Indian Navy: जर्मनी की टाइप 212CD पनडुब्बी को भारतीय नौसेना के प्रोजेक्ट 75I में शामिल करने को लेकर प्लानिग की जा रही है। रक्षा सूत्रों के मुताबिक, यह जर्मन पनडुब्बी परियोजना की दौड़ में सबसे पहले पायदान पर है। हालांकि इस पनडुब्बी को लेकर रक्षा विशेषज्ञ अपनी नाराजगी जताई है। दुनिया के शीर्ष रक्षा विशेषज्ञ इस जर्मन पनडुब्बी को सही नहीं मानते हैं इसे जीरो नंबर की श्रेणी में रखते हैं। उनका कहना है कि यह पनडुब्बी आज की आधुनिक तकनीक के मामले में काफी ही स्लो है। वही इस फैसले से रूस ने अपनी आपत्ती जताई है।
क्या है जर्मन पनडुब्बी की खासियत?
भारतीय रक्षा सूत्रों के अनुसार, टाइप 212CD का स्टील्थ डिज़ाइन एकदम नया और आधुनिक है। इसका निचला तल हीरे के आकार का है, इस वजह से यह सक्रिय सोनार की तरंगों को अस्थिर कर सकता है। सीडी आम डिजाइन के लिए खड़ा है। इस पनडुब्बी में एक नई युद्ध प्रणाली है, जिसे ओआरसीए के नाम से जाना जाता है। इस प्रणाली के बाद बड़ी मात्रा में सेंसर डेटा का परीक्षण किया जा सकता है। जर्मनी का थिसेनक्रुप मरीन सिस्टम (TKMS) ऐसी दो पनडुब्बियों का निर्माण कर रहा है, एक जर्मन नौसेना के लिए और एक नॉर्वे की नौसेना के लिए।
पनडुब्बी कितनी है दाम?
जर्मनी और नॉर्वे की सरकार ने जून 2017 में एक संयुक्त समझौते पर हस्ताक्षर किए। इसके तहत नौसेना के लिए भी मिसाइलों का निर्माण किया जाएगा। एक रिपोर्ट के मुताबिक दो पनडुब्बियों के निर्माण पर करीब 6.4 अरब डॉलर का खर्च आएगा। इनका निर्माण कार्य साल 2023 में पूरा कर लिया जाएगा। इसके बाद साल 2029 में एक पनडुब्बी नॉर्वे की सेना को सौंपी जाएगी। वहीं जर्मन नौसेना को यह पनडुब्बी साल 2031 और 2034 में मिल जाएगी। इस पनडुब्बी को साल 2060 तक सेवा में रखा जाएगा।
क्या है प्रोजेक्ट 75?
प्रोजेक्ट 75I या प्रोजेक्ट 75 को भारतीय नौसेना के लिए एक महत्वाकांक्षी परियोजना है। इस परियोजना के तहत 6 उन्नत पनडुब्बियों का निर्माण किया जाना था। जनवरी 2020 में रक्षा अधिग्रहण परिषद (DAC) ने मझगांव डॉक्स लिमिटेड और लार्सन एंड टर्बो को परियोजना में भारतीय भागीदार के रूप में नामित किया। इसके अलावा दक्षिण कोरिया की दो कंपनियों फ्रांस की एक, स्पेन, रूस और जर्मनी की एक-एक कंपनियों का चयन किया गया। हाल ही में रूस के एक वरिष्ठ अधिकारी की ओर से कहा गया है कि भारत ने जो शर्तें रखी हैं, वे पूरी तरह से अवास्तविक हैं। उनके अनुसार जब तक इन शर्तों में बदलाव नहीं किया जाता तब तक यह प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ सकती।
दिसंबर के अंत लिया जाएगा फैसला
रक्षा मंत्रालय ने इस प्रोजेक्ट की डेडलाइन 30 जून को अगले 6 महीने के लिए बढ़ा दी है। अब दिसंबर के अंत तक रूस को इस डेडलाइन में फैसला लेना होगा। रूस के रुबिन डिजाइन ब्यूरो के उप निदेशक जनरल एंड्री बारानोव ने आर्मी-2022 एक्सपो में कहा कि भारत की ओर से रिक्वेस्ट फॉर प्रपोजल (आरएफआई) में रखी गई आवश्यकताएं बहुत सख्त हैं। इन शर्तों के बाद डिजाइनर पर बहुत सारी जिम्मेदारियां आ जाती हैं। उनका कहना है कि भारत में होने वाली मैन्युफैक्चरिंग पर डिजाइनर का कोई नियंत्रण नहीं होता है।
दुनिया में ऐसी पनडुब्बी का प्रोटोटाइप नहीं
भारतीय नौसेना ने भी रक्षा मंत्रालय से अनुरोध किया है कि कुछ शर्तों में ढील दी जाए। बारानोव ने कहा कि नौसेना द्वारा रखी गई विशिष्ट आवश्यकताएं वास्तव में चिंता का विषय हैं। उन्होंने कहा कि भारतीय नौसेना चाहती है कि परियोजना के तहत प्रौद्योगिकी हस्तांतरण, शक्तिशाली मिसाइलों के साथ अत्याधुनिक पनडुब्बियां, स्टील्थ और कुछ ऐसी शर्तें रखी गई हैं लेकिन दुनिया की किसी भी नौसेना के पास ऐसी पनडुब्बी का प्रोटोटाइप नहीं है।
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