानी।
5. जानकी अम्माल
जानकी अम्माल को पद्मश्री से सम्मानित किया गया था। पद्मश्री सम्मान पाने वालीं वो देश की पहली महिला वैज्ञानिक थीं। 1977 में भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री से नवाजा था। जानकी अम्माल बॉटेनिकल सर्वे ऑफ इंडिया के डायरेक्टर के पद पर भी कार्यरत रहीं।
6. कमला सोहोनी
कमला सोहोनी प्रोफेसर सी वी रमन की पहली महिला स्टूडेंट थीं और कमला पहली भारतीय महिला वैज्ञानिक भी थीं, जिन्होंने PhD की डिग्री हासिल की। कमला सोहोनी ने ये खोज की थी कि हर प्लांट टिशू में ‘cytochrome C’ नाम का एन्जाइम पाया जाता है।
7. असीमा चटर्जी
असीमा चटर्जी केमेस्ट्री में अपने कार्यों के लिए काफी प्रसिद्ध रहीं। असीमा चटर्जी ने कोलकाता के स्कॉटिश चर्च कॉलेज से 1936 में केमेस्ट्री सब्जेक्ट में ग्रैजुएशन की थी। एंटी-एपिलिप्टिक (मिरगी के दौरे), और एंटी-मलेरिया ड्रग्स का डेवलपमेंट असीमा चैटर्जी ने ही किया था। असीमा चैटर्जी कैंसर से जुड़ी एक रिसर्च में भी शामिल थीं।