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Hindi News भारत राष्ट्रीय India TV 'She' Conclave: लोको पायलट सुरेखा और अंतिम संस्कार करने वाली पूजा ने बताए महिला सशक्तिकरण के मायने

India TV 'She' Conclave: लोको पायलट सुरेखा और अंतिम संस्कार करने वाली पूजा ने बताए महिला सशक्तिकरण के मायने

सुरेखा यादव एशिया की पहली महिला रेल ड्राइवर हैं और पूजा शर्मा लोगों का अंतिम संस्कार करती हैं। दोनों ने इंटरव्यू के दौरान महिला सशक्तिकरण के मायने समझाए।

Surekha yadav and Pooja Sharma- India TV Hindi Image Source : INDIA TV सुरेखा यादव और पूजा शर्मा

इंडिया टीवी के कॉनक्लेव 'SHE' में देश की कई बड़ी हस्तियां शामिल हुईं और महिलाओं से जुड़े मुद्दों पर अपनी राय रखी। लोको पायलट सुरेखा यादव और अंतिम संस्कार करने वाली पूजा शर्मा भी इस कॉन्क्लेव का हिस्सा बनीं और महिला सशक्तिकरण पर अपनी राय रखी। इन दोनों महिलाओं ने रूढ़िवादी परंपराओं को तोड़ते हुए ऐसे क्षेत्र में अपनी पहचान बनाई, जिसके बारे में महिलाओं के लिए सोचना भी मुश्किल है। सुरेखा भारत ही नहीं बल्कि पूरे एशिया की पहली महिला पायलट हैं। वहीं, पूजा लोगों का अंतिम संस्कार करती हैं, जबकि भारतीय परंपरा के अनुसार महिलाओं को अंतिम संस्कार करने की अनुमति ही नहीं है।

सुरेखा यादव का सफर

सुरेखा यादव का प्रेरणादायक सफर 1988 से जारी है। वह 1988 में लोको पायलट बनीं थीं। इसके साथ ही उन्होंने एशिया की पहली महिला ट्रेन ड्राइवर बनने का गौरव भी हासिल किया था। वह डेक्कन क्वीन ट्रेन चलाने वाली पहली महिला,र भारत की पहली लेडीज स्पेशल ट्रेन ड्राइवर और वंदे भारत एक्सप्रेस चलाने वाली पहली महिला भी हैं। पीएम मोदी ने मन की बात में सुरेखा का जिक्र किया था।

सुरेखा यादव ने कहा "मेरे भाग्य में आया जो मैं बैरियर तोड़ पाई। दरवाजा था, लेकिन किसी ने खटखटाया नहीं। मैंने कभी नहीं सोचा ये पहले हुआ या नहीं हुआ। मुझे जो मौका मिला उसका फायदा उठाया। ट्रेनिंग में पता चला मैं देश की पहली महिला लोकोपायलट हूं। जब कोई काम पुरुष कर सकता है तो महिला क्यों नहीं कर सकती है। महिलाएं हिम्मत वाली होती हैं, बस संकोच करती हैं।" उन्होंने अंत में कहा कि हिम्मत तब होती है जब आप काम करते हैं।

पूजा बोलीं- हारी हुई बहन ने शुरू की थी सेवा

लावारिस शवों का अंतिम संस्कार करने वाली पूजा शर्मा की जिंदगी उनकी भाई की मौत के बाद पूरी तरह बदल गई। समाजसेवी पूजा शर्मा अब तक 6000 लाशों का दाह-संस्कार कर चुकी हैं। वह रोजाना औसतन 10 लाशों का दाह संस्कार करती हैं। उन्होंने पहली बार अपने भाई का अंतिम संस्कार किया था। इसके बाद उन्होंने 'ब्राइट द सोल' नाम का एनजीओ शुरू किया। उनका कहना है कि 'सेवा एक हारी हुई बहन ने शुरू की थी।'

पूजा की आंखों के सामने उनके भाई को मौत के घाट उतार दिया गया था। भाई की मौत की खबर से पिता कोमा में चले गए। ऐसे में भाई के अंतिम संस्कार के दौरान कोई मर्द नहीं था। ऐसे में पूजा ने भाई का अंतिम संस्कार किया और तब से उनका अंतिम संस्कार कर रही हैं, जिनका कोई नहीं है। उनका कहना है कि महिलाओं को मानसिक तौर पर मजबूत किया जाना चाहिए। 

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